Hindi, asked by Anonymous, 3 months ago

why we celebrate basant panchmi, Needed full detail answers without copying otherwise reported.

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Answered by itztalentedprincess
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☯️उत्तर:

बसंत पंचमी हर साल माघ के महीने में मनाया जाता है I बसंत पंचमी को हमला सरस्वती पूजा भी कहते हैं क्योंकि इस दिन देवी सरस्वती की पूजा होती है सभी बच्चे देवी सरस्वती की आराधना करते हैं और ज्ञान प्राप्त करते हैं ऐसा कहा जाता है कि देवी सरस्वती विद्या की देवी है I बसंत पंचमी के दिन पहला होली रहता है बसंत पंचमी की एक महीने बाद होली आता है लेकिन बसंत पंचमी के दिन पहला होली रहता है I इसलिए सारे बच्चे देवी सरस्वती की पूजा करते हैं उन पर किताब पेंसिल इरेज़र जितना भी पढ़ाई का सामान है उसे खाते हैं अभी रहते हैं फल चढ़ा की पूजा करते और आराधना करते हैं और देवी सरस्वती के साथ भी पहला होली मनाते हैं उनके चरणों में अबीर रखकर I

सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी है और सर्वदा शास्त्र-ज्ञान को देने वाली है। सृष्टिकाल में ईश्वर की इच्छा से अद्याशक्ति ने अपने को पांच भागों में विभक्त कर लिया था। वे राधा, पार्वती, सावित्री, दुर्गा और सरस्वती के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न अंगों से प्रकट हुई थीं। उस समय श्रीकृष्ण के कण्ठ से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम सरस्वती हुआ। इनके और भी नाम हैं, जिनमें से वाक्, वाणी, गी, गिरा, भाषा, शारदा, वाचा, श्रीश्वरी, वागीश्वरी, ब्राह्मी, गौ, सोमलता, वाग्देवी और वाग्देवता आदि अधिक प्रसिद्ध है। मां सरस्वती की महिमा और प्रभाव असीम है। ऋगवेद 10/125 सूक्त के आठवें मंत्र के अनुसार वाग्देवी सौम्य गुणों की दात्री और सभी देवों की रक्षिका है। सृष्टि-निर्माण भी वाग्देवी का कार्य है। वे ही सारे संसार की निर्मात्री एवं अधीश्वरी है। वाग्देवी को प्रसन्न कर लेने पर मनुष्य संसार के सारे सुख भोगता है। इनके अनुग्रह से मनुष्य ज्ञानी, विज्ञानी, मेधावी, महर्षि और ब्रह्मर्षि हो जाता है।

देवी सरस्वती के सिर्फ एक नहीं 9 रूप होते हैं I

देवी सरस्वती के नौ रूपों के नाम:

शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति.

एक-एक करके सभी रूपों की भी पूजा होती है जिसे हम लोग नवरात्रि भी कहते हैं I

नवरात्रि सितंबर के महीने में आता है इसमें 9 दिन होते हैं और 9 दिन में हर एक रुप की पूजा होती है एक-एक करके I

और 9 दिन अच्छे से पूजा होती है और जब आखिरी दिन आता है 9 दिन तो छोटे-छोटे बालिका को बुलाकर उनकी पूजा की जाती है ऐसा माना जाता है कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं और इसलिए लोग बालिका को बुलाकर उनकी पूजा की जाती है और उनको नौ देवी की रूप माने जाते हैं और उनमें से बालक भी रहता है क्योंकि भैरव बाबा पहले बहुत घमंडी है और देवी की पूजा नहीं करते थे लेकिन जब देवी ने उन्हें मारा तो फिर उनको अपनी गलती का एहसास हुआ क्षमा मांगा तो दीदी ने उन्हें यह वरदान दिया कि अब से जो भी मेरी पूजा करेगा उन्हें तुम्हारे ही पूजा करनी होगी मेरा भाई मान कर अगर वह तुम्हारी पूजा नहीं करते हैं तो उनकी तपस्या अधूरी रही हो उनको उनका फल नहीं मिलेगा पूजा का इसलिए जब भी हम लोग देवी की पूजा करते हैं तो उनके भाई भैरव बाबा का भी करते पूजा और जिसमें हम लोग नौ कन्या नौ बालिका को बुलाकर खिलाते हैं उसमें बालक भी रहता है भैरव बाबा के रूप में I आरती दशमा दिन विसर्जन हो जाता है देविका और साथ ही साथ विजयदशमी भी होती है इसके पीछे बहुत लंबी कहानी है लेकिन मैं आपको छोटा बना कर बताऊंगी कहानी अपने पिता का वचन पूर्ण करने के लिए श्री राम जी 14 वर्षों के लिए वनवास जा रहे थे तभी उनके साथ उनका भाई लक्ष्मण और उनकी पत्नी सीता भी गई थी और वहां वनवास में उन्होंने छोटी सी कुटिया मेरे रहते थे और 1 दिन श्री राम जी किसी काम से गए थे तभी उन्होंने बोला था सीता जी को कि आप घर से बाहर नहीं निकल जाएगा और इसलिए उनके भाई लक्ष्मण ने कुटिया के बाहर एक रेखा बना दी कि कोई भी अंदर नहीं आ सकेगा और तभी रावण एक पंडित का रूप धारण करके सीता जी के पास गया और कुछ खाने को मांगने लगा तभी सीता जी का का दिल पिघल गया और वह खाना देने के लिए रेखा पार कर गई तभी रावण ने उन का हरण कर लिया और जब यह बात श्री राम जी को पता चली तो वह सीता मैया को बचाने के लिए निकल पड़े और उन्हें छोरा के रावण का अंत कर दिया और इसलिए विजयदशमी मनाई जाती है उस दिन रावण के पुतले को जलाया जाता है और कहा जाता है कि रावण के पुतले साथ सारी बुराइयां भी जला दो और नए नए दिन की शुरुआत करो I और जब राम जी 14 वर्षों का वनवास से लौटे तब इसी खुशी में दीवाली मनाई जाती है I

