Hindi, asked by vikaschaudhary1628, 9 months ago

Write about sakhi of Kabir das

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Answered by SwaggerGabru
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Answer:

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब

पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगो कब।

Meaning: कबीर दास जी कहते हैं कि जो कल करना है उसे आज करो और जो आज करना है उसे अभी करो| जीवन बहुत छोटा होता है अगर पल भर में समाप्त हो गया तो क्या करोगे।

Answered by Anonymous
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ऐसी बाँणी बोलिए मन का आपा खोई।

अपना तन सीतल करै औरन कैं सुख होई।।

कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तुत पाठ कबीर की साखी की इन पंक्तियों में कबीर ने वाणी को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बताया है। महाकवि संत कबीर जी ने अपने दोहे में कहा है कि हमें ऐसी मधुर वाणी बोलनी चाहिए, जिससे हमें शीतलता का अनुभव हो और साथ ही सुनने वालों का मन भी प्रसन्न हो उठे। मधुर वाणी से समाज में प्रेम की भावना का संचार होता है। जबकि कटु वचनों से हम एक-दूसरे के विरोधी बन जाते हैं। इसलिए हमेशा मीठा और उचित ही बोलना चाहिए, जो दूसरों को तो प्रसन्न करता ही है और आपको भी सुख की अनुभूति कराता है।

कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।

ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥

कबीर की साखी भावार्थ : जिस प्रकार हिरण की नाभि में कस्तूरी रहती है, परन्तु हिरण इस बात से अनजान उसकी खुशबू के कारण उसे पूरे जंगल में इधर-उधर ढूंढ़ता रहता है। ठीक इसी प्रकार ईश्वर को प्राप्त करने के लिए हम उन्हें मंदिर-मस्जिद, पूजा-पाठ में ढूंढ़ते हैं। जबकि ईश्वर तो स्वयं कण-कण में बसे हुए हैं, उन्हें कहीं ढूंढ़ने की ज़रूरत नहीं। बस ज़रूरत है, तो खुद को पहचानने की।

कस्तूरी :- कस्तूरी एक तरह का पदार्थ होता है, जो नर-हिरण की नाभि में पाया जाता है। इसमें एक प्रकार की विशेष खुशबू होती है। इसे इंग्लिश में Deer musk बोलते हैं। इसका इस्तेमाल परफ्यूम तथा मेडिसिन (दवाइयाँ) बनाने में होता है। यह बहुत ही महंगा होता है।

जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाँहि।

सब अँधियारा मिटी गया दीपक देख्या माँहि॥

कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तुत पाठ कबीर की साखी की इन पंक्तियों में कबीर जी कह रहे हैं कि जब तक मनुष्य में अहंकार (मैं) रहता है, तब तक वह ईश्वर की भक्ति में लीन नहीं हो सकता और एक बार जो मनुष्य ईश्वर-भक्ति में पूर्ण रुप से लीन हो जाता है, उस मनुष्य के अंदर कोई अहंकार शेष नहीं रहता। वह खुद को नगण्य समझता है। जिस प्रकार दीपक के जलते ही पूरा अंधकार मिट जाता है और चारों तरफ प्रकाश फ़ैल जाता है, ठीक उसी प्रकार, भक्ति के मार्ग पर चलने से ही मनुष्य के अंदर व्याप्त अहंकार मिट जाता है।

सुखिया सब संसार है खाए अरु सोवै।

दुखिया दास कबीर है जागे अरु रोवै।।

कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तुत पाठ कबीर की साखी की इन पंक्तियों में कबीर ने समाज के ऊपर व्यंग्य किया है। वह कहते हैं कि सारा संसार किसी झांसे में जी रहा है। लोग खाते हैं और सोते हैं, उन्हें किसी बात की चिंता नहीं है। वह सिर्फ़ खाने एवं सोने से ही ख़ुश हो जाते हैं। जबकि सच्ची ख़ुशी तो तब प्राप्त होती है, जब आप प्रभु की आराधना में लीन हो जाते हो। परन्तु भक्ति का मार्ग इतना आसान नहीं है, इसी वजह से संत कबीर को जागना एवं रोना पड़ता है।

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