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महिला सशक्तिकरण के अंतर्गत महिलाओं से जुड़े सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और कानूनी मुद्दों पर संवेदनशीलता और सरोकार व्यक्त किया जाता है। सशक्तिकरण की प्रक्रिया में समाज को पारंपरिक पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण के प्रति जागरूक किया जाता है, जिसने महिलाओं की स्थिति को सदैव कमतर माना है। वैश्विक स्तर पर नारीवादी आंदोलनों औरयूएनडीपी आदि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने महिलाओं के सामाजिक समता, स्वतंत्रता और न्याय के राजनीतिक अधिकारों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
महिला सशक्तिकरण, भौतिक या आध्यात्मिक, शारिरिक या मानसिक, सभी स्तर पर महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा कर उन्हें सशक्त बनाने की प्रक्रिया है।
महिला एवं बाल विकास विभाग, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा बच्चों के लिए राष्ट्रीय चार्टर पर जानकारी प्राप्त करें। प्रयोक्ता जीवन, अस्तित्व और स्वतंत्रता के अधिकार की तरह एक बच्चे के विभिन्न अधिकारों के बारे में पता लगा सकते हैं, खेलने और अवकाश, मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा पाने के अधिकार, माता पिता की जिम्मेदारी के बारे में सूचना आदि, विकलांग बच्चों की सुरक्षा आदि के लिए भी सूचना प्रदान की गई है।
महिला सशक्तिकरण की दिशा में हालांकि दुनिया के कई देश कई महत्वपूर्ण उपाय कांफी पहले कर चुके हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी महिलाओं के लिए संसदीय सीटों में आरक्षण की व्यवस्था की जा चुकी है। लगता तो है कि अब भारतवर्ष में भी इस दिशा में कुछ रचनात्मक कदम उठाए जाने की तैयारी शुरु कर दी गई है। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को आरक्षण दिया जाना और वह भी राजनीति जैसे उस क्षेत्र में जहां कि आमतौर पर पुरुषों का ही वर्चस्व देखा जाता है वास्तव में एक आश्चर्य की बात है। परंतु पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के इस सपने को साकार करने का जिस प्रकार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मन बनाया है तथा अपने कांग्रेस सांसदों को महिला आरक्षण के पक्ष में मतदान करने की अनिवार्यता सुनिश्चित करने हेतु व्हिप जारी किया है उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी के शीर्ष पुरुष नेता भले ही भीतर ही भीतर इस बिल के विरोधी क्यों न हों परंतु सोनिया गांधी की मंशा भांपने के बाद फिलहाल ऐसा नहीं लगता कि कांग्रेस का कोई नेता राज्यसभा में इस विधेयक के पारित हो जाने के बाद अब लोकसभा में इसके विरुध्द अपनी जुबान खोल सकेगा।बात जब देश की आधी आबादी के आरक्षण की हो तो भारतीय जनता पार्टी भी कांग्रेस से लाख मतभेद होने के बावजूद ख़ुद को महिला आरक्षण विधेयक से अलग नहीं रख सकती लिहाजा पार्टी में कई सांसदों से मतभेदों के बावजूद भाजपा भी फिलहाल इस विधेयक के पक्ष में खड़ी दिखाई दे रही है। हालांकि इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि जिस प्रकार मनमोहन सिंह की पिछली सरकार के समय भारत अमेरिका के मध्य हुआ परमाणु क़रार मनमोहन सरकार के लिए एक बड़ी मुसीबत साबित हुआ था तथा उसी मुद्दे पर वामपंथी दलों ने यू पी ए सरकार से अपना समर्थन तक वापस ले लिया था। ठीक वैसी ही स्थिति महिला आरक्षण विधेयक को लेकर एक बार फिर देखी जा रही है। परंतु पिछली बार की ही तरह इस बार भी कांग्रेस के इरादे बिल्कुल सांफ हैं। ख़बर है कि एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री ने सोनिया गांधी से यह पूछा कि उन्हें लोकसभा में महिला आरक्षण की मंजूरी चाहिए या वे सरकार बचाना चाहेंगी। इस पर सोनिया गांधी ने भी स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें महिला आरक्षण की मंजूरी चाहिए।