जय हिंद जय भारत

Answered by talentedprincessfans
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बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है और देवी सरस्वती कला, शिक्षा प्रेम आदि की देवी है I

देवी सरस्वती के 9 रूप होते हैं I

1. शैलपुत्री : पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर बेटी के रूप में पैदा होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र-पूजन में पहले दिन इन्हीं की पूजा की जाती है।

2. ब्रह्मचारिणी : नवरात्र में दूसरे दिन देवी के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा-अर्चना की जाती है। देवी का जन्म दक्ष के घर में हुआ था और भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इन्होंने घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है।

3. चंद्रघंटा : भगवान शिव के साथ विवाह के बाद देवी देवी ने मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र धारण करना शरू किया। इसीलिए इस देवी को चंद्रघंटा कहा गया है।

4. कूष्मांडा: नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा होती है। कहते हैं माता को मालपुआ बेहद पसंद है, इसलिए इस दिन प्रसाद के रूप में मालपुआ चढ़ाने के अलावा दूसरों को खिलाने वालों की बुद्धि तेज होती है और इसके बल पर वो अपनी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं।

5. स्कंदमाता: स्कंदमाता की गोद में उनके पुत्र कार्तिकेय विराजमान होते हैं, नवरात्रि के पांचवें दिन इन्हीं की पूजा होती है। पका केला देवी को बहुत प्रिय माना जाता है, इसलिए इस दिन अपनी मनोकामना के साथ केले का प्रसाद चढ़ाएं और गरीबों में बांटें। इससे आपको मनोवांछित फल मिलेंगे, साथ ही रोग-शोक भी दूर होंगे।

6. देवी कात्यायनी: मां दुर्गा के छठे रूप देवी कात्यायनी को शहद बहुत प्रिय माना जाता है, इसलिए प्रसाद में इस दिन शहद अवश्य चढ़ाएं या इससे बनी किसी अन्य खाद्य वस्तु का भी भोग लगा सकते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे आपको देवी की कृपा मिलती है और अभूतपूर्व खूबसूरती और आकर्षण प्राप्त होता है।

7. कालरात्रि: देवी कालरात्रि को प्रलयंकारी माना गया है। मान्यता है कि देवी अगर प्रसन्न हो जाएं तो जीवन से सभी प्रकार के दुखों का नाश होता है। देवी काली को गुड़ बेहद प्रिय माना जाता है, इसलिए इनकी कृपा प्राप्ति के लिए इस दिन गुड़ या इससे बना भोग प्रसाद रूप में अवश्य चढ़ाएं। साथ ही गुड़ का दान भी करें।

8. महागौरी: नवरात्रि की अष्ठमी को मां गौरी की पूजा की जाती है। इस दिन माता को नारियल का प्रसाद चढ़ाएं और ब्राह्मणों को इसका दान भी करें, आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।

9. सिद्धिदात्री: नवरात्रि के आखिरी दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। सफेद तिल इनकी पसंदीदा खाद्य वस्तु है, इसलिए इस दिन की पूजा सफेद तिल और इससे बनी खाद्य वस्तुओं का भोग अवश्य लगाएं। मां सिद्धिदात्री सर्वमनोकामना पूर्ण करने वाला माना जाता है।

और नवरात्रि में नौ रूप की पूजा होती है और माता सरस्वती भी इन्हीं नौ रूप में से है I

जय सरस्वती मां

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Above ans "itztalentedprincess" is better than my ans so please support her.

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