Hindi, asked by kumarpawan782, 1 year ago

Write a newspaper article on reservation in hindi

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Answered by sidrgondane2005
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स्वतंत्रता से पहले जब देश पराधीन था तब दासत्व के जीवन का बोध आसानी से हो जाता था। अंग्रेज 'डिवाइड एंड रुल' की नीति अपनाकर भारतवासियों पर 300 वर्ष तक शासन किये। उन्होंने जाति ,धर्म जैसी चीजों को बारीकी से समझा और हमें बांट दिया। देश स्वतंत्र हुआ पर, अपनों ने आपस में ऊंच–नीच की सीमारेखा खींच दी। ऊंची जाति, नीची जाति की रुपरेखा में जीवन उलझ गया। अहं की भावना ने उच्चवर्ग और निम्नवर्ग को जन्म दिया जिससे दासत्व खत्म नहीं हो पाया। 1882 में महात्मा ज्योतिराव फूले ने शिक्षा सभी तबकों के लिए अनिवार्य करने की मांग उठाई। तब हंटर कमीशन ने इसे अपनी मंजूरी दी। जिससे शिक्षा और सरकारी नौकरी लिए पाने का हक सभी वर्ग को समान तौर पर मिल सके। गांधीजी ने 1932 में ही इसकी पुष्ट नींव रख दी थी। समाज के अंदर पनपे भेदभाव, असुरक्षा और निम्न स्तर के जीवन से छुटकारा पाने की दृष्टि से आरक्षण का जन्म हुआ।

ब्रिटिशर्स के जाने के बाद भी हमारे बुद्धिजीवी नेताओं के अंदर इस पनपे कांटे को नष्ट करने का ख्याल नहीं आया। बल्कि अंग्रेजों की दी गयी विरासत के पदचिन्हों पर नेतागण देश को बढ़ाते चले गये। स्वतंत्र भारत का संविधान बनाते समय बाबा भीमराव अंबेडकर ने इस बात का बकायदा ख्याल रखा और हरिजन और उससे जुड़े दूसरे वर्गों को आरक्षण का दर्जा लिखित तौर पर मिल गया। आरक्षण ने जहां समाज में फैली असमानताओं को दूर कर निम्न वर्ग को जीने का एक अधिकार सामाजिक स्तर पर दिलवाया। आरक्षण के कारण ही तेजस्वी बच्चों को प्रतिष्ठित स्कूलों में पढ़ने का सुअवसर मिल पाया। मेडिकल, इंजीनियरिंग के कालेजों में जहां हर स्तर के लोगों का पढ़ना संभव नहीं हो पाता वहीं आरक्षण के बलबूते समाज के इस तबके ने अपनी हाजिरी लगवायी और फिर एक स्थान बनाया।

आरक्षण ने जहां समाज के लोंगों में समानता लाने का अचूक प्रयास है वहीं बाद में इसका दुरुपयोग भी होने लगा। सरकारी कोटा, मंत्री कोटा स्वयं का आक्षरण कोटा के तहत उन लोगों को एंट्री मिलने लगी जो उस योग्य न थे। जो योग्य न थे उन्हें एंट्री दिलाने के नाम पर भ्रष्टाचार का जन्म हुआ। इस तरह धीरे धीरे समाज का दूसरा तबका जिसे जनरल कैटेगरी कहा जाता है समस्याओं से घिर गया। पहले आरक्षण ओबीसी, एस सी एस टी वर्ग को प्राप्त था। जिसमें धोबी, कुम्हार, नाई, मुस्लिम वर्ग और भी कई जातियां शामिल थीं। इनके अलावा आरक्षण उस तबके को देना आवश्यक था जो विकलांग थे अथवा किसी कारण वश विकलांगता के शिकार हो जाते हैं। इसके बाद परिस्थतियां बदलीं और जाट वर्ग ने अपने अधिकार की मांग आरक्षण के तौर मांगी।

सन 2008 के मध्य में जाट वर्ग ने भारी आन्दोलन किया। तबसे अब तक आन्दोलन जारी है। इसके बाद जैन समाज को भी आरक्षण के दायरे में लाया गया। महिलाओं का आरक्षण बिल 33 प्रतिशत के लिए अटल बिहारी जी की सरकार के समय सदन में पेश हुआ था पर आज तक उस पर अमल नहीं हुआ। हाल ही में अहमदाबाद के 22 वर्षीय हार्दिक पटेल ने पटेल जाति को आरक्षित करवाने का बीड़ा अपने कंधों पर उठा लिया है। इसी तरह 1902 में छत्रपति शाहुजी जो कोल्हापुर के महाराज थे उन्होंने पिछड़ी जातियों के लिए आवाज उठायी और 1902 में ही 50 प्रतिशत नौकरियां कोल्हापुर के प्रशासन में आरक्षित करवायीं।

जेहन में ये सवाल बार-बार कौंधता है कि भारत जो 300 साल बाद जब आजादी की सांस ले पाया। 68 साल में ही देश की दशा इस कगार पर आ पहुंची है कि देश इतनी जर्जर हालत में पहुंच गया कि हर समुदाय को आज आरक्षण की आवश्यकता महसूस होने लगी है। पहले उच्च जाति के लोगों को हर प्रकार की सुविधा समाज ने दी थी। पर प्रताड़ित वर्ग जिन्हें किसी न किसी तरह उच्च जाति के लोगों ने जीना दुर्भर कर रखा था, आरक्षण के बाद कुछ राहत की सांस ली इस वर्ग ने। किसी भी चीज की अति विनाश का कारण बनती है। मुस्लिम शासक इसी बात का फायदा उठा सके। क्योंकि हिन्दु राजा आपस में अपने तुच्छ हितों की प्राप्ति के लिए लड़ते रहते थे। जिससे एकता का अभाव सर्वव्यापी हो चुका था।

अब जब देश 21वीं सदी में तकनीकी क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़े चला जा रहा है। वहीं देश में पनपती असुरक्षा की भावना आज हर जाति, समाज और वर्ग को आरक्षण पाने की दौड़ में शामिल होने को मजबूर कर रहा है। जाट, गुर्जर, महिला और अब पटेल सबको शिक्षा, सरकारी नौकरी में स्थान सुरक्षित करवाना है। महिलाओं को शुरु से घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ा। कहीं न कहीं अमानवीय प्रताड़नाओं को सहने के कारण अपनी उपस्थिति को रेखांकित कराने के उद्देश्य से महिला आरक्षण की मांग पनपी। अब समय इस ओर इंगित कर रहा है जहां अब उच्च वर्ग भी आरक्षण की मांग को लेकर धरने पर न बैठ जायें। क्योंकि एससी, एसटी, मुस्लिम वर्ग, क्रिश्चियन, इन सबके बाद शिक्षा हो या नौकरी सीटें ही कहां बचेंगी कि जनरल वर्ग कुछ प्राप्त हो सकेगा।

सरकार को ऐसी नीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए। आरक्षण में संसोधन का प्रस्ताव ही आरक्षण रुपी काल से देशवासयों को और बड़े पैमाने पर उठी इस क्रांति की आग को बुझा सकता है। आरक्षण नहीं सबको समान रुप से शिक्षा नौकरी की प्राप्ति, उसकी योग्यता के अनुसार होनी चाहिए। देश विकास की सीढियां चढ़ रहा है। ऐसे में देश में विकास और एकजुटता की लहर होनी चाहिए ना कि बंटवारे की आग। एकजुटता देश को आगे ले जायेगा तो बंटवारा चाहे राज्य का हो अथवा आरक्षण के तौर पर इंसान का, खतरनाक ही होगा।

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