write a 300 words essay on corruption in hindi
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hey mate this is your answer i hope you like it-
1. प्रस्तावना:
प्रत्येक देश अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता तथा चरित्र के कारण पहचाना जाता है । भारत जैसा देश अपनी सत्यता, ईमानदारी, अहिंसा, धार्मिकता, नैतिक मूल्यों तथा मानवतावादी गुणों के कारण विश्व में अपना अलग ही स्थान रखता था, किन्तु वर्तमान स्थिति में तो भारत अपनी संस्कृति को छोड़कर जहां पाश्चात्य सभ्यता को अपना रहा है, वहीं भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में वह विश्व का पहला राष्ट्र बन गया है । हमारा राष्ट्रीय चरित्र भ्रष्टाचार का पर्याय बनता जा रहा है ।
2. भ्रष्टाचार का अर्थ तथा स्वरूप:
भ्रष्टाचार दो शब्दों से मिलकर बना है-भ्रष्ट और आच२ण, जिसका शाब्दिक अर्थ है: आचरण से भ्रष्ट और पतित । ऐसा व्यक्ति, जिसका आचार पूरी तरह से बिगडू गया है, जो न्याय, नीति, सत्य, धर्म तथा सामाजिक, मानवीय, राष्ट्रीय मूल्यों के विरुद्ध कार्य करता है ।
भारत में भ्रष्टाचार मूर्त और अमूर्त दोनों ही रूपों में नजर आता है । यहां भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी अधिक गहरी हैं कि शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र बचा हो, जो इससे अछूता रहा है । राजनीति तो भ्रष्टाचार का पर्याय बन गयी है ।
घोटालों पर घोटाले, दलबदल, सांसदों की खरीद-फरोख्त, विदेशों में नेताओं के खाते, अपराधीकरण-ये सभी भ्रष्ट राजनीति के सशक्त उदाहरण हैं । चुनाव जीतने से लेकर मन्त्री पद हथियाने तक घोर राजनीतिक भ्रष्टाचार दिखाई पड़ता है । ठेकेदार, इंजीनियर निर्माण कार्यो में लाखों-करोड़ों का हेरफेर कर रकम डकार जाते हैं ।
शिक्षा विभाग भी भ्रष्टाचार का केन्द्र बनता जा रहा है । एडमिशन से लेकर समस्त प्रकार की शिक्षा प्रक्रिया तथा नौकरी पाने तक, ट्रांसफर से लेकर प्रमोशन तक परले दरजे का भ्रष्टाचार मिलता है । पुलिस विभाग भ्रष्टाचार कर अपराधियों को संरक्षण देकर अपनी जेबें गरम कर रहा है ।
चिकित्सा विभाग में भी भ्रष्टाचार कुछ कम नहीं है । बैंकों से लोन लेना हो, पटवारी से जमीन की नाप-जोख करवानी हो, किसी भी प्रकार का प्रमाण-पत्र इत्यादि बनवाना हो, तो रिश्वत दिये बिना तो काम नहीं
होता । खेलों में भी खिलाड़ी के चयन से लेकर पुरस्कार देने तक भ्रष्टाचार देखने को मिलता है । इस तरह सभी प्रकार के पुरस्कार, एवार्ड आदि में भी किसी-न-किसी हद तक भ्रष्टाचार होता ही रहता है ।
मजाल है कि हमारे देश में कोई भी काम बिना किसी लेन-देन के हो जाये । सरकारी योजनाएं तो बनती ही हैं लोगों की भलाई के लिए, किन्तु उन योजनाओं में लगने वाला पैसा जनता तक पहुंचते-पहुंचते कौड़ी का रह जाता है । स्वयं राजीव गांधी ने एक बार कहा था: ”दिल्ली से जनता के विकास कें लिए निकला हुआ सौ रुपये का सरकारी पैसा उसके वास्तविक हकदार तक पहुंचते-पहुंचते दस पैसे का हो जाता है ।”
3. भ्रष्टाचार के कारण:
भ्रष्टाचार के कारण हैं:
1. नैतिक मूल्यों में आयी भारी गिरावट ।
2. भौतिक विलासिता में जीने तथा ऐशो-आराम की आदत ।
3. झूठे दिखावे व प्रदर्शन के लिए ।
4. झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा पाने के लिए ।
5. धन को ही सर्वस्व समझने के कारण ।
6. अधर्म तथा पाप से बिना डरे बेशर्म चरित्र के साथ जीने की मानसिकता का होना ।
