write a folk song Lok Geet about rain in Punjabi or Hindi
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मानव जीवन में ऋतुओं का विशेष महत्व है। उनमें एक है वर्षा ऋतु। वर्षा ऋतु को पावस ऋतु, बरखा ऋतु, बरसात ऋतु व जीवन दायिनी ऋतु के नाम से भी जाना जाता है। इस ऋतु में सभी प्रांत के लोग अपनी-अपनी स्थानीय बोलियों में वर्षा लोकगीतों का गायन करते हैं। सरगुजा अंचल की सरगुजिहा लोकगीत में वर्षा का वर्णन मनमोहक ढंग से हुआ है। सरगुजा अंचल में करमा, सुआ, रोपा, बानबहुली और गाना लोकगीत में पावस प्रसंग सुनने को मिलते हैं।
वर्षा की नन्हीं-नन्हीं बूंदे जब गर्मी के ताप से दग्ध धरती पर टपकती है, तो समूचा वातावरण आनन्दमय हो उठता है। जहाँ चारों ओर अभी तक मतवाली कोयलों की स्वर सुनाई दे रहा था। वह स्वर अब दादुर मोर और पपीहों की आवाज में परिवर्तित हो जाता है। पृथ्वी हरी साड़ी धारण किये हुए नवबधु की तरह दिखाई देने लगती है। किसान वर्षा ऋतु की आगमन से खुशी से नाच उठते हैं।
हिन्दी साहित्य में ‘षष्ठ ऋतु वर्णन’ हो या सूफी कवियों का ‘बारह मासा वर्णन’ सभी में वर्षा को विशेष महत्व दिया गया है।
सरगुजिहा लोकगीतों में भी वर्षा की छटा देखते ही बनती है। सरगुजा के लगभग सभी लोक त्यौहार वर्षा ऋतु में मनाये जाते हैं। इन त्यौहारों में सरगुजा अंचलवासी लोकगीत गाकर वर्षा की खुशी मनाते हैं। इनके मुख्य त्यौहार तीजा, नवाखाई, हरियरी, जीविता और करमा है जो वर्षा ऋतु में मनाये जाते हैं। इन त्योहारों में वर्षा लोकगीत गाकर रात में मांदर और मृदंग की थापों के साथ नृत्य करते हैं।