Write an Essay on “My Mountaining Experience” in Hindi
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पर्वतारोहण पर निबन्ध | Essay on Mountaineering in Hindi!
मानव आनन्दप्रिय प्राणी है । वह आदि से लेकर अन्त तक आनन्द की खोज में ही लगा रहता है और समस्त मानव सृष्टि ने प्रकृति की गोद में ही जन्म लिया है । इसीलिए वह प्रकृति के अधिक समीप पहुँच गया है । इससे उसका प्रकृति के साथ गहरा नाता जुड़ गया है ।
मानव जीवन का उच्चतर विकास उसी स्थिति में हो सकता है जबकि प्रकृति और मानव का आपसी सम्बन्ध अविच्छिन्न रूप से सदा के लिए बना रहे । इसके लिए वह घुमक्कड़ प्रवृत्ति को अपनाता है । पर्वतारोहण इसी प्रवृत्ति का अंग है । आज के यांत्रिक युग में पर्वतारोहण का शौक जहाँ मानव के साहस का परिचय देता है वहाँ उसका मनोरंजन भी करता है ।
डसके साथ ही यह अछूते स्थलों की खोज का लक्ष्य भी बन जाता है । वैसे पर्वतारोहण स्वयं दुर्गम व दुसाध्य है । भयंकर व कठिन मार्गों को पार कर, सीधी ऊँचाई पर चढ़कर शिखर तक पहुँचना वास्तव में जोखिम का काम है । इस राह पर साहसी लोग ही कदम रखा करते हैं ।
हिमालय क्षेत्र में संसार के सर्वोच्च शिखर ‘ माउण्ट एवरेस्ट ‘ पर अनेकों साहसी पर्वतारोही सफलता पूर्वक पहुँचे हैं । ( तब से वह नागराज ) हिमालय के अन्य दुर्गम शिखरों पर भी अपनी पद चाप छोड़ चुका है । कुछ समय पूर्व उसने कंचनजंगा पर अपनी कीर्ति पताका फहरायी थी । इसके शौकीन पूरे दलबल के साथ उपयोगी वस्तुएँ तथा अनिवार्य सामान ले जाने की भी आवश्यकता पड़ता हें ।
पर्वतारोहण के लिए औजार, मोटे रस्से, जंगली जीव-जन्तुओं से सुरक्षा के लिए अस्त्र, टॉर्च, जल और भोजन की सामग्री, तम्बू, पर्वतों के मानचित्र और कैमरे आदि की आवश्यकता पड़ती है । ये लोग सामान ढोने वाले पहाड़ी, डॉक्टर, पत्रकार और भूगोलवेत्ता को भी साथ लेकर चलना पसन्द करते हैं ।
इनमें अंग्रेज पर्यटक सर जॉर्ज एवरेस्ट, हावर्ड, वैरी, मैलोरी, जनरल ब्रुस, इर्विन, ओल्ड कर्नल हंट, कप्तान हिलेरी, भारतीय पर्यटक शेरपा तेन सिंह और बछेन्द्रीपाल का नाम उल्लेखनीय है जिनके साहस की गाथाएँ सम्पूर्ण विश्व में प्रचलित है ।
पर्वतराज हिमालय भारत का सरताज है । पर्वतारोहण के शौकीनों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है । युवा वर्ग हर साल इसके दुर्गम शिखरों पर पहुँचकर पर्वतारोहण के इतिहास में नया कीर्तिमान जोड़ रहा है । आज के यांत्रिक युग में इसका शौक युवतियों को भी लग गया है । वे भी युवकों के समान ही इस क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं ।
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मानव आनन्दप्रिय प्राणी है । वह आदि से लेकर अन्त तक आनन्द की खोज में ही लगा रहता है और समस्त मानव सृष्टि ने प्रकृति की गोद में ही जन्म लिया है । इसीलिए वह प्रकृति के अधिक समीप पहुँच गया है । इससे उसका प्रकृति के साथ गहरा नाता जुड़ गया है ।
मानव जीवन का उच्चतर विकास उसी स्थिति में हो सकता है जबकि प्रकृति और मानव का आपसी सम्बन्ध अविच्छिन्न रूप से सदा के लिए बना रहे । इसके लिए वह घुमक्कड़ प्रवृत्ति को अपनाता है । पर्वतारोहण इसी प्रवृत्ति का अंग है । आज के यांत्रिक युग में पर्वतारोहण का शौक जहाँ मानव के साहस का परिचय देता है वहाँ उसका मनोरंजन भी करता है ।
डसके साथ ही यह अछूते स्थलों की खोज का लक्ष्य भी बन जाता है । वैसे पर्वतारोहण स्वयं दुर्गम व दुसाध्य है । भयंकर व कठिन मार्गों को पार कर, सीधी ऊँचाई पर चढ़कर शिखर तक पहुँचना वास्तव में जोखिम का काम है । इस राह पर साहसी लोग ही कदम रखा करते हैं ।
हिमालय क्षेत्र में संसार के सर्वोच्च शिखर ‘ माउण्ट एवरेस्ट ‘ पर अनेकों साहसी पर्वतारोही सफलता पूर्वक पहुँचे हैं । ( तब से वह नागराज ) हिमालय के अन्य दुर्गम शिखरों पर भी अपनी पद चाप छोड़ चुका है । कुछ समय पूर्व उसने कंचनजंगा पर अपनी कीर्ति पताका फहरायी थी । इसके शौकीन पूरे दलबल के साथ उपयोगी वस्तुएँ तथा अनिवार्य सामान ले जाने की भी आवश्यकता पड़ता हें ।
पर्वतारोहण के लिए औजार, मोटे रस्से, जंगली जीव-जन्तुओं से सुरक्षा के लिए अस्त्र, टॉर्च, जल और भोजन की सामग्री, तम्बू, पर्वतों के मानचित्र और कैमरे आदि की आवश्यकता पड़ती है । ये लोग सामान ढोने वाले पहाड़ी, डॉक्टर, पत्रकार और भूगोलवेत्ता को भी साथ लेकर चलना पसन्द करते हैं ।
इनमें अंग्रेज पर्यटक सर जॉर्ज एवरेस्ट, हावर्ड, वैरी, मैलोरी, जनरल ब्रुस, इर्विन, ओल्ड कर्नल हंट, कप्तान हिलेरी, भारतीय पर्यटक शेरपा तेन सिंह और बछेन्द्रीपाल का नाम उल्लेखनीय है जिनके साहस की गाथाएँ सम्पूर्ण विश्व में प्रचलित है ।
पर्वतराज हिमालय भारत का सरताज है । पर्वतारोहण के शौकीनों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है । युवा वर्ग हर साल इसके दुर्गम शिखरों पर पहुँचकर पर्वतारोहण के इतिहास में नया कीर्तिमान जोड़ रहा है । आज के यांत्रिक युग में इसका शौक युवतियों को भी लग गया है । वे भी युवकों के समान ही इस क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं ।
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