7. अधिक परिश्रम किये बिना धनार्जन की चाहत ।
8. राष्ट्रभक्ति का अभाव ।
9. मानवीय संवेदनाओं की कमी ।
10. गरीबी, भूखमरी तथा बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, जनसंख्या वृद्धि तथा व्यक्तिगत स्वार्थ की वजह से ।
11. लचीली कानून व्यवस्था ।
4. भ्रष्टाचार को दूर करने के उपाय:
भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए उल्लेखित सभी कारणों पर गम्भीरतापूर्वक विचार करके उसे अपने आचरण से निकालने का प्रयत्न करना होगा तथा जिन कारणों से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है, उनको दूर करना होगा ।
अपने राष्ट्र के हित को सर्वोपरि मानना होगा । व्यक्तिगत स्वार्थ को छोड़कर भौतिक विलासिता से भी दूर रहना होगा । ईमानदार लोगों की अधिकाधिक नियुक्ति कर उन्हें पुरस्कृत करना होगा । भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कठोर कानून बनाकर उन्हें उचित दण्ड देना होगा तथा राजनीतिक हस्तक्षेप को पूरी तरह से समाप्त करना होगा ।
5. भ्रष्टाचार का प्रभाव:
भ्रष्टाचार के कारण जहां देश के राष्ट्रीय चरित्र का हनन होता है, वहीं देश के विकास की समस्त योजनाओं का उचित पालन न होने के कारण जनता को उसका लाभ नहीं मिल पाता ।
6. उपसंहार:
भ्रष्टाचार का कैंसर हमारे देश के स्वास्थ्य को नष्ट कर रहा है । यह आतंकवाद से भी बड़ा खतरा बना हुआ है । भ्रष्टाचार के इस दलदल में गिने-चुने लोगों को छोड्कर सारा देश आकण्ठ डूबा हुआ-सा लगता
है । कहा भी जा रहा है: ‘सौ में 99 बेईमान, फिर भी मेरा देश महान ।’ हमें भ्रष्टाचार रूपी दानव से अपने देश को बचाना होगा ।
1. प्रस्तावना:
प्रत्येक देश अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता तथा चरित्र के कारण पहचाना जाता है । भारत जैसा देश अपनी सत्यता, ईमानदारी, अहिंसा, धार्मिकता, नैतिक मूल्यों तथा मानवतावादी गुणों के कारण विश्व में अपना अलग ही स्थान रखता था, किन्तु वर्तमान स्थिति में तो भारत अपनी संस्कृति को छोड़कर जहां पाश्चात्य सभ्यता को अपना रहा है, वहीं भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में वह विश्व का पहला राष्ट्र बन गया है । हमारा राष्ट्रीय चरित्र भ्रष्टाचार का पर्याय बनता जा रहा है ।
2. भ्रष्टाचार का अर्थ तथा स्वरूप:
भ्रष्टाचार दो शब्दों से मिलकर बना है-भ्रष्ट और आच२ण, जिसका शाब्दिक अर्थ है: आचरण से भ्रष्ट और पतित । ऐसा व्यक्ति, जिसका आचार पूरी तरह से बिगडू गया है, जो न्याय, नीति, सत्य, धर्म तथा सामाजिक, मानवीय, राष्ट्रीय मूल्यों के विरुद्ध कार्य करता है ।
भारत में भ्रष्टाचार मूर्त और अमूर्त दोनों ही रूपों में नजर आता है । यहां भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी अधिक गहरी हैं कि शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र बचा हो, जो इससे अछूता रहा है । राजनीति तो भ्रष्टाचार का पर्याय बन गयी है ।
घोटालों पर घोटाले, दलबदल, सांसदों की खरीद-फरोख्त, विदेशों में नेताओं के खाते, अपराधीकरण-ये सभी भ्रष्ट राजनीति के सशक्त उदाहरण हैं । चुनाव जीतने से लेकर मन्त्री पद हथियाने तक घोर राजनीतिक भ्रष्टाचार दिखाई पड़ता है । ठेकेदार, इंजीनियर निर्माण कार्यो में लाखों-करोड़ों का हेरफेर कर रकम डकार जाते हैं ।
