write a poem on life in hindi
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सूरज को घेरे बादलों की टोली इस कदर ,
लगे मन में हार गया सूरज हथियार डाल झुककर,
पर क्या बात करूँ सूरज के बल का ,
निकले किरण चीड़कर सीना बादलों का,
क्या सूरज की यह वीरता उसका काम है ?
या फिर जीना इसी का नाम है ?
एक की हार पर दूसरे की जीत होती है ,
हार में दुखी और जीत में ख़ुशी होना तो ,
हमने ज़माने से ही तो सीखा है ,
वरना हार को जीवन का हिस्सा मानकर ,
कइयों को जीतते देखा है ,
क्या यह हार जीत घर -घर का किस्सा है ?
या फिर जीवन इसी का एक हिस्सा है ?
नदी व समंदरों को पार करते नाव खेवैया की तरह,
जो जूझता तूफानों व ज्वार - भाटों से ,
लिए विस्वास मन में इस तरह ,
जैसे धारा को बदल दे ढलान भू की तरह,
क्या यहाँ केवल खेवैये के साहस दर्शाता है ?
या फिर जीवन इसका पर्यायवाची होता है ?
पहन नए वस्त्र पुराने का गमन होता ,
तो आखिर क्यों अपने के बिछुड़ने से खालीपन एहसास होता,
खैर मैं कौन हूँ जो बदलूँ सबके बनाये रितों को,
मोह माया के इसी जाल में तो एक रहता संसार है,
ठीक से समझे तो जीवन इसी की गीत गाता है ।
सुखी रोटी भी पनीर सी लगती है ,
जब वह सुबह से भूखे को शाम में मिलती है,
परेशानियाँ तो खैर सभी इंसान को होती है ,
किन्तु जिन्दा तो वही इंसान है , जो
ढालता है खुद को उन परेशानियों में ,
वरना देखा है मैंने कइयों को मौत के गले लगाते,
कायरों की तरह, भागते अपने परछाइयों से डरकर,
सच तो यही है कि जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है।
लगे मन में हार गया सूरज हथियार डाल झुककर,
पर क्या बात करूँ सूरज के बल का ,
निकले किरण चीड़कर सीना बादलों का,
क्या सूरज की यह वीरता उसका काम है ?
या फिर जीना इसी का नाम है ?
एक की हार पर दूसरे की जीत होती है ,
हार में दुखी और जीत में ख़ुशी होना तो ,
हमने ज़माने से ही तो सीखा है ,
वरना हार को जीवन का हिस्सा मानकर ,
कइयों को जीतते देखा है ,
क्या यह हार जीत घर -घर का किस्सा है ?
या फिर जीवन इसी का एक हिस्सा है ?
नदी व समंदरों को पार करते नाव खेवैया की तरह,
जो जूझता तूफानों व ज्वार - भाटों से ,
लिए विस्वास मन में इस तरह ,
जैसे धारा को बदल दे ढलान भू की तरह,
क्या यहाँ केवल खेवैये के साहस दर्शाता है ?
या फिर जीवन इसका पर्यायवाची होता है ?
पहन नए वस्त्र पुराने का गमन होता ,
तो आखिर क्यों अपने के बिछुड़ने से खालीपन एहसास होता,
खैर मैं कौन हूँ जो बदलूँ सबके बनाये रितों को,
मोह माया के इसी जाल में तो एक रहता संसार है,
ठीक से समझे तो जीवन इसी की गीत गाता है ।
सुखी रोटी भी पनीर सी लगती है ,
जब वह सुबह से भूखे को शाम में मिलती है,
परेशानियाँ तो खैर सभी इंसान को होती है ,
किन्तु जिन्दा तो वही इंसान है , जो
ढालता है खुद को उन परेशानियों में ,
वरना देखा है मैंने कइयों को मौत के गले लगाते,
कायरों की तरह, भागते अपने परछाइयों से डरकर,
सच तो यही है कि जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है।
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Anonymous:
superb and fab poem !
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