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वर्तमान में 28.5 प्रतिशत भारतीय आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है। गरीब की श्रेणी में वह लोग आते हैं जिनकी दैनिक आय शहरों में 33 रुपये और गांवों में 27 रुपये से कम है। क्या आपको लगता है कि यह राशि ऐसे देश में एक दिन के भी गुजारे के लिए काफी है जहां खाने की चीजों के भाव आसमान छू रहे हैं? इससे यह साफ होता है कि गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है। सांख्यिकीय आंकड़े के अनुसार 40 रुपये प्रतिदिन कमाने वाला भी गरीब नहीं है, पर क्या वह जीवन की उन्हीं कठिनाइयों का सामना नहीं कर रहा?
भारत में गरीबी की गणना करने के लिए घरेलू खर्च को ध्यान में रखा जाता है। इसमें लोगों की भोजन खरीदने की क्षमता और अखाद्य पदार्थ खरीदने की क्षमता की गणना की जाती है। हालांकि शहरों का हाल कुछ हद तक वैसा ही है, पर ग्रामीण कल्याण कार्यक्रमों से भारत के ग्रामीण क्षेत्र में बहुत परिवर्तन हुआ है। इन प्रयासों से शहरों के मुकाबले गांवों की गरीबी में तेजी से कमी आई है।
गरीबी किसी भी व्यक्ति या इंसान के लिये अत्यधिक निर्धन होने की स्थिति है। ये एक ऐसी स्थिति है जब एक व्यक्ति को अपने जीवन में छत, जरुरी भोजन, कपड़े, दवाईयाँ आदि जैसी जीवन को जारी रखने के लिये महत्वपूर्ण चीजों की भी कमी लगने लगती है।
निर्धनता के कारण हैं अत्यधिक जनसंख्या, जानलेवा और संक्रामक बीमारियाँ, प्राकृतिक आपदा, कम कृषि पैदावर, बेरोज़गारी, जातिवाद, अशिक्षा, लैंगिक असमानता, पर्यावरणीय समस्याएँ, देश में अर्थव्यवस्था की बदलती प्रवृति, अस्पृश्यता, लोगों का अपने अधिकारों तक कम या सीमित पहुँच, राजनीतिक हिंसा, प्रायोजित अपराध, भ्रष्टाचार, प्रोत्साहन की कमी, अकर्मण्यता, प्राचीन सामाजिक मान्यताएँ आदि जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भारत में निर्धनता को निम्न सरकारी समाधानों के द्वारा घटाया जा सकता है हालाँकि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए देश के सभी नागरिकों के व्यक्तिगत प्रयासों की आवश्यकता है।