शिक्षा विभाग भी भ्रष्टाचार का केन्द्र बनता जा रहा है । एडमिशन से लेकर समस्त प्रकार की शिक्षा प्रक्रिया तथा नौकरी पाने तक, ट्रांसफर से लेकर प्रमोशन तक परले दरजे का भ्रष्टाचार मिलता है । पुलिस विभाग भ्रष्टाचार कर अपराधियों को संरक्षण देकर अपनी जेबें गरम कर रहा है ।
चिकित्सा विभाग में भी भ्रष्टाचार कुछ कम नहीं है । बैंकों से लोन लेना हो, पटवारी से जमीन की नाप-जोख करवानी हो, किसी भी प्रकार का प्रमाण-पत्र इत्यादि बनवाना हो, तो रिश्वत दिये बिना तो काम नहीं
होता । खेलों में भी खिलाड़ी के चयन से लेकर पुरस्कार देने तक भ्रष्टाचार देखने को मिलता है । इस तरह सभी प्रकार के पुरस्कार, एवार्ड आदि में भी किसी-न-किसी हद तक भ्रष्टाचार होता ही रहता है ।
मजाल है कि हमारे देश में कोई भी काम बिना किसी लेन-देन के हो जाये । सरकारी योजनाएं तो बनती ही हैं लोगों की भलाई के लिए, किन्तु उन योजनाओं में लगने वाला पैसा जनता तक पहुंचते-पहुंचते कौड़ी का रह जाता है । स्वयं राजीव गांधी ने एक बार कहा था: ”दिल्ली से जनता के विकास कें लिए निकला हुआ सौ रुपये का सरकारी पैसा उसके वास्तविक हकदार तक पहुंचते-पहुंचते दस पैसे का हो जाता है ।”
3. भ्रष्टाचार के कारण:
भ्रष्टाचार के कारण हैं:
1. नैतिक मूल्यों में आयी भारी गिरावट ।
2. भौतिक विलासिता में जीने तथा ऐशो-आराम की आदत ।
3. झूठे दिखावे व प्रदर्शन के लिए ।
4. झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा पाने के लिए ।
5. धन को ही सर्वस्व समझने के कारण ।
6. अधर्म तथा पाप से बिना डरे बेशर्म चरित्र के साथ जीने की मानसिकता का होना ।
7. अधिक परिश्रम किये बिना धनार्जन की चाहत ।
8. राष्ट्रभक्ति का अभाव ।
9. मानवीय संवेदनाओं की कमी ।
10. गरीबी, भूखमरी तथा बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, जनसंख्या वृद्धि तथा व्यक्तिगत स्वार्थ की वजह से ।
11. लचीली कानून व्यवस्था ।
4. भ्रष्टाचार को दूर करने के उपाय:
भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए उल्लेखित सभी कारणों पर गम्भीरतापूर्वक विचार करके उसे अपने आचरण से निकालने का प्रयत्न करना होगा तथा जिन कारणों से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है, उनको दूर करना होगा ।
अपने राष्ट्र के हित को सर्वोपरि मानना होगा । व्यक्तिगत स्वार्थ को छोड़कर भौतिक विलासिता से भी दूर रहना होगा । ईमानदार लोगों की अधिकाधिक नियुक्ति कर उन्हें पुरस्कृत करना होगा । भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कठोर कानून बनाकर उन्हें उचित दण्ड देना होगा तथा राजनीतिक हस्तक्षेप को पूरी तरह से समाप्त करना होगा ।
5. भ्रष्टाचार का प्रभाव:
भ्रष्टाचार के कारण जहां देश के राष्ट्रीय चरित्र का हनन होता है, वहीं देश के विकास की समस्त योजनाओं का उचित पालन न होने के कारण जनता को उसका लाभ नहीं मिल पाता ।
6. उपसंहार:
भ्रष्टाचार का कैंसर हमारे देश के स्वास्थ्य को नष्ट कर रहा है । यह आतंकवाद से भी बड़ा खतरा बना हुआ है । भ्रष्टाचार के इस दलदल में गिने-चुने लोगों को छोड्कर सारा देश आकण्ठ डूबा हुआ-सा लगता
है । कहा भी जा रहा है: ‘सौ में 99 बेईमान, फिर भी मेरा देश महान ।’ हमें भ्रष्टाचार रूपी दानव से अपने देश को बचाना होगा ।
PraJJwalPandey:
agr answer accha laga ho toh plezz brainliest krde
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Bpifufufuvpcuvhhfuchpupyofufuchghchhvjvjcucucufufcuvhvucyyfigicu
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