write a report on science exhibition in hindi
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एक प्रदर्शनी की सैर पर निबंध | Essay on Visit to an Exhibition in Hindi!
दिल्ली एक महानगर है । इसकी महिमा अन्य नगरों से सर्वथा अलग है । दिए ली कई बातों के लिए विशेष प्रसिद्ध है । प्रदर्शनियां भी इनमें से एक हैं ।
सारे सालभर यहां छोटी-बड़ी अनेक प्रदर्शनियां लगती रहती हैं । चाचा नेहरू के जन्मदिन पर प्रगति मैदान में प्रतिवर्ष लगनेवाली प्रदर्शनी की तो कोई समानता ही नहीं । इस वर्ष मुझे प्रगति मैदान की इस प्रदर्शनी को देखने का अवसर मिला । मैं अपनी माताजी और बड़ी बहिन सरला के साथ वहां गया ।
रविवार का दिन था । मौसम सुहावना था और उजली धूप निकली हुई थी । हम लोग तिपहिया स्कूटर से वहां पहुंचे । बाहर टिकिट खिड़कियों पर लम्बी-लम्बी कतारे थीं । सर्वत्र देखने वालों की अपार भीड़ थी ।
पार्किंग स्थान पर हजारों कारें खड़ी थीं । बड़ा आश्चर्यजनक और विशाल दृश्य था ।
लोगबाग विभिन्न रंग-बिरंगे परिधानों में सजे-धजे बड़े सुन्दर लग रहे थे । क्यू में खड़े होकर मैंने तीन टिकिट खरीदे और फिर अन्दर गये । अन्दर चारों ओर बड़ा मनोरम दृश्य था । लोगबाग प्रदर्शनी का आनन्द ले रहे थे, स्टालों पर खा-पी रहे थे या मुलायम घास पर विश्राम कर रहे थे । जगह-जगह, आइसक्रीम, ठंडेपेयों, चाय, नमकीन आदि की दुकानें थीं । खाना-खाने का भी जगह-जगह प्रबंध था ।
मनोरंजक के भी अनेक साधन थे । प्रदर्शनी का बहुत विस्तार था । हम लोग द्वार संख्या एक से अंदर गये । सबसे पहले हमने ग्रामीण झांकिया देखि । यहाँ ग्रामीण उद्योगों की बड़ी सुंदर झांकि देखने को मिली । कटपुतली को खेल, लोक नृत्य और दूसरे मनोरंजन के साधन भी वहाँ थे । मेरी माताजी ने वहां से एक रेशमी साड़ी खरीदी और बहिन ने लाख की सुंदर चूड़ियां ।
हम एक के बाद दूसरे पेवेलियन (मंडप) में गये और प्रदर्शित वस्तुओं को देखा । हर मंडप बहुत विशाल और सुन्दर था । सभी वस्तुएं बहुत अच्छी तरह सजाइ गई थीं । देखकर मन मुग्ध हो गया । इतनी विशाल प्रदर्शनी को देखने का यह मेरा पहला अवसर था ।
दिल्ली एक महानगर है । इसकी महिमा अन्य नगरों से सर्वथा अलग है । दिए ली कई बातों के लिए विशेष प्रसिद्ध है । प्रदर्शनियां भी इनमें से एक हैं ।
सारे सालभर यहां छोटी-बड़ी अनेक प्रदर्शनियां लगती रहती हैं । चाचा नेहरू के जन्मदिन पर प्रगति मैदान में प्रतिवर्ष लगनेवाली प्रदर्शनी की तो कोई समानता ही नहीं । इस वर्ष मुझे प्रगति मैदान की इस प्रदर्शनी को देखने का अवसर मिला । मैं अपनी माताजी और बड़ी बहिन सरला के साथ वहां गया ।
रविवार का दिन था । मौसम सुहावना था और उजली धूप निकली हुई थी । हम लोग तिपहिया स्कूटर से वहां पहुंचे । बाहर टिकिट खिड़कियों पर लम्बी-लम्बी कतारे थीं । सर्वत्र देखने वालों की अपार भीड़ थी ।
पार्किंग स्थान पर हजारों कारें खड़ी थीं । बड़ा आश्चर्यजनक और विशाल दृश्य था ।
लोगबाग विभिन्न रंग-बिरंगे परिधानों में सजे-धजे बड़े सुन्दर लग रहे थे । क्यू में खड़े होकर मैंने तीन टिकिट खरीदे और फिर अन्दर गये । अन्दर चारों ओर बड़ा मनोरम दृश्य था । लोगबाग प्रदर्शनी का आनन्द ले रहे थे, स्टालों पर खा-पी रहे थे या मुलायम घास पर विश्राम कर रहे थे । जगह-जगह, आइसक्रीम, ठंडेपेयों, चाय, नमकीन आदि की दुकानें थीं । खाना-खाने का भी जगह-जगह प्रबंध था ।
मनोरंजक के भी अनेक साधन थे । प्रदर्शनी का बहुत विस्तार था । हम लोग द्वार संख्या एक से अंदर गये । सबसे पहले हमने ग्रामीण झांकिया देखि । यहाँ ग्रामीण उद्योगों की बड़ी सुंदर झांकि देखने को मिली । कटपुतली को खेल, लोक नृत्य और दूसरे मनोरंजन के साधन भी वहाँ थे । मेरी माताजी ने वहां से एक रेशमी साड़ी खरीदी और बहिन ने लाख की सुंदर चूड़ियां ।
हम एक के बाद दूसरे पेवेलियन (मंडप) में गये और प्रदर्शित वस्तुओं को देखा । हर मंडप बहुत विशाल और सुन्दर था । सभी वस्तुएं बहुत अच्छी तरह सजाइ गई थीं । देखकर मन मुग्ध हो गया । इतनी विशाल प्रदर्शनी को देखने का यह मेरा पहला अवसर था ।
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