Hindi, asked by Blue27, 1 year ago

Write a paragraph on'samajik doori aur swasthya'in Hindi (approx 100 words)

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Answered by yogeshparashar452
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वैसे तो मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है लेकिन यह विडंबना ही है कि इस समय सामाजिक प्राणी को सामाजिक दूरी बनानी बनानी पड़ रही है। यह सामाजिक दूरी जिसे आप अंग्रेजी में सोशल डिस्टेंसिंग कहते हैं, इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है। कोरोना वायरस की महामारी जिस तरह तेजी से पूरी दुनिया में फैली है उसको देखते हुए हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह सोशल डिस्टेंसिंग बना कर रखे। यदि आप चीन, इटली, स्पेन, अमेरिका जैसे देशों के आंकड़ों पर गौर करेंगे तो उससे साफ हो जाता है कि जितना ज्यादा जनसंख्या घनत्व किसी क्षेत्र को होगा, वहां कोरोना वायरस के फैलने की आशंका उतनी ज्यादा होगी। भारत जैसे दुनिया के दूसरे सबसे ज्यादा आबादी वाले देश में इसीलिए सोशल डिस्टेंसिंग बहुत जरूरी है।

दुनियाभर के डॉक्टर और वैज्ञानिक कोरोना वायरस का इलाज ढूँढ़ने में लगे हुए हैं लेकिन फिलहाल इसका जो इलाज उपलब्ध है वह है सोशल डिस्टेंसिंग। यही कारण है कि प्रधानमंत्री ने देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा की है और आजाद भारत के इतिहास में पहली बार रेल सेवाएं, हवाई सेवाएं, बस, मेट्रो और सार्वजनिक परिवहन की सेवाएं स्थगित हैं ताकि लोग एक दूसरे के संपर्क में नहीं आ सकें। यही नहीं भारत के पौराणिक इतिहास को भी उठाकर देखेंगे कि जो प्राचीन मंदिर कभी बंद नहीं हुए वह भी आज श्रद्धालुओं के लिए बंद हैं और देशभर में सभी प्रकार के सामाजिक, धार्मिक आयोजन रद्द हैं।

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दरअसल ऐसे आयोजनों में लोगों की भारी भीड़ होती है ऐसे में आप यह नहीं पता लगा सकते कि कौन-सा व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित है। अब कोरोना वायरस के बारे में यह खुलासा हुआ है कि किसी भी स्वस्थ व्यक्ति में कोरोना वायरस के लक्षण उभरने में सप्ताह से ज्यादा का भी समय लग सकता है। अब मान लीजिये कि आप जिस स्वस्थ व्यक्ति से मिल रहे हैं हो सकता है वह कोरोना वायरस से संक्रमित हो और अनजाने में यह वायरस आपको भी मिल जायेगा और आपसे पता नहीं अन्य किसी को और अन्य किसी से पता नहीं कितनों को मिल जायेगा। एक रिसर्च बताती है कि कोरोना वायरस से प्रभावित व्यक्ति यह संक्रमण 59 हजार लोगों तक पहुँचा सकता है। अब जब यह वायरस इतना खतरनाक है तो आप सोचिये कि यह सोशल डिस्टेंसिंग कितनी जरूरी है।

सोशल डिस्टेंसिंग भारतीयों के लिए नयी बात है इसलिए इसे पूरी तरह अपनाने में थोड़ा समय लग रहा है लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी आ रही है बच्चों और बुजुर्गों को समझाने में। बच्चों को छुटि्टयों में अपने हमउम्र बच्चों के साथ खेलना पसंद है तो बुजुर्गों को भी अपने हमउम्र लोगों के साथ अपने मन की बात या अपने पुराने समय की बात साझा करने में आनंद आता है। अब सोशल डिस्टेंसिंग के कारण ना तो बच्चे और ना बुजुर्ग अपने मित्रों से मिल पा रहे हैं ऐसे में युवाओं की यह जिम्मेदारी बनती है कि उन्हें प्यार से सभी चीजें समझाएं और उनके टाइम पास के लिए कुछ ना कुछ इंतजाम करें क्योंकि बच्चों और बुजुर्गों की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है ऐसे में यदि उन्हें कोरोना वायरस ने पकड़ा तो बहुत मुश्किल हो जायेगी।

सोशल डिस्टेंसिंग में एक बात और जान लेना जरूरी है वह यह कि किसी भी काम से यदि बाहर जाना ही पड़ जाये तो कम से कम छह फीट की दूरी जरूर बनाकर रखें। छह फीट की दूरी रखने से वायरस आप तक नहीं पहुँच पाता। एक बात युवाओं को विशेष रूप से ध्यान रखनी चाहिए कि यदि वह एक बार कोरोना वायरस की चपेट में आये तो वह बड़ी संख्या में दूसरों को संक्रमित कर सकते हैं और ऐसे में कोरोना प्रभावित मरीजों की बढ़ती संख्या हमारी स्वास्थ्य सेवाओं को वैसे ही चरमरा देगी जैसा इस समय इटली और अमेरिका में देखने को मिल रहा है। इसलिए जैसे समाज और देश के काम आना किसी भी नागरिक की जिम्मेदारी होती है उसी तरह इस कठिन समय में समाज से दूरी बनाकर भी आप देश सेवा कर सकते हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि सोशल डिस्टेंसिंग का नियम खुद उन पर भी लागू है और इस समय यही सबसे बड़ी समाज सेवा है।

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बहरहाल, सोशल डिस्टेंसिंग इस वक्त की बड़ी जरूरत है और यह जान लीजिये कि यदि आपने फिलहाल सामाजिक दूरी नहीं बनायी तो अपनों से सदा के लिए दूर हो सकते हैं क्योंकि कोरोना वायरस कितना खतरनाक है इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि यह अब तक दुनिया भर में 17 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है। इसके अलावा यदि कोरोना वायरस प्रभावित व्यक्ति एक बार ठीक भी हो जाता है तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि उसके अंदर इस वायरस के लक्षण दोबारा उभर कर नहीं आयें। साफ है जान है तो जहान है। आज एकल हो जाइये कल सोशल हो जाइएगा।

-नीरज कुमार दुबे

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