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ये केवल हिन्दी भाषियों का विरोध नहीं था ये विरोध था हिन्दी भाषा को आगे बढ़ने से रोकने के लिए । जो हिन्दी को केवल दूसरे दर्जे की भाषा के रूप में देखना चाहते हैं न कि संविधान में वर्णित अनुच्छेद 343 के अनुपालन में ।
हमारे देश में हिन्दी भाषा को आगे बढ़ाने में सरकार द्वारा कोई ठोस कार्य नहीं किया गया जबकि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 351 प्रावधान करता है कि संघ हिन्दी भाषा के विकास के लिए प्रयास करेगा । जिससे हिन्दी राजकीय भाषा बन सकती ।
संविधान में प्रावधान अवश्य है लेकिन अनुपालन नहीं है । अगर सरकारें ईमानदारी से इस दिशा में कार्य करती तो निश्चित ही आज 60 वर्ष बाद हिन्दी प्रत्येक राज्य की राजकीय भाषा होती । लेकिन इस दिशा में कार्य नगण्य रहा । हिन्दी का प्रोत्साहन केवल हिन्दी दिवस मनाने तक शिमट कर रह गया ।
नहीं तो हिन्दी आज देश की ही नहीं विदेशों की भाषा होती यदि सरकारें हिन्दी भाषा प्रोत्साहन के नाम पर कुछ कार्य करती तभी तो हम कुछ इस तरह हिन्दी की दुर्दशा ब्यां करते हैं:
हिन्दी तेरी दुर्दशा की यही कहानी हो गयी
चौदह सितम्बर दिवस हिन्दी सबकी जबानी हो गयी
प्रणाम नमस्ते छोड़कर अब हाय बाय हो गयी
गुरूजी को भी अब सर जी कहना हो गयी
धर्मपत्नी जी मिसेज हुई और मैडम टीचर हो गयी
हिन्दी वाले पीछे हैं अंग्रेजी आगे हो गयी
चौदह सितम्बर दिवस हिन्दी सबकी जबानी हो गयी
हिन्दी तेरी दुर्दशा की यही कहानी हो गयी
हिन्दी में लिखना अब बेईमानी हो गयी
हिन्दी में कुछ लिखते तो फिर दूर बुराई हो गयी
लिखने वाले लिखते हैं अब बात सुनी सुनाई हो गयी
हिन्दी लिखना पढना भी अब स्वयं बुराई हो गयी
चौदह सितम्बर दिवस हिन्दी सबकी जबानी हो गयी
हिन्दी तेरी दुर्दशा की यही कहानी हो गयी
हिन्द में ही हिन्दी अब सबसे बेगानी हो गयी
कुत्ते और बिल्लियां भी अब इंग्लिश तानी हो गयी
मातृभाषा छोड सब अंग्रेजी माई हो गयी
जिसने सबको जन्म दिया अब वही पराई हो गयी
चौदह सितम्बर दिवस हिन्दी सबकी जबानी हो गयी
हिन्दी तेरी दुर्दशा की यही कहानी हो गयी