उक्त विधेयक को लेकर देश की संसद में पिछले दिनों क्या कुछ घटित हुआ यह भी पूरा देश व दुनिया देख रही है। रायसभा के 7 सांसदों को सभापति की मो पर चढ़ने तथा विधेयक की प्रति फाड़ने व सदन की गरिमा को आघात पहुंचाने के जुर्म में सदन से निलंबित तक होना पड़ा था। राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी व लोक जनशक्ति पार्टी के इन सांसदों द्वारा महिला आरक्षण विधेयक के वर्तमान स्वरूप को लेकर जो हंगामा खड़ा किया जा रहा है वह भी हास्यास्पद है। इन दलों के नेता यह मांग कर रहे हैं कि 33 प्रतिशत महिला आरक्षण के कोटे में ही दलितों, पिछड़ी जातियों तथा अल्पसंख्यकों की महिलाओं हेतु आरक्षण किया जाना चाहिए। अब यह शगूफा मात्र शगूंफा ही है या फिर इन पार्टियों के इस कदम में कोई हंकींकत भी है यह जानने के लिए अतीत में भी झाकना णरूरी होगा। महिलाओं के 33 प्रतिशत सामान्य आरक्षण की वकालत करने वाले लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, शरद यादव तथा रामविलास पासवान जैसे विधेयक के वर्तमान स्वरूप के विरोधियों से जब यह पूछते हैं कि आप लोग अपनी- अपनी पार्टियों के राजनैतिक अस्तित्व में आने के बाद से लेकर अब तक के किन्हीं पांच ऐसे सांसदों, विधायकों या विधान परिषद सदस्यों के नाम बताएं जिन्हें आप लोगों ने दलित, पिछड़ा तथा अल्पसंख्यक होने के नाते पार्टी प्रत्याशी के रूप में किसी सदन का सदस्य बनवाया हो। इसके जवाब में इन नेताओं के पास कहने को कुछ भी नहीं है। इसी से यह सांफ ज़ाहिर होता है कि दलितों, पिछड़ी जातियों तथा अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं के नाम पर किया जाने वाला इनका हंगामा केवल हंगामा ही है हकीकत नहीं।दरअसल जो नेता महिला आरक्षण विधेयक का विरोध जाति के आधार पर कर रहे हैं उनकी मजबूरी यह है कि उनके हाथों से पिछड़ी जातियों व अल्पसंख्यकों के वह वोट बैंक तोी से खिसक रहे हैं जो उन्हें सत्ता मे लाने में सहयोगी हुआ करते थे। लिहाजा यह नेता पिछड़ों व अल्पसंख्यकों की महिलाओं को अतिरिक्त आरक्षण दिए जाने के नाम पर महिला आरक्षण विधेयक का जो विरोध कर रहे हैं वह वास्तव में एक तीर से दो शिकार खेलने जैसा ही है। इन जातियों के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद कर यह नेता जहां अपने खिसकते जनाधार को पुन: बचाना चाह रहे हैं वहीं इनकी यह कोशिश भी है कि किसी प्रकार उनके विरोध व हंगामे के चलते यह विधेयक पारित ही न होने पाए। और इस प्रकार राजनीति में पुरुषों का वर्चस्व पूर्ववत् बना रहे।
महिला सशक्तिकरण, भौतिक या आध्यात्मिक, शारिरिक या मानसिक, सभी स्तर पर महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा कर उन्हें सशक्त बनाने की प्रक्रिया है।
महिला एवं बाल विकास विभाग, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा बच्चों के लिए राष्ट्रीय चार्टर पर जानकारी प्राप्त करें। प्रयोक्ता जीवन, अस्तित्व और स्वतंत्रता के अधिकार की तरह एक बच्चे के विभिन्न अधिकारों के बारे में पता लगा सकते हैं, खेलने और अवकाश, मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा पाने के अधिकार, माता पिता की जिम्मेदारी के बारे में सूचना आदि, विकलांग बच्चों की सुरक्षा आदि के लिए भी सूचना प्रदान की गई है।
महिला सशक्तिकरण की दिशा में हालांकि दुनिया के कई देश कई महत्वपूर्ण उपाय कांफी पहले कर चुके हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी महिलाओं के लिए संसदीय सीटों में आरक्षण की व्यवस्था की जा चुकी है। लगता तो है कि अब भारतवर्ष में भी इस दिशा में कुछ रचनात्मक कदम उठाए जाने की तैयारी शुरु कर दी गई है। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को आरक्षण दिया जाना और वह भी राजनीति जैसे उस क्षेत्र में जहां कि आमतौर पर पुरुषों का ही वर्चस्व देखा जाता है वास्तव में एक आश्चर्य की बात है। परंतु पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के इस सपने को साकार करने का जिस प्रकार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मन बनाया है तथा अपने कांग्रेस सांसदों को महिला आरक्षण के पक्ष में मतदान करने की अनिवार्यता सुनिश्चित करने हेतु व्हिप जारी किया है उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी के शीर्ष पुरुष नेता भले ही भीतर ही भीतर इस बिल के विरोधी क्यों न हों परंतु सोनिया गांधी की मंशा भांपने के बाद फिलहाल ऐसा नहीं लगता कि कांग्रेस का कोई नेता राज्यसभा में इस विधेयक के पारित हो जाने के बाद अब लोकसभा में इसके विरुध्द अपनी जुबान खोल सकेगा।