write a speech on किसान हमारे अन्नादात्ता (1-2 mins speech).
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किसान हमारे अन्नदाता हैं। जाड़ा गर्मी और बरसात में तरह-तरह की मुसीबतें झेलकर वे फसल उगाते हैं। जाड़े में जब कड़ाके की सर्दी से बचने के लिए हम ब्लोअर के सामने बैठे होते हैं, तब वे अपनी गेहूं की फसल सींचने के लिए ठण्डे-ठण्डे पानी को खेत के हर हिस्से में पहुंचाने का प्रयास कर रहे होते हैं। फसल में कभी रोग लग जाता है तो कभी आग। सालभर की मेहनत पल भर में बरबाद हो जाती है। आलू, टमाटर जैसी फसल एक साथ प्रचुर मात्रा में पैदा होती और उस समय उसका वाजिब दाम नहीं मिलता। केन्द्र और राज्य सरकार की कितनी योजनाएं किसानों के हित में चल रही हैं, इसकी जानकारी भी नहीं हो पाती है। इतना सब होते भी किसान अपने खेतों से सोना उगाता रहता है और कभी-कभी खुद की परेशानियों से इतना घिर जाता है कि उसे आत्महत्या तक करनी पड़ती है। किसान ही इस देश के सबसे बड़े वोट बैंक हैं लेकिन किसानों की समस्या को ठीक से समझने और उन्हें दूर करने का किसी ने भी ईमानदारी से प्रयास नहीं किया है। यही कारण है कि मध्यप्रदेश में किसान आपे से बाहर हो गये और आगजनी व तोड़फोड़ करने लगे। शिवराज सिंह चैहान की सरकार ने यहां भी राजनीति दिखाई और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े किसान संघ को पटाने की कोशिश की, जबकि ज्यादातर किसान भारतीय किसान यूनियन के साथ थे और मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन नियंत्रण से बाहर हो गया। हालांकि लगभग उसी तरह की मांग कर रहे महाराष्ट्र के किसानों को समझाने में वहां के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस कामयाब हो गये।किसान हमारे अन्नदाता हैं।
जाड़ा गर्मी और बरसात में तरह-तरह की मुसीबतें झेलकर वे फसल उगाते हैं। जाड़े में जब कड़ाके की सर्दी से बचने के लिए हम ब्लोअर के सामने बैठे होते हैं, तब वे अपनी गेहूं की फसल सींचने के लिए ठण्डे-ठण्डे पानी को खेत के हर हिस्से में पहुंचाने का प्रयास कर रहे होते हैं। फसल में कभी रोग लग जाता है तो कभी आग। सालभर की मेहनत पल भर में बरबाद हो जाती है। आलू, टमाटर जैसी फसल एक साथ प्रचुर मात्रा में पैदा होती और उस समय उसका वाजिब दाम नहीं मिलता। केन्द्र और राज्य सरकार की कितनी योजनाएं किसानों के हित में चल रही हैं, इसकी जानकारी भी नहीं हो पाती है। इतना सब होते भी किसान अपने खेतों से सोना उगाता रहता है और कभी-कभी खुद की परेशानियों से इतना घिर जाता है कि उसे आत्महत्या तक करनी पड़ती है। किसान ही इस देश के सबसे बड़े वोट बैंक हैं लेकिन किसानों की समस्या को ठीक से समझने और उन्हें दूर करने का किसी ने भी ईमानदारी से प्रयास नहीं किया है। यही कारण है कि मध्यप्रदेश में किसान आपे से बाहर हो गये और आगजनी व तोड़फोड़ करने लगे। शिवराज सिंह चैहान की सरकार ने यहां भी राजनीति दिखाई और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े किसान संघ को पटाने की कोशिश की, जबकि ज्यादातर किसान भारतीय किसान यूनियन के साथ थे और मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन नियंत्रण से बाहर हो गया। हालांकि लगभग उसी तरह की मांग कर रहे महाराष्ट्र के किसानों को समझाने में वहां के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस कामयाब हो गये।प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने ही किसानों को अन्नदाता का नाम दिया है।
यह सार्थक भी है और किसानों में भी गर्व की अनुभूति कराता है। श्री मोदी किसानों के दिल में उतरने की कोशिश करते भी दिखाई पड़ते हैं। एक सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि किसान अपने खेतों में अनाज इसलिए नहीं पैदा करता कि इससे उसका और उसके परिवार का पेट भरेगा बल्कि इसलिए अन्न उगाता है कि कोई भी खाली पेट न सोए। इस तरह की बातें सुनकर किसानों को सचमुच आत्मगौरव की अनुभूति हुई होगी लेकिन वहीं अन्नदाता आत्महत्या क्यों कर रहा है?बिचैलियों और राजनीति से मुक्त क्यों नहीं हो पा रहा है?उसकी फसल का वाजिब मूल्य क्यों नहीं मिल पा रहा हैं?इन सवालों का जवाब कोई नहीं दे रहा है।ऐसे ही सवालों ने मध्यप्रदेश के किसानों को आंदोलन करने के लिए मजबूर कर दिया। किसान तो सीधे-सादे होते हैं लेकिन समाज के हर वर्ग में कुछ अराजक तत्व भी मिल ही जाते हैं। ये अराजक तत्व गुमराह करने के लिए आगे आ जाते हैं। मध्य प्रदेश के किसान वाहनों को तोड़ रहे हैं, पुलिस चैकी में आग लगा रहे हैं, तरह -तरह की हिंसा कर रहे हैं- इसे कतई उचित नहीं कहा जा सकता। ये सब अराजकतत्वों के कारण हो रहा है लेकिन इसका खामियाजा किसान भुगत रहे हैं। मध्यप्रदेश के मंदसौर के किसानों के हिंसक प्रदर्शन पर पुलिस को गोली चलानी पड़ी और 6 किसानों की मौत हो गयी। मरने वालों में कोई कथित किसान नेता नहीं है- ऐसा क्यों?दरअसल यह हिंसा अराजक तत्वों ने ही करायी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान की भी गलती को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
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PLEASE MARK ME BRAINLIEST
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The highest and most respected class of any country, state, society, caste, if there is anyone, then they are our farmers, that is, the God of human beings on the land." It is when all the people of the country are strong with body and mind and this is possible only when they will get nutritious food. Therefore, first of all the farmer of the country is at the highest position.
Farmers i.e. the food giver, the class which should be the most prosperous in the society, the same class i.e. the farmer, for all of us, our food donor on earth lives life in the most deprivations. What would be a bigger irony than this. Food is the first and last requirement for any human being to live on earth. Food in any form, the first race of man starts for the sake of food. starts working hard for the bread, never has anyone thought so deeply that where and how that food comes from, as everyone knows.
A farmer works in the fields in the hot afternoon, works hard to make the soil of the fields fertile, the life of a farmer is a wonderful example of hard work and dedication, the clothes and hands of a farmer always introduce the soil of his fields. On the other hand, the officials sitting in air-conditioned rooms working in big positions, seeing these farmers and their soil-stained clothes, make a distance from them. Hunger ends and we are satisfied. Food is nectar, it is necessary to have due respect to the farmers who donate food and grains.
Just as if the housewife is happy and healthy in the house, then the house becomes heaven, in the same way, if the farmers of the country get due respect, then the farmers will be healthy and prosperous, then the country will also progress and the country will be happy and prosperous.
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If you like my answer plz mark me as a brainlist