Hindi, asked by salman38921, 1 year ago

Write a small paragraph on ajadi ki chah

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Answered by abhishekmishra737007
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Answer:

किसी जंगल में एक शेर रहता था एक दिन वह एक शिकारी के जाल में फस गया ।  

हालांकि वह जंगल का राजा था लेकिन फिर भी इस समय वह इतना लाचार महसूस कर रहा था कि अपनी आजादी के लिए वह किसी भी छोटे या मामूली जानवर के पांव पकड़ने को भी तैयार था।  

जब शेर अपनी आजादी की चाह के बारे में सोच रहा था तभी वहां से एक छोटा चूहा गुजर रहा था उसे देख शेर के मन में ख्याल आया कि क्यों ना अपनी आजादी के लिए शेष छोटे चूहे से ही मदद मांगी जाए। ऐसे सोच शेर ने चूहे से गुहार लगाई कि चूहा चूहे मित्र तुम मेरा यह जाल जाल काट मुझे आजाद कर दो बदले में मैं तुम्हे एक दिन का राजा बनाऊंगा।  

ऐसा सुन चूहे के मन में लालच आ गया और उसने जल्दी जल्दी शेर का जाल काट दिया। वादा अनुसार शेर ने चूहे को जंगल का राजा घोषित किया और अपनी आजादी की चाहा को अपनी सूझबूझ से अपनी आजादी में परिवर्तित कर दियाI

Answered by ksatish7166
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Answer:

Azadi Ki Chah Pandit Jawahar Lal Nehru Prerak Prasang : यह घटना उस समय की है, जब पंडित जवाहर लाल नेहरू किशोरावस्था में थे. उनके पिता मोतीलाल नेहरू न सिर्फ इलाहबाद के एक मशहूर बैरिस्टर थे, बल्कि एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे.

भारत की स्वतंत्रता की मुहिम में वे बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे, जिसे देख बालक नेहरू बहुत प्रभावित थे. धीरे-धीरे वे भी परतंत्रता और स्वतंत्रता के जीवन में अंतर को समझ रहे थे.

उन दिनों उनके घर में पिंज़रे में बंद एक तोता था. यह तोता उनके पिता मोतीलाल नेहरू ने पाला था.

एक दिन शाम को जब मोतीलाल नेहरू वापस घर आये, तो देखा पिंज़रे में तोता नहीं है. उन्होंने अपने नौकर को बुलाकर तोते के बारे में पूछा. नौकर ने बताया कि वह तोता जवाहर ने उड़ा दिया.

यह सुनकर मोतीलाल नेहरू बहुत नाराज़ हुए. उन्हें वह तोता बहुत प्रिय था. उन्होंने तुरंत बालक नेहरू को बुलवाया.

बालक नेहरू पिता के सामने हाज़िर हुए. मोतीलाल नेहरू ने गुस्से में उनसे पूछा, “तुमने मेरा तोता क्यों उड़ा दिया जवाहर?”

“पिताजी! पूरे भारत देश की जनता की तरह वह तोता भी आज़ादी चाहता था. इसलिए मैंने उसे आज़ाद कर दिया. मैं ठीक किया न पिताजी?” बालक नेहरू ने भोलेपन से उत्तर दिया.

मोतीलाल कुछ देर तक बालक नेहरू का मुँह देखते रह गए. लेकिन बाद में मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए कि बालक नेहरू आज़ादी की मनोभावना को समझने लगे हैं.

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