Write a poem on nature in hindi?
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काँप उठी…..धरती माता की कोख !! (डी. के. निवातियाँ)कलयुग में अपराध काबढ़ा अब इतना प्रकोपआज फिर से काँप उठीदेखो धरती माता की कोख !!समय समय पर प्रकृतिदेती रही कोई न कोई चोटलालच में इतना अँधा हुआमानव को नही रहा कोई खौफ !!कही बाढ़, कही पर सूखाकभी महामारी का प्रकोपयदा कदा धरती हिलतीफिर भूकम्प से मरते बे मौत !!मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारेचढ़ गए भेट राजनितिक के लोभवन सम्पदा, नदी पहाड़, झरनेइनको मिटा रहा इंसान हर रोज !!सबको अपनी चाह लगी हैनहीं रहा प्रकृति का अब शौक“धर्म” करे जब बाते जनमानस कीदुनिया वालो को लगता है जोक !!कलयुग में अपराध काबढ़ा अब इतना प्रकोपआज फिर से काँप उठीदेखो धरती माता की कोख !!
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Answer:
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे
ये हवाओ की सरसराहट,
ये पेड़ो पर फुदकते चिड़ियों की चहचहाहट,
ये समुन्दर की लहरों का शोर,
ये बारिश में नाचते सुंदर मोर,
कुछ कहना चाहती है हमसे,
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे।।
ये खुबसूरत चांदनी रात,
ये तारों की झिलमिलाती बरसात,
ये खिले हुए सुन्दर रंगबिरंगे फूल,
ये उड़ते हुए धुल,
कुछ कहना चाहती है हमसे,
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे।।
ये नदियों की कलकल,
ये मौसम की हलचल,
ये पर्वत की चोटियाँ,
ये झींगुर की सीटियाँ,
कुछ कहना चाहती है हमसे,
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे।।
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