write a nibhandh on google majha guru
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आज के जमाने में गुरु का हाल देखकर दिल दहल उठता है। तुलसीदास ने लिखा है, मातु पिता अरू गुरु की बानी बिनहि विचार करिय शुभ जानी। पर लगता है, इस चौपाई से गुरु को बाहर निकालने का समय आ गया है। आज गुरु अपनी गुरुता खो चुके हैं। फिर आज गुरु के भी न जाने कितने विकल्प आ गए हैं। गूगल को ही देख लीजिए।आज आदमी गुरु के पास क्यों जाए? सवाल यह भी कि पहले आदमी गुरु के पास क्यों जाता था। पहले के युग में आगे बढ़ने का रास्ता गुरु ही दिखाता था। लेकिन जैसे-जैसे जीवन में शिक्षा कमाई के उद्देश्य से जुड़ती चली गई, वैसे-वैसे गुरु-शिष्य परंपरा क्षीण होती चली गई।
जो गुरु जितना बड़ा पैसे बनाने का खेल सिखा सके, वह उतना ही सफल बन गया। यह गुरु खेल के क्षेत्र का हो सकता है, अध्यात्म, मेडिकल या इंजीनियरिंग के क्षेत्र का भी। गुरु को जब व्यवसाय ही करना है, तो काहे का संकोच और काहे का मान-सम्मान।
आज गुरु दक्षिणा भी एकलव्य के अंगूठे से आगे बढ़ चुकी है। कौन-सा गुरु अपने दिए हुए ज्ञान और आशीर्वाद के बदले क्या मांग ले, नहीं कह सकते। आज गुरु शिष्या से फेसबुक आईडी से लेकर मोबाइल नंबर तक मांगते नजर आते हैं। ऐसे ही शिष्य भी गुरु के चरण स्पर्श जैसी फार्मेलटी से कोसों दूर हैं। मैंने तुम्हें फीस दी, तुमने बदले में पढ़ाया, ऐसे में कैसा एहसान और कैसा मान-सम्मान! यह तो सीधे-सीधे गिव ऐंड टेक का मामला है।
दूसरी बात यह कि जो काम कभी गुरु करता था, आज वह काम गूगल उससे बेहतर कर रहा है। आज गुरु नहीं, गूगल ज्ञान की खान है। जिन सवालों के जवाब बड़े-बड़े प्रोफेसरों के पास नहीं हैं, उनके जवाब गूगल में उपलब्ध हैं। वह भी बिना गुरु दक्षिणा के।
गूगल किसी को नखरे नहीं दिखाता और अपने हर विद्यार्थी को सम भाव से देखता है। उसके पास अर्जुन और एकलव्य वाला भेदभाव नहीं है। आज के कबीर के शब्दों में कहें, तो सात समंद की मसि करौं, लेखनी सब बनराई, धरती सब कागद करौं, गूगल गुन लिखा न जाय। आज यदि गूगल और गुरु खड़े रहें, तो छात्र गूगल के आगे ही नतमस्तक होगा।
नोट- इसे पढ़ने के बाद गुरु प्रकृति के लोग हतोत्साहित न हों, क्योंकि आज भी करोड़ों लोग ऐसे हैं, जो परिश्रम छोड़ चमत्कार की आस में गुरु की शरण में जाते हैं। ऐसे देश में गुरुओं का धंधा चलते रहने में कोई संदेह नहीं है।