write an essay in hindi on bharat ya kisan
Agrahari1:
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किसान माटी के समृत होते हैं। वे मिट्टी से सोना उपजाते हैं। वे अपने श्रम से संसार का पेट भरते हैं। वे अधिक पढ़े-लिखे नहीं होते परंतु उन्हें खेती की बारीकियों का ज्ञान होता है । वे मौसम के बदलते मिजाज को पहचान कर तदनुसार नीति निर्धारित करने में दक्ष होते हैं । सचमुच प्रकृति के सहचर होते हैं हमारे किसान ।
किसानों का मुख्य पेशा कृषि है । पशुपालन उनका सहायक पेशा है । पशु कृषि कार्य में उनका सहयोग करते हैं । बैल उनका हल और गाड़ी खींचते हैं । गाय उनके लिए दूध, गोबर और बछडे देती है । वे भैंस, बकरी आदि भी पालते हैं जिनसे उन्हें अतिरिक्त आमदनी होती है । इन पालतू पशुओं को पालने में उन्हें विशेष कठिनाई नहीं होती क्योंकि ये कृषि उत्पादों यथा पुआल, भूसा, खली, अनाज खाकर जीवित रहते हैं । पशुओं के लिए घास खेतों और बागानों से उपलब्ध हो जाता है ।
किसान बहुत परिश्रमी होते हैं । वे खेतों में जी-तोड़ श्रम करते हैं । वे मेहनत करके अनाज, फल और सब्जियाँ उगाते हैं । खेतों में फसल उगाने के लिए अच्छी तरह जुते हुए खेतों में बीज डाला जाता है । बीजों में अंकुर निकल आता है और धीरे- धीरे ये पौधे का रूप ले लेते हैं । पौधों की सिंचाई की जाती है । पौधों के बीच उग आए खर-पतवार निकालकर खेतों में खाद डाला जाता है । आवश्यकता पड़ने पर किसान कीटनाशकों का प्रयोग भी करते हैं ।
लहलहाती फसलों को देखकर किसान प्रसन्न हो उठते हैं । वे फसलों की लगातार निगरानी करते हैं । फसलों को पशुओं और चोरों से सुरक्षित रखने के लिए वे खेतों में मचान बनाकर वहीं सोते हैं । पकी फसलों की कटाई की जाती है, तत्पश्चात् उनसे अनाज के दाने निकाले जाते हैं । अनाज का भूसा मवेशियों के भोजन के लिए सुरक्षित रख लिया जाता है । जरूरत भर का अनाज और सब्जी घर में रखकर शेष मंडियों में बेच देते हैं । इनसे हुई आमदनी से उनका साल भर का गुजारा होता है ।
हमारे देश के किसानों को कृषि कार्य में विभिन्न प्रकार की समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है । सबसे बड़ी समस्या है कृषि में आने वाली लागत जो दिनों-दिन बढ़ती चली जा रही है । किसानों को अच्छे बीज खरीदने पड़ते हैं जो बहुत महँगे दामों में मिलते हैं । ट्रैक्टरों या हल-बैल से खेत की जुताई भी आसान नहीं होती । खेतों में सिंचाई के लिए बिजली या पंपसैट की आवश्यकता होती है ।
किसानों को कृषि कार्य में अन्य मजदूरों की सेवाएँ लेनी पड़ती है जिसके बदले उन्हें धन व्यय करना पड़ता है । फसल कटाई से लेकर मंडियों में पहुँचाने तक काफी खर्चा आता है । इतना सब कुछ करने के बाद यदि मंडी में फसल की उचित कीमत न मिले तो वे निराश और हताश हो जाते हैं । उन्हें कर्ज लेकर अगली फसल बोने की तैयारी करनी पड़ती ह
भारतीय किसानों को प्रकृति से लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है । चूंकि हमारे देश में दो-तिहाई कृषि वर्षा और मानसून पर आधारित है इसलिए किसानों को कभी सूखा
तो कभी बाद की स्थिति झेलनी पड़ती है । सूखा होने पर फसल सूख जाती है तो बाद में फसल बह जाती है । यदि इंद्रदेव कृपालु भी बने रहें तो फसलों को ओला, पाला और तूफान से खतरा । पकी फसलों पर ओले पड़ गए तो सब गुड़-गोबर हो गया । दाने खेतों में ही झड़ गए ।
समय पर धूप न निकली तो फसलों पर कीटाणुओं का प्रकोप हो गया । फिर भी प्रकृति से लड़ते-भिड़ते किसान देश भर की आवश्यकताओं के अनुरूप खाद्यान्न उत्पादित कर ही लेते हैं । भारतीय किसान कृषि की उन्नत एवं आधुनिक वैज्ञानिक कृषि का अनुसरण करने लगे हैं जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है । बीज, खाद एवं कृषि उपकरण खरीदने में उन्हें सरकार की ओर से आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है । सरकार उनके लिए सस्ती दरों पर ऋण उपलब्ध कराती है और समय-समय पर ऋण माफ भी कर देती है ।
