write a speech on ' untouchability' in hindi
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हिन्दूओं की परंपरागत प्राचीन “वर्ण-व्यवस्था” के अनुसार, एक व्यक्ति का जन्म कर्म और ‘शुद्धता’ के आधार पर चारों में से किसी एक जाति में होता है। जिनका जन्म ब्राह्मण वर्ण में होता है वो पुजारी या शिक्षक होता है, क्षत्रिय कुल में जन्म लेने वाला शासक या सैनिक; वैश्य वर्ण में जन्म लेने वाला व्यापारी और शूद्र वर्ण में जन्म लेने वाला मजदूर होता है।
अछूत सचमुच बहिष्कृत जाति है। वो किसी भी हिन्दूओं की परंपरागत “वर्ण व्यवस्था” में सीधे रुप से गिनती में नहीं आते। डॉ. भीमराव अम्बेडकर के अनुसार, अछूत पूरी तरह से नया वर्ग है उदाहरण के तौर पर पहले से स्थापित चार वर्णों से अलग पांचवां नया वर्ण है। इस प्रकार, अछूत हिन्दूओं की जाति व्यवस्था में पहचाने नहीं जाते।
हांलाकि, ऐतिहासिक रुप से निचले स्तर के व्यक्ति जो घटिया निम्न स्तर के नौकर-चाकर वाले कार्य करते थे, अपराधी, व्यक्ति जो छूत (छूने से फैलने वाली बीमारी) की बीमारी से पीड़ित होते थे, वो समाज से बाहर रहते थे, उन्हें ही सभ्य कहे जाने वाले नागरिकों द्वारा अछूत माना जाता था। उस समय उस व्यक्ति को समाज से निष्काषित इस आधार पर किया जाता था कि वो समाज के अन्य लोगों के लिये हानिकारक है, उसकी बीमारी छूने से किसी को भी हो सकती है और उस समय में इस बीमारी का कोई इलाज नहीं था जिसकी वजह से उसे समाज से बाहर अन्य व्यक्तियों की सुरक्षा के लिये रखा जाता था।
अस्पृश्यता दंड़ के रुप में भी दी जाने वाली प्रथा थी जो उन व्यक्तियों को दी जाती थी जो समाज के बनाये हुये नियमों को तोड़कर समाजिक व्यवस्था में बाधा उत्पन्न करते थे।
अछूत सचमुच बहिष्कृत जाति है। वो किसी भी हिन्दूओं की परंपरागत “वर्ण व्यवस्था” में सीधे रुप से गिनती में नहीं आते। डॉ. भीमराव अम्बेडकर के अनुसार, अछूत पूरी तरह से नया वर्ग है उदाहरण के तौर पर पहले से स्थापित चार वर्णों से अलग पांचवां नया वर्ण है। इस प्रकार, अछूत हिन्दूओं की जाति व्यवस्था में पहचाने नहीं जाते।
हांलाकि, ऐतिहासिक रुप से निचले स्तर के व्यक्ति जो घटिया निम्न स्तर के नौकर-चाकर वाले कार्य करते थे, अपराधी, व्यक्ति जो छूत (छूने से फैलने वाली बीमारी) की बीमारी से पीड़ित होते थे, वो समाज से बाहर रहते थे, उन्हें ही सभ्य कहे जाने वाले नागरिकों द्वारा अछूत माना जाता था। उस समय उस व्यक्ति को समाज से निष्काषित इस आधार पर किया जाता था कि वो समाज के अन्य लोगों के लिये हानिकारक है, उसकी बीमारी छूने से किसी को भी हो सकती है और उस समय में इस बीमारी का कोई इलाज नहीं था जिसकी वजह से उसे समाज से बाहर अन्य व्यक्तियों की सुरक्षा के लिये रखा जाता था।
अस्पृश्यता दंड़ के रुप में भी दी जाने वाली प्रथा थी जो उन व्यक्तियों को दी जाती थी जो समाज के बनाये हुये नियमों को तोड़कर समाजिक व्यवस्था में बाधा उत्पन्न करते थे।
0Ashray0:
mark as brainliest answer please!!!!!
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अस्पृश्ता एक अभिशाप है। यह अभिशाप बहुत समय पहले भारतीय संस्कृति को दीमक की तरह चाट रहा था। इस अभिशाप का शिकार छोटी जाति के लोगों को होना पड़ता था। उनका स्पर्श मात्र ही लोगों को अपवित्र बना देता था। उन्हें अछूत माना जाता था और उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता था। उस समय का भारत दो वर्गों में बँटा हुआ था। जहाँ शासन ऊँची जाति वालों का तथा सेवकाई छोटी जाति वाले लोगों को करनी पड़ती थी।
छूआछूत का यह आलम था कि निम्न जाति के लोगों का शोषण किया जाता था। उन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा गया था तथा प्रगति के अवसर उनके लिए थे ही नहीं। उनका काम बस सेवकाई करना होता था। इसके बदले उन्हें जो मेहनताना मिलता था, उससे घर का खर्च चलाना तक कठिन होता था। सारी उम्र वह झूठन खाकर जीते और अंत समय में कफन भी प्राप्त नहीं होता था।
हमारे देश के सविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर जी ने भी इस अभिशाप को भोगा है। वह एक निम्मवर्ग में पैदा हुए थे। वे पढ़ना चाहते थे। वहाँ पढ़ाई के स्थान पर उनके साथ भेदभाव किया जाता था। उन्हें ऊँची जाति के बच्चों के साथ बैठने नहीं दिया जाता था। उन्हे तंग किया जाता था। उन्होंने यह समझ लिया था कि शिक्षा प्राप्त करना सरल नहीं होगा। उन्होंने हार नहीं मानी और शिक्षा प्राप्त की। अपने समय के वह पहले अस्पृश्य बालक थे जिसे विश्वविद्यालय में जाने का अवसर प्राप्त हुआ था।
Dharm hamein kabhi jhagadna nhi sikhata...... Dahrma whi h jo hamein sacchai aur acchai sikhaye
Jai hind
See..... hope u like it
छूआछूत का यह आलम था कि निम्न जाति के लोगों का शोषण किया जाता था। उन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा गया था तथा प्रगति के अवसर उनके लिए थे ही नहीं। उनका काम बस सेवकाई करना होता था। इसके बदले उन्हें जो मेहनताना मिलता था, उससे घर का खर्च चलाना तक कठिन होता था। सारी उम्र वह झूठन खाकर जीते और अंत समय में कफन भी प्राप्त नहीं होता था।
हमारे देश के सविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर जी ने भी इस अभिशाप को भोगा है। वह एक निम्मवर्ग में पैदा हुए थे। वे पढ़ना चाहते थे। वहाँ पढ़ाई के स्थान पर उनके साथ भेदभाव किया जाता था। उन्हें ऊँची जाति के बच्चों के साथ बैठने नहीं दिया जाता था। उन्हे तंग किया जाता था। उन्होंने यह समझ लिया था कि शिक्षा प्राप्त करना सरल नहीं होगा। उन्होंने हार नहीं मानी और शिक्षा प्राप्त की। अपने समय के वह पहले अस्पृश्य बालक थे जिसे विश्वविद्यालय में जाने का अवसर प्राप्त हुआ था।
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