Hindi, asked by creativedemon, 11 months ago

Write a short script of akbari lota in hindi​

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Answered by Human100
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अन्नपूर्णानन्द की कहानी “अकबरी लोटा” एक हास्य पूर्ण कहानी है। लेखक ने कहानी को बहुत ही रोचंक तरीके से प्रस्तुत किया गया है और साथ के साथ बताया गया है कि परेशानी के समय में परेशान न होकर समझदारी से किस तरह से एक समस्या का हल निकाला जा सकता है और दूसरी बात इस कहानी में यह भी बताया गया है कि एक सच्चा मित्र ही मित्र के काम आता है और उसके लिए बहुत कुछ कर गुजर जाता है। कहानी के माध्यम से लेखक हमें सीख देना चाहता है कि सही वक़्त पर सही समझ का उपयोग करना कितना जरुरी है। इस कहानी के मुख्य पात्र हैं – लाला झाऊलाल और उनके मित्र पंड़ित बिलवासी मिश्र जी।

Answered by thirishanaidu
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“अकबरी लोटा” कहानी के मुख्य पात्र लाला झाऊलाल का काशी के ठठेरी बाजार में एक मकान था। मकान के नीचे की दुकानों से उन्हें 100/-रुपया मासिक (महीने का) किराया मिलता था। जिससे उनका गुजारा अच्छे से हो जाता था। आम तौर पर उनको पैसे की तंगी नही रहती थी।

लेकिन समस्या तब शुरू हुई जब एक दिन अचानक उनकी पत्नी ने ढाई सौ रुपए (250/-) लालाजी से मांग लिए। मगर लालाजी के पास पत्नी को देने के लिए उस समय पैसे नहीं थे। इसलिए उन्होंने थोड़ा सा मुंह बनाकर पत्नी की तरफ देखा।

 

इस पर पत्नी ने अपने भाई से ढाई सौ रुपए लेने की बात कही। जिस पर लालाजी थोड़ा तिलमिला गए। इज्जत का सवाल भी था। इसीलिए उन्होंने पत्नी को एक सप्ताह के अंदर रुपए देने का वादा कर दिया।  

लालाजी ने वादा तो कर दिया।लेकिन इस घटना को चार दिन बीत गए और लाला जी से पैसों का प्रबंध ना हो सका। पांचवें दिन लालाजी ने अपनी इस परेशानी का ज़िक्र अपने मित्र पंड़ित बिलवासी मिश्रजी से किया । पंड़ित बिलवासी मिश्रजी ने लाला जी को आश्वस्त किया कि वह किसी न किसी प्रकार रुपयों का इंतजाम कर उनकी समस्या अवश्य हल कर देंगें ।

 

लेकिन 6 दिन बीत जाने के बाद भी पैसों का इंतजाम ना हो सका। जिससे लालाजी अत्यधिक परेशान हो गए और छत पर जाकर टहलने लगे। अचानक उन्होंने अपनी पत्नी से पीने के लिए पानी मँगवाया। पत्नी भी एक बेढंगे से लोटे में पानी लेकर आ गई , जो लाला जी को बिल्कुल भी पसंद नहीं था।

खैर उन्होंने पत्नी से लोटा लिया और पानी पीने लगे। चिंता में वह लोटा अचानक उनके हाथ से छूट गया और नीचे गली में खड़े एक अंग्रेज अधिकारी को नहलाता हुआ उसके पैरों पर जोर से जा गिरा। जिससे उसके पैर के अंगूठे में चोट आ गई।

 

अंग्रेज अधिकारी गुस्से से लाल पीला होकर , गालियां देता हुआ लालाजी के घर में घुस गया। ठीक उसी समय पंड़ित बिलवासी मिश्र जी भी वहां पर प्रकट हो गए। उन्होंने क्रोधित अंग्रेज अधिकारी को आराम से कुर्सी में बैठाया और झूठा गुस्सा दिखा कर लालाजी से नाराज होने का नाटक करने लगे।

मगर वो अपने को उस अंग्रेज अधिकारी के सामने उस बेढंगे से लोटे को खरीदने के लिए काफी उतावला दिखाने के कोशिश करने लगे। और अंग्रेज अधिकारी के सामने उस बेढंगे व बदसूरत लोटे को ऐतिहासिक व अकबर का लोटा बता कर उसका गुणगान करने लगे। उसे बेशकीमती व मूल्यवान बताने लगे।

 

लोटे की प्रशंसा सुनकर अंग्रेज अधिकारी भी लोटे को लेने के लिए लालायित हो उठा। बस इसका फायदा पंड़ित बिलवासी मिश्रजी ने उठाया और रुपयों की बाजी लगानी शुरू कर दी। दोनों बाजी लगाते गये और अंत में पंड़ित बिलवासी मिश्र ने 250/- रूपये की बाजी लगा दी। लेकिन अंग्रेज भी लोटे को लेने के लिए अत्यधिक लालायित था। इसीलिए उसने 500/- रूपये की बाजी लगा दी।  

अब पंड़ितजी ने होशियारी से अपनी लाचारी दिखाते हुए अंग्रेज अधिकारी से कहा कि उनके पास तो सिर्फ 250/- रूपये ही हैं। इसीलिए अधिक दाम चुकाने के कारण वो उस लोटे को ले लें।अंग्रेज अधिकारी ने लाला से उस लोटे को खुशी खुशी खरीद लिया और साथ में यह भी बताया कि वह अपने पड़ोसी मेजर डग्लस को ले जाकर यह लोटा दिखाएगा। क्योंकि मेजर डग्लस के पास “जहाँगीरी अंडा” है जिसकी वह काफी तारीफ करता है।

अंग्रेज के जाने के बाद पंड़ितजी ने लालाजी को पैसे दिए। जिससे लालाजी बहुत प्रसन्न हुए। और उन्होंने पंड़ितजी को बहुत बहुत धन्यवाद दिया।जब लालाजी ने पंडित जी से ढाई सौ रुपए के बारे में पूछा तो वो “ईश्वर ही जाने” कह कर अपने घर को चल दिए।  

 

रात में पंड़ितजी पत्नी के संदूक से अपने मित्र की मदद के लिये निकले ढाई सौ रुपयों को वापस उसी तरह , उसी संदूक में रख कर , चैन की नींद सो गए।

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