भारतीय किसान का जीवन सीधा-सादा होता है । वह प्रात : काल उठकर पशुओं को खाना देता है और खेतों में चला जाता है । वह खेतों में डटकर काम करता है । वह खेतों में ही रोटी, छाछ, सलाद आदि नाश्ता करता है । खेतों में उपजी फलियाँ उसे बहुत पसंद हैं । दूध-दही से युक्त भोजन उसे प्रिय है । हरी-ताजी सब्जियाँ उसके तन-मन को संतुष्ट करती हैं । वह गन्ने का रस छक कर पीता है । रोटी, दाल, चावल, साग जिस समय जो मिल जाए उन्हें भूख लगने पर बड़े चाव से खाता है । उसका पहनावा भी सरल होता है । धोती-कुर्ता पायजामा, लुंगी, बनियान आदि पहने, पाँवों में चप्पल धारण किए, सिर पर पगड़ी बाँधे और हाथों में डंडा लिए वह हरित क्रांति का अग्रदूत नजर आता है ।
किसानों की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है परंतु अब भी उसे अनेक प्रकार की सहूलियतों की आवश्यकता है । उसके लिए उचित समय पर बिजली, पानी, खाद, बीज एवं कृषि यंत्रों की व्यवस्था की जानी चाहिए । फसल बीमा को अनिवार्य बनाकर उसे प्राकृतिक विपत्तियों से सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए । hope it will help u
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किसानों का मुख्य पेशा कृषि है । पशुपालन उनका सहायक पेशा है । पशु कृषि कार्य में उनका सहयोग करते हैं । बैल उनका हल और गाड़ी खींचते हैं । गाय उनके लिए दूध, गोबर और बछडे देती है । वे भैंस, बकरी आदि भी पालते हैं जिनसे उन्हें अतिरिक्त आमदनी होती है । इन पालतू पशुओं को पालने में उन्हें विशेष कठिनाई नहीं होती क्योंकि ये कृषि उत्पादों यथा पुआल, भूसा, खली, अनाज खाकर जीवित रहते हैं । पशुओं के लिए घास खेतों और बागानों से उपलब्ध हो जाता है ।
किसान बहुत परिश्रमी होते हैं । वे खेतों में जी-तोड़ श्रम करते हैं । वे मेहनत करके अनाज, फल और सब्जियाँ उगाते हैं । खेतों में फसल उगाने के लिए अच्छी तरह जुते हुए खेतों में बीज डाला जाता है । बीजों में अंकुर निकल आता है और धीरे- धीरे ये पौधे का रूप ले लेते हैं । पौधों की सिंचाई की जाती है । पौधों के बीच उग आए खर-पतवार निकालकर खेतों में खाद डाला जाता है । आवश्यकता पड़ने पर किसान कीटनाशकों का प्रयोग भी करते हैं ।
लहलहाती फसलों को देखकर किसान प्रसन्न हो उठते हैं । वे फसलों की लगातार निगरानी करते हैं । फसलों को पशुओं और चोरों से सुरक्षित रखने के लिए वे खेतों में मचान बनाकर वहीं सोते हैं । पकी फसलों की कटाई की जाती है, तत्पश्चात् उनसे अनाज के दाने निकाले जाते हैं । अनाज का भूसा मवेशियों के भोजन के लिए सुरक्षित रख लिया जाता है । जरूरत भर का अनाज और सब्जी घर में रखकर शेष मंडियों में बेच देते हैं । इनसे हुई आमदनी से उनका साल भर का गुजारा होता है ।
हमारे देश के किसानों को कृषि कार्य में विभिन्न प्रकार की समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है । सबसे बड़ी समस्या है कृषि में आने वाली लागत जो दिनों-दिन बढ़ती चली जा रही है । किसानों को अच्छे बीज खरीदने पड़ते हैं जो बहुत महँगे दामों में मिलते हैं । ट्रैक्टरों या हल-बैल से खेत की जुताई भी आसान नहीं होती । खेतों में सिंचाई के लिए बिजली या पंपसैट की आवश्यकता होती है ।
किसानों को कृषि कार्य में अन्य मजदूरों की सेवाएँ लेनी पड़ती है जिसके बदले उन्हें धन व्यय करना पड़ता है । फसल कटाई से लेकर मंडियों में पहुँचाने तक काफी खर्चा आता है । इतना सब कुछ करने के बाद यदि मंडी में फसल की उचित कीमत न मिले तो वे निराश और हताश हो जाते हैं । उन्हें कर्ज लेकर अगली फसल बोने की तैयारी करनी पड़ती ह
