India Languages, asked by meetpar99, 5 months ago

write an essay in hindi on dahej eek abhishaap​

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Answered by annette7
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advice:ation:

advice: never give 50 to anyone

Answered by karansaw14366
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दहेज प्रथा : एक अभिशाप

सदियाँ बीत जाने के बावजूद, आज भी, नारी शोषण से मुक्त नहीं हो पाई है। उसके लिए दहेज सबसे बड़ा अभिशाप बन गया है। लड़की का जन्म माता-पिता के लिए बोझ बन जाता है। पैदा होते ही उसे अपनी ही माँ द्वारा जनमे भाई की अपेक्षा दोयम दर्जा प्राप्त होता है। यद्यपि माता-पिता के लिए ममत्व में यह समानता की अधिकारिणी है, तथापि कितने ही उदार व्यक्ति हों, लड़के की अपेक्षा लड़की पराई समझी जाती है।

दहेज समाज की कुप्रथा है। मूल रूप में यह समाज के आभिजात्य वर्ग की उपज है। धनवान् व्यक्ति ही धन के बल पर अपनी अयोग्य कन्या के लिए योग्य वर खरीद लेता है और निर्धन वर्ग एक ही जाति में अपनी योग्य कन्या के लिए उपयुक्त वर पा सकने में असमर्थ हो जाता है।

धीरे-धीरे यह सामाजिक रोग आर्थिक कारणों से भयंकरतम होता चला गया। दहेज के लोभ में नारियों पर अत्याचार बढ़ने लगे। प्रतिदिन अनेक युवतियाँ दहेज की आग में जलकर राख हो जाती हैं अथवा आत्महत्या करने पर विवश होती हैं।

समाज-सुधार की नारेबाजी में समस्या का निराकरण सोच पाने की क्षमता भी समाप्त होती जा रही है। दहेज-प्रथा को मिटाने के लिए कठोर कानून की बातें करनेवाले विफल हैं।

हिंदू कोड बिल के पास हो जाने के बाद जो स्थिति बदली है, यदि उसी के अनुरूप लड़की को कानूनी संरक्षण प्राप्त हो जाए तो दहेज की समस्या सदा-सर्वदा के लिए समाप्त हो सकती है। पिता अपनी संपत्ति से अपनी पुत्री को हिस्सा देने की बजाय एक-दो लाख रुपए दहेज देकर मुक्ति पा लेना चाहता है। इस प्रकार सामाजिक बुराई के साथ ही नारी के कानूनी अधिकार का परोक्ष हनन भी होता है। अभी तक बहुत कम पिताओं ने ही संपत्ति में अपनी बेटी को हिस्सा दिया है। लड़की के इस अधिकार को प्राप्त करने के लिए न्यायालय की शरण लेनी पड़े तो उसे प्राप्त होनेवाले धन का अधिकांश भाग कोर्ट-कचहरी के चक्कर में व्यय हो जाता है।

यदि गहराई से देखें तो हर सामाजिक बुराई की बुनियाद में आर्थिक कारण होते हैं। दहेज में प्राप्त होनेवाले धन के लालच में स्त्री पर अत्याचार करनेवाले दोषी हैं, परंतु उसका कानूनी अधिकार न देकर इस स्थिति में पहुँचा देनेवाले भी कम दोषी नहीं हैं। दहेज पर विजय पाने के लिए स्त्री को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाना आवश्यक है। रूढ़िग्रस्त समाज की अशिक्षित लड़की स्वावलंबी बनेगी कैसे? दहेज जुटाने की बजाय पिता को अपनी पुत्री को उच्च-से-उच्च शिक्षा दिलानी चाहिए। उसे भी पुत्र की तरह अपने पैरों पर खड़ा करना जरूरी है।

दहेज की ज्यादा समस्या उसी वर्ग में पनप रही है, जहाँ संपत्ति और धन है। धनी वर्ग पैसे के बल पर गरीब लड़का खरीद लेते हैं और गरीब की लड़की के लिए रास्ता बंद करने का अपराध करते हैं। लड़के और लड़की में संपत्ति का समान बँटवारा विवाह में धन की फिजूलखर्ची की प्रवृत्ति को कम कर सकता है और इस प्रकार विवाह की शानशौकत, दिखावा, फिजूलखर्ची एवं लेन-देन स्वतः समाप्त हो सकता है।

किसी भी लड़की को यदि उसके पिता की संपत्ति का सही अंश मिल जाए तो उसकी आर्थिक हैसियत उसे आत्मबल प्रदान करे और अपने जीवन-यापन का सहारा पाने के बाद वह स्वयं लालची व क्रूर व्यक्तियों से संघर्ष कर सकेगी। आर्थिक पराधीनता और पिता के घर-द्वार बंद होने के कारण लाखों अबलाओं को अत्याचार सहने के लिए बाध्य होना पड़ता है।

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