write a short note of andher nagri chaupat raja
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मिठाई लेकर वह खुशी-खुशी अपनी कुटिया पर पहुंचा। उसने गुरु जी को सारी बातें बतलाईं। गुरुजी ध्यानमग्न होकर बोले। बेटा गंगाधर जितना शीघ्र हो हमें यह स्थान त्याग देना चाहिए। यह अंधेर नगरी है लगता है यहां का राजा महाचौपट और मूर्खाधिराज है। कभी भी हमारे प्राणों पर संकट आ सकता है।
परन्तु शिष्य को यह सुझाव बिल्कुल पसंद नही आया। वह गुरु जी से बोला, गुरुजी मुझे तो यह स्थान बहुत भा गया है। यदि आपका आदेश हो तो कुछ दिन रह लूं।
गुरुजी को उसकी बात पर हंसी आ गई। बोले ठीक है बेटा टके सेर की मिठाई खाकर थोड़ा सेहत बना ले। यदि कोई संकट आए तो मुझे याद कर लेना। यह कहकर उन्होंने वह स्थान त्याग दिया।
गंगाधर रोज प्रात: नगर में भिक्षाटन को निकलता और जो एक-दो रुपया प्राप्त होता उसकी अच्छी-अच्छी मिठाई खरीदकर उसका सेवन करता। इस प्रकार कई माह गुजर गए। खा-पीकर वह काफी मोटा-तगड़ा हो गया।
एक दिन गरीब विधवा कलावती की बकरी पंडित दीनदयाल के खेत में लगी फसल चर रही थी। दीनदयाल ने गुस्से में आकर उस पर डंडे से प्रहार किया जिससे बकरी मर गई। रोती कलपती कलावती न्याय हेतु राजा के पास पहुंची। उसकी बातें सुनकर राजा ने हुक्म दिया, जान के बदले जान ले लो।
कोतवाल ने पकड़कर दीनदयाल को राजा के सामने पेश किया। राजा ने दीनदयाल से कहा या तो बकरी को जिंदा कर दो अथवा फांसी पर चढ़ो। भला दीनदयाल बकरी को जिंदा कैसे करता? सो जल्लाद उसे लेकर फांसी देने पहुंचा।
दीनदयाल दुबला पतला व्यक्ति था। फांसी का फंदा उसके गले में काफी ढीला पड़ रहा था। जल्लाद राजा से कहने लगा, माई-बाप फांसी का फंदा इसके गले के आकार से काफी बड़ा है। कुछ देर तक राजा चिंतन करता रहा और जल्लाद से बोला, जा आसपास में जो सब से मोटा दिखाई पड़े उसे फांसी दे दो।
जल्लाद नगर कोतवाल के साथ मोटे व्यक्ति की तलाश में निकल पड़ा। जब वे गंगाधर की कुटिया के निकट से गुजर रहे थे तब वहां वह तेल मालिश कर दण्ड-बैठक कर रहा था। उसे देखकर दोनों रूक गए। कोतवाल बोला, लो हो गया काम हमारा शिकार मिल गया।
गंगाधर को पकड़कर वधस्थल तक लाया गया। उसने राजा से गिड़गिड़ाकर कहा, सरकार मेरा क्या कसूर है जो फांसी दे रहे है। राजा ने कहा, फांसी का फंदा तुम्हारे गले के नाप का है, इसलिए फांसी के तख्त पर तुम्हें ही चढ़ना होगा।
उसे गुरूजी की बातें याद आ गयी। वह बोला थोड़ रूक जाइए मुझे अपने गुरु का ध्यान करने दीजिए। उसके ध्यान लगाते ही गुरु जी वहां पहुंच गए। उन्होंने एकांत में उसके कान में कहा, देखा न टके सेर मिठाई खाने का मजा। अब जैसा कहता हूं वैसा ही करना।
गुरुजी जल्लाद से बोले, मैं भी मोटा हूं पहले मुझे फांसी पर चढ़ा, उधर गंगाधर जल्लाद का हाथ खींचते हुए बोला नहीं-नहीं पहले मुझे फांसी दे। अब एक ओर जल्लाद को गुरुजी खींच रहे थे तो दूसरी ओर से गंगाधर।
गुस्साकर राजा बोला- फांसी के नाम से अच्छे-अच्छों के होश उड़ जाते हैं और एक तुम दोनों हो कि, फांसी चढने के लिए मारा-मारी कर रहे हो। इसका कारण क्या है?
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