बात जब देश की आधी आबादी के आरक्षण की हो तो भारतीय जनता पार्टी भी कांग्रेस से लाख मतभेद होने के बावजूद ख़ुद को महिला आरक्षण विधेयक से अलग नहीं रख सकती लिहाजा पार्टी में कई सांसदों से मतभेदों के बावजूद भाजपा भी फिलहाल इस विधेयक के पक्ष में खड़ी दिखाई दे रही है। हालांकि इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि जिस प्रकार मनमोहन सिंह की पिछली सरकार के समय भारत अमेरिका के मध्य हुआ परमाणु क़रार मनमोहन सरकार के लिए एक बड़ी मुसीबत साबित हुआ था तथा उसी मुद्दे पर वामपंथी दलों ने यू पी ए सरकार से अपना समर्थन तक वापस ले लिया था। ठीक वैसी ही स्थिति महिला आरक्षण विधेयक को लेकर एक बार फिर देखी जा रही है। परंतु पिछली बार की ही तरह इस बार भी कांग्रेस के इरादे बिल्कुल सांफ हैं। ख़बर है कि एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री ने सोनिया गांधी से यह पूछा कि उन्हें लोकसभा में महिला आरक्षण की मंजूरी चाहिए या वे सरकार बचाना चाहेंगी। इस पर सोनिया गांधी ने भी स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें महिला आरक्षण की मंजूरी चाहिए।उक्त विधेयक को लेकर देश की संसद में पिछले दिनों क्या कुछ घटित हुआ यह भी पूरा देश व दुनिया देख रही है। रायसभा के 7 सांसदों को सभापति की मो पर चढ़ने तथा विधेयक की प्रति फाड़ने व सदन की गरिमा को आघात पहुंचाने के जुर्म में सदन से निलंबित तक होना पड़ा था। राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी व लोक जनशक्ति पार्टी के इन सांसदों द्वारा महिला आरक्षण विधेयक के वर्तमान स्वरूप को लेकर जो हंगामा खड़ा किया जा रहा है वह भी हास्यास्पद है। इन दलों के नेता यह मांग कर रहे हैं कि 33 प्रतिशत महिला आरक्षण के कोटे में ही दलितों, पिछड़ी जातियों तथा अल्पसंख्यकों की महिलाओं हेतु आरक्षण किया जाना चाहिए। अब यह शगूफा मात्र शगूंफा ही है या फिर इन पार्टियों के इस कदम में कोई हंकींकत भी है यह जानने के लिए अतीत में भी झाकना णरूरी होगा। महिलाओं के 33 प्रतिशत सामान्य आरक्षण की वकालत करने वाले लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, शरद यादव तथा रामविलास पासवान जैसे विधेयक के वर्तमान स्वरूप के विरोधियों से जब यह पूछते हैं कि आप लोग अपनी- अपनी पार्टियों के राजनैतिक अस्तित्व में आने के बाद से लेकर अब तक के किन्हीं पांच ऐसे सांसदों, विधायकों या विधान परिषद सदस्यों के नाम बताएं जिन्हें आप लोगों ने दलित, पिछड़ा तथा अल्पसंख्यक होने के नाते पार्टी प्रत्याशी के रूप में किसी सदन का सदस्य बनवाया हो। इसके जवाब में इन नेताओं के पास कहने को कुछ भी नहीं है। इसी से यह सांफ ज़ाहिर होता है कि दलितों, पिछड़ी जातियों तथा अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं के नाम पर किया जाने वाला इनका हंगामा केवल हंगामा ही है हकीकत नहीं।दरअसल जो नेता महिला आरक्षण विधेयक का विरोध जाति के आधार पर कर रहे हैं उनकी मजबूरी यह है कि उनके हाथों से पिछड़ी जातियों व अल्पसंख्यकों के वह वोट बैंक तोी से खिसक रहे हैं जो उन्हें सत्ता मे लाने में सहयोगी हुआ करते थे। लिहाजा यह नेता पिछड़ों व अल्पसंख्यकों की महिलाओं को अतिरिक्त आरक्षण दिए जाने के नाम पर महिला आरक्षण विधेयक का जो विरोध कर रहे हैं वह वास्तव में एक तीर से दो शिकार खेलने जैसा ही है। इन जातियों के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद कर यह नेता जहां अपने खिसकते जनाधार को पुन: बचाना चाह रहे हैं वहीं इनकी यह कोशिश भी है कि किसी प्रकार उनके विरोध व हंगामे के चलते यह विधेयक पारित ही न होने पाए। और इस प्रकार राजनीति में पुरुषों का वर्चस्व पूर्ववत् बना रहे।
khareenabeena:
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