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शिक्षा के इतने बुरे हाल...
उनकी बात स्वयंसेवी संस्था प्रथम की रिपोर्ट से भी साबित होती है। प्रथम की पिछली रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकारी स्कूलों में आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले एक चौथाई यानी 25 प्रतिशत बच्चे दूसरी कक्षा की किताबें तक ठीक से पढ़ नहीं पाते जबकि पांचवीं कक्षा के आधे बच्चे दूसरी कक्षा की किताब ठीक से नहीं पढ़ पाते। इस रिपोर्ट के अनुसार दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले उन बच्चों का प्रतिशत साल दर साल बढ़ रहा है जो एक से नौ तक की संख्या तक नहीं पहचान पाते।
स्कूल शिक्षकों के सामान्य ज्ञान का स्तर
अलग-अलग लोगों की ओर से रिकॉर्ड किए गए वीडियो भी यूट्यूब पर उपलब्ध हैं जिसमें दिखता है कि सरकारी स्कूल के शिक्षक का भी सामान्य ज्ञान कितना ख़राब है। हालांकि यह कहना कठिन है कि निजी स्कूलों में शिक्षकों का स्तर कैसा है। ख़ासकर उन निजी स्कूलों का, जो छोटे शहरों और क़स्बों में खुल रहे हैं लेकिन जो तस्वीर सामने है वह सरकारी स्कूल के नाम से डर पैदा करती है। और यह डर अस्वाभाविक भी नहीं है। आख़िर ये उस भारत के बच्चे हैं जिस भारत के राजनेता जनता को आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना बेच रहे हैं।
अमेरिका का उदाहरण सामने है...
अमेरिका को निजीकरण का सबसे बड़ा हिमायती देश माना जाता है लेकिन सच यह है कि प्राथमिक शिक्षा का पूरा जिम्मा वहां सरकार उठाती है। यहां तक कि स्कूल तक लाने-ले जाने का भी। लेकिन हमारी सरकारें पता नहीं क्यों अपनी जनता के साथ ऐसा षडयंत्र कर रही हैं जो अपराध की तरह दिखता है..।
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