Hindi, asked by dinesh109, 1 year ago

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Answered by uday11055
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1.मानव-जीवन में अनेक प्रकार की परेशानियाँ और तनाव है । लोग विभिन्न प्रकार की चिंताओं से घिरे रहते हैं । खेल-कूद हमें इन परेशानियों, तनावों एवं चिंताओं से मुक्त कर देती है । खेल-कूद को जीवन का आवश्यक अंग मानने वाले जीवन में आने वाली समस्याओं का सामना करने में सक्षम होते हैं ।

संत रामकृष्ण परमहंस का कथन है कि ईश्वर ने संसार की रचना खेल-खेल में की है । अर्थात् परमात्मा को खेल बहुत पसंद है । तो फिर परमात्मा की कृति मनुष्य खेलों से क्यों दूर रहे! खेल खेलकर ही लोग जान सकते हैं कि जीवन एक खेल है । जीवन को बहुत गंभीर और तनावयुक्त नहीं बनाना चाहिए । सभी हँसते-खेलते जिएँ तो संसार की बहुत-सी परेशानियाँ मिट जाएँ । अत: जीवन में खेल-कूद का महत्त्वपूर्ण स्थान होना चाहिए ।

खेल-कूद स्वास्थ्यवर्धक होते हैं । ये शरीर के विभिन्न अंगों के उचित संचालन में मददगार होते हैं । खेलने से शरीर का व्यायाम होता है तथा पसीने के रूप में शरीर में जमा जल बाहर निकल आता है । खेल-कूद शरीर और मन में ताजगी लाता है । इनसे मांसपेशियाँ सुगठित हो जाती हैं । मन की ऊब मिटाने और चित्त में प्रसन्नता लाने के लिए खेलों की जितनी भूमिका है उतनी शायद अन्य किसी चीज की नहीं । यही कारण है कि अलग- अलग समाज और देश में विभिन्न प्रकार के खेलों को पर्याप्त महत्त्व दिया जाता है ।

2.बिना नेता के  समाज नहीं    होता  और   नेता  के लिए समाज का होना आवश्यक है ! वह अपने स्वभाव सिद्ध गुणों  से तथा अपनी  उपयोगिता के कारण पूजनीय होता है !देश का तथा  समाज का उत्थान नेता पर निर्भर करता  है !नेता यदि पथ भ्रस्ट हुआ  तो देश और समाज   भी पतन की ओर अग्रसर  हो जाता है आजकल  हमारी   परेशानियों की  जड़   हमारा गलत नेता  ही है ! प्राचीन भारतीय संस्कृति  ने बहुत सोच समझ कर नेता की व्याख्या की  थी  जो व्यक्ति नीति का पालन करे और चलावे वही नेता होगा ! नयन करने   वाली चीज  का नाम नीति है यानी सम्यक रूप से सुमार्ग में  चलने वाली वास्तु  का नाम नीति है !जब हमारा नेता ही पथ भ्रस्ट होगा तो हम ऐसे नेताओ से कैसे समाज  और देश निर्माण की कल्पना कर सकते है ! क्योकि जिसके पास जो होता है वही समाज और देश को बाटता है ! अगर हमारा नेता भ्रस्टाचारी अपराधी और बलात्कारी होगा तो समाज और देश में ऐसी ही घटनाये फैलेगी ! इसलिए समाज के प्रत्येक सदस्य की जिम्मेदारी है की समाज और देश के निर्माण के लिए जाति और संप्रदाय से ऊपर उठकर अच्छा ईमानदार सदाचारी नेता का चयन करना चाहिए ! जिस राजनितिक दल में से अनुशासन उठ गया है तथा अवज्ञा करने वालो के दंड का विधान बहुत  कम है , उस राजनीतिक  दाल  का भविष्य उज्जवल नहीं कहा जा सकता ! अपनी नीति को अनुशासन पूर्वक नहीं मनवा सकता ,वह नेता नहीं हो सकता है ! इसलिए कौटिल्य के अर्थशास्त्र  बाद लिखा हुआ ग्रन्थ कामन्दकीय नीतिसारः जो  कि कौटिल्य  अर्थशास्त्र का सार है , नेता  का गुण बतलाता है !"जब दंडनीति भली प्रकार से नेता में स्थिर रहती है ,तब वह विद्या को  जानने वाला सम्पूर्ण शेष विद्याओ को प्राप्त होता है !'
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