Write an essay on corona mahamari ka manav jivan me pravav in hindi .
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वायरस एक तार है जो आप सबको जोड़ता है, तोड़ता नहीं है. इसलिए यदि आप इसको देशों में, सीमाओं में, समुदायों में या वर्गों में बांटकर देखते हैं तो इससे अपना ही नुकसान होगा. जैसा कि ट्रंप प्रशासन के तहत आज अमेरिका में देखा जा रहा है.

ग्लोबलाईज़ेशन या वैश्वीकरण का अगर हम निष्पक्ष तरीके से मौजूदा समय में आकलन करें तो पायेंगे कि — कोविड-19 महामारी के दुनिया में आने और फिर छा जाने से बहुत पहले ही – वैश्वीकरण की उदार व्यवस्था न सिर्फ़ धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ रही थी बल्कि अपने स्थान से ख़िसक रही थी. और इसका बीज बोया था दुनिया में महाशक्ति के तौर पर अपना वर्चस्व जमाने की कोशिश में लगे अमेरिका और चीन के आपसी विवाद ने. सच ये है कि तक़रीबन दुनिया के हर देश में लागू हुए लॉकडाउन की इस प्रक्रिया ने उसी ग़ैर-वैश्विकरण के क्रम को मज़बूत करने का काम किया है. इसके बावजूद दूसरा और बड़ा सच ये है कि कोई भी देश, समाज, वर्ग और समूह इस लड़ाई को अकेले नहीं जीत सकता है. कोविड-19 नाम की इस आफ़त ने पूरी दुनिया को एक ऐसे अनदेखे – अंजाने समुद्र में फेंक दिया है, जिससे सुरक्षित बाहर निकलने के लिए हम सभी को तैराक़ी की क़ला सीखनी होगी.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या इससे सीख लेते हुए हमारी सरकारें अपनी प्राथमिकतों में बदलाव करेगी – क्या उनके लिए युद्ध में इस्तेमाल किए जाने हथियारों से ज़्यादा ज़रूरी अपनी जनता का स्वास्थ्य होगा, क्या वे जन-कल्याण को महत्व देंगे या वापिस से भू-राजनीतिक दबाव में आकर युद्धों के खेल में खो जाएंगे. कोविड-19 के हमले ने दुनिया के विकसित और विकासशील सभी देशों की कमज़ोर और अपर्याप्त जन-स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोलकर रख दी है. ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे – नदी के तेज़ बहाव को पार करते हुए हमें उसके तल पर जमे पत्थरों से मिलने वाली चोट का अंदाज़ा नहीं होता – हम सब इस वक्त़ बस इस तेज़ बहाव वाली नदी से ज़िंदा बच निकलने का रास्ता ही ढूंढ रहे हैं.
न तो ये महामारी इतनी जल्दी ख़त्म होने वाली है और न ही लॉकडाउन इसका असल समाधान है. इस तालाबंदी से हमें सिर्फ़ वो मोहलत मिल रही है – जिसका इस्तेमाल हम अपनी ज़िंदगियों को बचाने और संवारने में लगा सकते हैं. लेकिन ये भी सच है कि मनुष्य कितना भी सोच-विचार करके इस विपदा से लड़ने की कोशिश कर ले – वो कुछ अनदेखे और अप्रत्याशित ख़तरों से पूरी तरह मुक्त नहीं हो सकता है. इसलिए इस समय जो चीज़ सबसे ज़्यादा मानव जीवन की मदद कर सकता है वो है – सूचनाओं के आदान-प्रदान में पारदर्शिता, जो सरकार के विभिन्न अंगों से लेकर उसके नागरिकों तक, सभी पर लागू होता है. सच ये है कि एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने के लिए हम सब के पास बाद में बहुत समय होगा – लेकिन इस वक्त़ जो ज़्यादा ज़रूरी और अहम् है वो ये कि हम सब मिलकर – एक साथ इस विपदा का सामना करें.