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शिक्षा कैसी हो
शिक्षा एक देश का भविष्य है | शिक्षा व्यवस्था ही तय कर देता है की आगे देश किस गति से आगे बढेगा |
हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था कहीं अच्छी पर ज्यादातर बदहाल है | आज भी उद्योग जगत के बड़े बड़े नाम इंगलैंड और अमेरिका के होते हैं | खुद हमारे देश के बड़े उद्योगपति विदेशों से पढ़कर ही आते हैं | देश के युवा की पहली पसंद अमेरिका ही है | पर वो क्यों? यहाँ की शिक्षा आज भी बस अंक बटोरने में सिमटी हुई है | शिक्षा ऐसी न हो जिसमें बस अंक लाने की होड़ हो या बस किसी तरह पास कर जाएँ | शिक्षा में ज्यादा समझने पर जोर देना चाहिए | विद्यार्थी जितना हो सके उतने अच्छे तरीके से अपने हर एक विषय के आधार को समझें | उससे उन्हें उस विषय को चुनने में आसानी होगी जिसे वे आगे चलकर कार्यक्षेत्र बनाना चाहते हैं | स्कूलों और कॉलेजों में इतनी आजादी और व्यवस्था होनी चाहिए की वे और अपने पसंद के विषय को विस्तार से पढ़ सकें, उन पर शोध कर सकें | भारत में नौकरी देने की व्यवस्था ही गलत है | अक्सर लोगों की काबिलियत पर नहीं बल्कि उनके डिग्री पर नौकरी तय की जाती है, वो भी बड़े कॉलेज के नाम जुड़े हों तब रास्ता और भी आसान होता है | कॉलेज और कंपनियां आपस में सौदा कर विद्यार्थियों के भविष्य को बिगाड़ते हैं | व्यवसाय से जुड़े नौकरी को उसके विशेषज्ञ को देने की बजाय कंपनियां पैसा बचाना चाहती हैं जिससे वे पहले से मौजूद विज्ञान के छात्रों या मैनेजरों को थोड़ी बहुत कामचलाऊ ज्ञान देकर और थोड़ी वेतन बढ़ाकर रख लेते हैं |
शिक्षा ऐसी हो की विद्यार्थी अपने मन से पढ़ें न की किसी को पीछे पड़ना पड़े | शिक्षक बस भेड़ बकरियों की तरह बहाल कर लेने की बजाय उनकी काबिलियत और लगन को देखते हुए बहाल हों | वे बच्चों का भविष्य बेहतर बना पाएंगे | वे बस पास कर देने के लिए नहीं बल्कि एक उज्जवल युवा तैयार करने के लिए तत्पर हों | स्कूलों में सही तरह का माहौल हो | बैठने की जगह, हवादार कमरे, सही तरह की रौशनी, कुर्सी मेज, रंगीन दीवारें| जो किसी बच्चे को कक्षा में घुसने के लिए प्रेरित करे | लगातार छः सात घंटे एक ही कक्षा में बैठने की बजाए बीच बीच में ही खेल और रचनात्मक कार्य हों जैसे आर्ट | बस शिक्षकों की कमी पूरी आर देना और परीक्षा लेकर पास कर देने के सिस्टम को बदलना होगा | विदेशों जैसे हर विषय पर निर्धारित क्रेडिट हो | किसी एक लेवल को पास करने की बंदिश न हो | विषयों का क्रेडिट लाकर उन्हें पास हो सकें | और एक ख़ास विषय इ साथ कोई भी दूसरे छोटे छोटे विषयों का चयन करने की आजादी हो | उन छोटे विषयों का अलग कक्षा हो जहाँ उसे चुनने वाले किसी भी क्षेत्र इ विद्यार्थी एक साथ पढ़ सकें | यह उन्हें अलग से कुछ और करने की छूट देगा और नयी चीजें सीखते रहने को बढ़ावा देगा | विदेशों में पढ़ने का सपना सभी देखते हैं पर जब वैसी व्यवस्था यहाँ होने लगे तो इस देश में भी बड़े वैज्ञानिक, उद्योगपति, डॉक्टर इत्यादि की भरमार हो |
Answer:
युवकों को अनिवार्यत: सैन्य प्रशिक्षण, उसी प्रकार संत, देशभक्त एवं क्रांतिकारियों की कथाएं अभ्यास हेतु दिए जाने से उनमें देश के लिए जीने एवं मरने की प्रेरणा मिलेगी ।
