Hindi, asked by thulife, 11 months ago

writ autobiography of a bird in hind​

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Answered by mohsinalam
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ईश्वर की यह सृष्टि नाना प्रकार के जीव-जन्तुओं से भरी पड़ी है, जिसमें जल में रहने वाले, थल में रहने वाले तथा नभ में विचरण करने वाले प्राणी शामिल हैं । इस संसार में नभचर प्राणियों के रूप में विहग, पखेरू, परिन्दे, खग और पक्षी जैसे नामों से उनका विशिष्ट अस्तित्व है ।

अपने पंखों को फैलाये स्वच्छन्द आकाश में उड़ने वाला मैं धरती से अपना नात कभी नहीं तोड़ता, क्योंकि मैं जानता हूं कि चाहे मैं खुले अनन्त आकाश में कितनी ही उड़ान भरूं, मुझे आग तो इस धरती पर ही है । मेरा वास्तविक घर तो इस धरती पर ही है । मेरा वास्तविक घर तो पेड़ों के घोंसलों पर, घरों की छतों पर, वृक्षों के कोटरों पर, कहीं पत्थरों के खालों में होता है । मेरा जन्म  अंडों से होता है ।

अण्डज प्रणियों के रूप में पहचाने जाने वाला मैं इस संसार में विभिन्न रूपों में मिलता हूं । पालतू तथा जंगली इन दोनों रूपों में मेरी विभिन्न प्रजातियां लोगों के लिए सदैव ही आर्स्थ्य का केन्द्र रही हैं । अनगिनत सुन्दर रूपों में पाया जाने वाला मैं छोटे-बड़े अनेक रूपों में पाया जाता हूं ।


मेरी विभिन्न प्रजातियां मनुष्यों के लिए सदा ही जिज्ञासा का विषय रही हैं । कोमल-कठोर रूपों के साथ-साथ मेरी ध्वनियां भी अपनी विशिष्ट स्वर ध्वनियों के साथ मुझे महत्त्व प्रदान करती रही हैं । अपनी स्वर-ध्वनि, रूप-रंग से मैं भी मानव समुदाय की तरह सृष्टि में अपना विशेष महत्त्व रखता हूं ।

प्राचीनकाल में मैंने सन्देशवाहक  की भूमिका में मानव की बहुत सेवा की । सिखाने पर मैं मनुष्यों के बहुत कुछ व्यवहार भी सीखता गया हूं । मनुष्यों  की तरह बोलना, उनकी तरह गाने की कला भी मैंने पायी है । मैं मनुष्यों की तरह स्वतन्त्र रहने  का आदी हूं ।

लेकिन यह अत्यन्त दुःख व अन्याय की बात है कि मनुष्य स्वयं तो स्वतन्त्रता के साथ खुली हवा में सांस लेता है, किन्तु मुझे अपने शौक के लिए पिंजरे में बन्द कर देता है । पराधीनता में चाहे लाख सुख मिल जाये, पर वह किसी काम की नहीं होती ।

उसी तरह मुझे सोने के पिंजरे में कैद कर कितना भी दाना चुगाया जाये, मेरे लिए तो वह विष के सदृश होगा । मेरे पंख काटकर मेरी उड़ने की क्षमता को नष्ट करने वाले उस व्यक्ति से मैं पूछना चाहता हूं कि यदि उसके साथ ऐसा ही होता है, तो उसे कैसा लगेगा ?


ईश्वर की इस सृष्टि में सबको स्वतन्त्रतापूर्वक जीने का हक है । मेरी स्वतन्त्रता को छीनने का हक इंसान को किसने दिया । सुरम्य वनस्थली में मेरा शिकार करके मनुष्य को मांसाहार की इच्छा होती है, तो वह मुझे मारकर खाने में संकोच नहीं करता ।

हम पक्षी तो पेड़-पौधों के अस्तित्व को बीजों और फलों के रूप में इधर-उधर पहुंचाकर फैलाते हैं । संसार का कल्याण करते हैं । हम तो “जीओ और जीने दो” के सिद्धान्त पर विश्वास रखने वाले, मुक्त गगन में विचरण करने वाले प्राणी हैं ।

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Answered by Navyasharma129
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Main hu ek nanhi si chidiya

Sundar hu main in sab ladkiya

Udti main rehti hu

Dana chug chug khati hu

Log mujhe hai bahuut pyare

Ped mujhe hai bahut nyare

Acche lagti hu main sabko yaha

Mujhse acchi milegi kaha?

Din bhar udti rehti main hu

Dekho us khet ka khati gehun

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