Who was the lanin?vo kaha ka raja tha
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22 मार्च, 1931. लाहौर. इस रात यहां एक धूल भरी आंधी आई थी. सुबह होते-होते, आंधी थमी. लाहौल सेंट्रल जेल में थोड़ी अफरा-तफरी थी. जेल अधिकारी सुपरिडेंटेंट पी डी चोपड़ा के कमरे में जमा थे. कुछ खास बात हो रही थी वहां. एकदम दबी-सधी आवाज में. इसी जेल में बंद थे भगत सिंह. और उनके साथी सुखदेव और राजगुरु. अगले दिन भगत और उनके साथियों को फांसी दी जानी थी. सुबह-सुबह. मगर अब प्लानिंग बदल दी गई थी. चुपके-चुपके तय किया गया कि 23 मार्च की ही शाम को फांसी दे दी जाए. ऐसा होता नहीं था. शाम को फांसी नहीं दी जाती है. जेल वॉर्डन छत्तर सिंह ने ये खबर तीनों क्रांतिकारियों को पहुंचा दी. छत्तर दुखी थे. उन्होंने भगत से कहा- भगवान का नाम जप लो. मगर भगत व्यस्त थे. शाम को उन्हें फांसी होने वाली थी. खत्म होने से पहले वो उस किताब को खत्म कर लेना चाहते थे. वो किताब रूस के महान क्रांतिकारी लेनिन पर थी. कहते हैं कि उस शाम को जब फांसी के तख्ते तक भगत को ले जाने के लिए अधिकारी आए, तो भगत ने कहा:
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