भारतीय किसानों को प्रकृति से लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है । चूंकि हमारे देश में दो-तिहाई कृषि वर्षा और मानसून पर आधारित है इसलिए किसानों को कभी सूखा
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समय पर धूप न निकली तो फसलों पर कीटाणुओं का प्रकोप हो गया । फिर भी प्रकृति से लड़ते-भिड़ते किसान देश भर की आवश्यकताओं के अनुरूप खाद्यान्न उत्पादित कर ही लेते हैं । भारतीय किसान कृषि की उन्नत एवं आधुनिक वैज्ञानिक कृषि का अनुसरण करने लगे हैं जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है । बीज, खाद एवं कृषि उपकरण खरीदने में उन्हें सरकार की ओर से आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है । सरकार उनके लिए सस्ती दरों पर ऋण उपलब्ध कराती है और समय-समय पर ऋण माफ भी कर देती है ।
भारतीय किसान का जीवन सीधा-सादा होता है । वह प्रात : काल उठकर पशुओं को खाना देता है और खेतों में चला जाता है । वह खेतों में डटकर काम करता है । वह खेतों में ही रोटी, छाछ, सलाद आदि नाश्ता करता है । खेतों में उपजी फलियाँ उसे बहुत पसंद हैं । दूध-दही से युक्त भोजन उसे प्रिय है । हरी-ताजी सब्जियाँ उसके तन-मन को संतुष्ट करती हैं । वह गन्ने का रस छक कर पीता है । रोटी, दाल, चावल, साग जिस समय जो मिल जाए उन्हें भूख लगने पर बड़े चाव से खाता है । उसका पहनावा भी सरल होता है । धोती-कुर्ता पायजामा, लुंगी, बनियान आदि पहने, पाँवों में चप्पल धारण किए, सिर पर पगड़ी बाँधे और हाथों में डंडा लिए वह हरित क्रांति का अग्रदूत नजर आता है ।
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भारत की अधिकांश जनता गाँवों में रहती है। गाँववालों का मुख्य धंधा खेती है। इसलिए भारत की जनसंख्या में किसान अधिक हैं। किसानों की दशा बहुत अधिक विपत्तिग्रस्त है।
किसान चुपचाप दुःख उठाते हैं। यह सचमुच दुर्भाग्य की बात है कि जो सारे राष्ट्र को खिलाते हैं वे स्वयं भूखों मरते हैं।
पहले किसान धनी जमींदारों का खेत जोतते थे। जमींदार किसानों से ज्यादा मालगुजारी वसूल करते थे। जमीन की तरक्की के लिए वे रुपए खर्च नहीं करते थे।
किसानों को उपज के लिए वर्षा पर निर्भर करना पड़ता था। सिंचाई का कोई प्रबंध नहीं था। बाढ़ और सूखा बार-बार आते थे। इससे उन्हें बड़ा दुःख होता था। इस के अलावा किसान साल में छः महीने बेकार रहते थे। पर, बेकार समय के लिए कोई धंधा नहीं था। इन सबके फलस्वरूप भारतीय किसानों की दशा अधिक दुर्दशाग्रस्त थी।
भारतीय किसान युगों से गरीब हैं। इसलिए वे भाग्यवादी हो गए हैं। अब वे स्वयं सोचते हैं कि अपना भाग्य कैसे सुधारें।
भारतीय किसानों की एक विशेषता है, जिसका उल्लेख अवश्य किया जाना चाहिए। वे बहुत सीधे हैं। वे ईमानदार, अतिथि-सत्कार करनेवाले और उदार हैं।
किसान चुपचाप दुःख उठाते हैं। यह सचमुच दुर्भाग्य की बात है कि जो सारे राष्ट्र को खिलाते हैं वे स्वयं भूखों मरते हैं।
पहले किसान धनी जमींदारों का खेत जोतते थे। जमींदार किसानों से ज्यादा मालगुजारी वसूल करते थे। जमीन की तरक्की के लिए वे रुपए खर्च नहीं करते थे।
किसानों को उपज के लिए वर्षा पर निर्भर करना पड़ता था। सिंचाई का कोई प्रबंध नहीं था। बाढ़ और सूखा बार-बार आते थे। इससे उन्हें बड़ा दुःख होता था। इस के अलावा किसान साल में छः महीने बेकार रहते थे। पर, बेकार समय के लिए कोई धंधा नहीं था। इन सबके फलस्वरूप भारतीय किसानों की दशा अधिक दुर्दशाग्रस्त थी।
भारतीय किसान युगों से गरीब हैं। इसलिए वे भाग्यवादी हो गए हैं। अब वे स्वयं सोचते हैं कि अपना भाग्य कैसे सुधारें।
भारतीय किसानों की एक विशेषता है, जिसका उल्लेख अवश्य किया जाना चाहिए। वे बहुत सीधे हैं। वे ईमानदार, अतिथि-सत्कार करनेवाले और उदार हैं।
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