write a paragraph on adhjal gagri chalkat Jaye in Hindi
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अधजल गगरी छलकत जाय का अर्थ है की अल्प ज्ञान वाला व्यक्ति अधिक दिखावा करता है। यह हिंदी के एक प्रमुख लोकोक्ति है। पूरी लोकोक्ति इस प्रकार है- "अधजल गगरी छलकत जाय ,पूरी गगरिया चुपके जाय"। इस लोकोक्ति से तात्यर्य यह है की यदि किसी बर्तन में आधा जल भरा हो और उसको उठा के जब आप चलोगे तो वो छलकेगा ,और यदि बर्तन पूरा भर कर चलोगे तो जल बिलकुल भी नहीं छलकेगा। अर्थात जो मनुष्य सच्चा ज्ञानी होता है वह दिखावा नहीं करता जबकि अल्पज्ञानी व्यक्ति बात-बात पर ज्ञान का प्रदर्शन करता है।
जब किसी व्यक्ति में सच्चे ज्ञान का प्रादुर्भाव होता है तो उसमें स्वतः ही विवेक, संयम व गंभीरता जैसे गुणों का संचार होता है। ऐसा व्यक्ति का चित्त शांत हो जाता है। ऐसा व्यक्ति बड़बोला नहीं होता। वह केवल उतना ही बोलता है जितनी आवश्यकता होती है। इसलिए किसी ने सही ही कहा है की अधजल गगरी छलकत जाय ,पूरी गगरिया चुपके जाय। अज्ञानी व्यक्ति में प्रत्येक विषय में स्वयं को ज्ञानी सिद्ध करने की वृत्ति सहज ही देखी जा सकती है।
यदि हम अपने समाज में चारों ओर देखे तो यह कहावत वर्तमान समय में पूर्ण रूप से चरितार्थ होती दिखाई पड़ती है। ऐसे व्यक्ति की कोई कमी नहीं जो हमेशा अपनी ही तारीफ किया करते है और प्रत्येक बात पर स्वयं को ही सही सिद्ध करने की कोशिश में लगे रहते है। ऐसे व्यक्ति न केवल स्वयं के लिए बल्कि सभी के लिए हानिकारक होते है क्योंकि आधा-अधूरा ज्ञान हमेशा से ही पतन का कारण बना है।
यदि आप टेलीविज़न पर समाचार देखें तो पाएंगे की ऐसे पत्रकारों के कोई कमी नहीं तो इतनी जोर से चिल्ला-चिल्लाकर अपनी बात रखते है की वास्तविक तथ्य छुप ही जाता है। उनका ऐसा करना उनके भीतर के खोखलेपन को दर्शाता है। कुछ ऐसा ही दृश्य आपको मंदिर में भी देखने को मिलेगा। इसीलिए ऐसे लोगो के लिए कहा गया है की थोथा चना बाजे घाना।
छात्र जीवन में कई बार जीवन में ऐसे अवसर आते है जब हम स्वयं को ज्ञानी मानकर अपना अध्ययन बीच में ही में ही छोड़ देते है जिसके कारण हमें भविष्य में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। वास्तव में ज्ञान वह महासागर है जिसकी गहराई अनंत है। थोड़ा सा धन या विद्या पाकर बाह्य आडम्बर स्वयं के साथ विश्वासघात करने के सामान होता है।
आधा-अधूरा ज्ञान घमंड को पुष्ट करता है। ऐसा व्यक्ति उस ढोलक के सामान होता है भीतर से खोखली है परन्तु शोर तेज करती है। अतः ऊँची आवाज़ भीतरी खोखलेपर की निशानी है। अतः हमें स्वयं के ऐसे व्यक्ति के रूप में विकसित करने चाहिए जिसकी कीर्ति उसके गुणों के कारण स्वयं ही चारों और फ़ैल जाए न की उसका बखान करना पड़े। उसे यह बताने की जरूरत नहीं होती कि वह कितना विद्वान है, कितना गुणी है अथवा भला है, कितना परोपकारी है। उसके गुण उसके व्यवहार , आचरण तथा वाणी में स्पष्ट दिखाई दें।
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