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छोटी बस्तियाँ फैलकर गाँव , गाँव फैलकर कस्बे , कस्बे-नगर तथा नगर-महानगर में परिवर्तित हो जाया करते है , ऐसा प्रकृति का नियम है | परन्तु जब से देश के ग्रामीण उद्दोग –धन्धे नष्टप्राय: होने लगे तो नगरो तथा महानगरो का विकास प्रारम्भ होने लगा | तभी से वास्तव में महानगरीय जीवन समस्या –प्रधान बनने लगा | ग्राम- व्यवस्था के चरमराने के उपरान्त नगरो –महानगरो पर सबसे पहले तो आबादी का दबाव पड़ना प्रारम्भ हो गया | एक तो नहरों – महानगरो की जनसंख्या वृद्दि की रफ्तार पहले ही तेज थी , उस पर काम – धन्धे की खोज में देहातो पलायन कर आने वाले लोगो ने दबाव को और भी बढ़ा दिया | अंत: निरन्तर बढती जनसंख्या का दबाव महानगरो की एक विकट समस्या है दूसरी समस्या है आवास की , जो बढती जनसंख्या का परिणाम है | जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में आवास की व्यवस्था न हो पाने के कारण , महानगरो के आलिशान भवनों की बगल में झोपड-पट्टियों का निर्माण होने लगा | धीरे- धीरे इसने एक विकट समस्या का रूप धारण कर लिया है | फलस्वरूप महानगरो में गन्दगी बढती गई, जिसका निदान आज तक भी संभव न हो सका |
इनके अतिरिक्त निरन्तर हो रहे औद्दोगीकरण ने भी महानगरीय जीवन को कई तरह से प्रदूषित एव समस्याग्रस्त बना रखा है | इन उद्दोगो , कल –कारखानों व् छोटी- छोटी फैक्टरियों से निकलने वाले धुएँ, कचरे, गन्दे पानी आदि के फैलने से वातावरण दूषित होता जा रहा है | उस पर तरह – तरह के बढ़ते वाहनों का दबाव उनसे निकलता धुआं और जहरीली गैसों ने महानगरो के वातावरण को विषाक्त एव दमघोटू बना दिया है | परिणामस्वरूप पर्यावरण प्रदूषित होता जा रहा है | वहाँ के नागरिक उस दमघोटू माहौल में रहने को विवश है इनके साथ-साथ ध्वनि – प्रदुषण की समस्या भी बड़ी गम्भीर है |
महानगरो की एक अन्य समस्या है उनके आकर का बेतरतीबी से लगातार बढ़ते जाना, जिसके फलस्वरूप वहाँ शुद्ध हवा, पानी का न मिल पाना | बिजली की समस्या तो वहाँ सदा से ही व्याप्त है | वहाँ के लोगो का आधा जीवन घर से कार्यलय जाने तथा आने में व्यतीत हो जाता है | वहाँ की जनसंख्या के अनुपात में यातायात के साधनों के अभाव के कारण लोगो को बसों में धक्के – मुक्के खाकर आना जाना पड़ता है | महानगर निवासियों को ताजे फल, दूध तथा सब्जियों के लिए प्राय : टीआरएस जाना पड़ता है | राशन तक भी अच्छा और समयबद्ध रूप से नही मिल पाता है |