शिक्षा कैसी हो, इसका विचार एवं कृत्य आवश्यक है । भारत में जो जो क्रांतिकारी हुए हैं, जो संत हुए हैं, जो देशभक्त स्वतंत्रता के लिए लडे एवं हुतात्मा हुए, जो शास्त्रज्ञ हुए, जो समाज की उन्नति के लिए ही जीए, जिन्होंने समाज के उत्थान हेतु संगठन निर्माण करने में अपना जीवन समर्पित किया, उन सभी का संपूर्ण चरित्र इस युवा पीढी को, छोटे बच्चों को अभ्यास के लिए होना ही चाहिए । बच्चों को अनिवार्यत: २ वर्ष सैन्य प्रशिक्षण दिया जाए । संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम, समर्थ रामदास इनके ग्रंथ विद्यार्थियों को अभ्यास हेतु रखें जाएं । क्रांतिकारी भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, वासुदेव बलवंत फडके, चाफेकर एवं वीर सावरकर इन सभी की कथाएं युवाओं को ज्ञात हो ।
जीवन कैसे शुद्ध आचरण का, प्रामाणिक, पारदर्शी तथा कष्ट एवं मेहनत करनेवाला तथा देशभक्तिपूर्ण हो ? देश के लिए जीने एवं मरने की प्रेरणा हो, ऐसी ही शिक्षा हो, तभी देश वैभवशाली होगा । – श्री. अनिल कांबले (मासिक लोकजागर, अमरनाथ यात्रा विशेषांक २००८)
उच्चशिक्षित होने की अपेक्षा सुसंस्कारों की शिक्षा महत्वपूर्ण
वर्तमान बच्चों एवं युवाओं को पंचतंत्र, इसापनीति, रामायण, महाभारत, छत्रपति शिवाजी महाराज एवं क्रांतिकीरों की कथाएं ज्ञात नहीं होती; क्योंकि उनके पालकों ने उन्हें वे नहीं बताई हैं । हैरी पाॅटर पढकर सुसंस्कारित पीढी निर्मित नहीं होगी । स्वराज्य मिलने के पिछले ६० वर्षों में हम सुसंस्कारी पीढी का निर्माण ही नहीं कर सके, यह लज्जास्पद बात है । उच्चशिक्षित होना अलग एवं संस्कारित होना अलग है ! – डॉ. सच्चिदानंद शेवडे (श्रीगजानन आशिष, मार्च २०११)
मूल्यशिक्षा
आज का युवा विद्यार्थी विनाशकारी (destructive) हो गया है । उसे उन दुष्प्रवृत्तियों से परावृत्त करने के लिए विश्वभर में शिक्षाविदों ने मूल्यशिक्षापर (value education) अधिष्ठित अभ्यासक्रम बताया है । मूल्यशिक्षा के कारण उसमें विद्यमान असुरी प्रवृत्तियों का नाश होकर वह आदर्श नागरिक होगा, ऐसा इन शिक्षाशास्त्रज्ञों का दावा है ।
चरित्रनिर्मिति की शिक्षा
जीवननिर्मिति, मानवनिर्मिति, शील तथा चरित्र की निर्मिति एवं विचारों की एकरूपता इन पांच बातों की शिक्षा मिलने से तथा उनका पालन करने से मनुष्य आदर्श होगा ! वर्तमान शिक्षा अर्थात आपके मस्तिष्क में भरी गई केवल जानकारी । इस मस्तिष्क में भरी गई जानकारी को ठीक से न समझ पाने के कारण संपूर्ण जीवन हम उलझे रहते हैं । हमें जीवननिर्मिति, मानवनिर्मिति, शील एवं चरित्र की निर्मिति करनेवाली एवं विचार एकरूप करनेवाली शिक्षा चाहिए । आप केवल यह पांच विचार समझकर अपने जीवन में उनका पालन करें, तो आप संपूर्ण ग्रंथालय मुखोगत व्यक्ति से भी अधिक शिक्षित होंगे । यह शिक्षा राष्ट्र के आदर्शों को ध्यान में रखकर होगी एवं संभवत: वह प्रायोगिक होगी । – श्री. राजाभाऊ जोशी (मासिक लोकजागर, दिवाली विशेषांक २००८)
चरित्रसंपन्न युवा पीढी निर्माण होनेके लिए सत्य, प्रामाणिकता युक्त एवं पारदर्शी व्यवहारवाली शिक्षा युवा पीढी को प्राप्त हो, तो ही वह पीढी सुधरेगी एवं देश वैभवशाली होगा । आज देश में आतंकवाद, भ्रष्टाचार, महंगाई, जनसंख्या विस्फोट, बेरोजगारी एवं पानी की कमी जैसे प्रश्न कल अराजकता निर्माण करेंगे । उसके लिए चरित्र निर्माण करनेवाली शिक्षा यही उत्तर है । – श्री. मनोहर जोशी (लोकजागर, ख्रिस्ताब्द २०११)
धर्मशिक्षा
नैतिक मूल्यों की रक्षा होना, इस हेतु केवल ऊपरी उपाय-नियोजन उपयोगी नहीं हैं । इस हेतु सभी को धर्मशिक्षा देना आवश्यक है । धर्मपालन से समाज के सत्वगुण में वृद्धि होती है । उससे नैतिक मूल्यों की रक्षा करने का आत्मबल मिलता है । यह आत्मबल ही आज की शिक्षाप्रणाली नहीं दे सकती । समाज का सत्वगुण बढने से सभी क्षेत्रों में हो रहे अधःपतन को रोकना संभव होगा ।