write an essay on natural disasters in Hindi
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"प्राकृतिक आपदाओं से डरने की आवश्यकता नहीं वरन उनसे निपटने के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है।"
एक प्राकृतिक आपदा, पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न एक बड़ी घटना है। यह जीवन और संपत्ति के एक बड़े नुकसान का कारण बनती है। ऐसी आपदाओं के दौरान अपना जीवन खो देने वालों की संख्या से कहीं अधिक संख्या ऐसे लोगों की होती है जो बेघर और अनाथ होने के बाद जीवन का सामना करते हैं। यहाँ तक कि शांति और अर्थव्यवस्था भी प्राकृतिक आपदा से बुरी तरह से प्रभावित हो जाती है।
एक प्राकृतिक आपदा एक प्राकृतिक जोखिम का ही परिणाम है (जैसे कि हिमस्खलन, भूकंप, ज्वालामुखी, बाढ़, सूनामी, चक्रवाती तूफ़ान, बर्फानी तूफ़ान, ओलावृष्टि आदि) जो कि मानव गतिविधियों को प्रभावित करता है। मानव दुर्बलताओं को उचित योजना और आपातकालीन प्रबंधन का अभाव और बढ़ा देता है, जिसकी वजह से आर्थिक, मानवीय और पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है।
आज पृथ्वी में अनेक तरह की प्राकृतिक आपदा से हर साल जान-माल का बहुत भारी नुकसान होता है। ये आपदाएँ अचानक आकर कुछ पलों में सब कुछ स्वाहा कर देती है। मनुष्य जब तक कुछ समझ पाता है, तब तक यह आपदा उसका सब कुछ तबाह कर चुकी होती है। इन आपदाओं से बचने के लिए ना ही उसके पास कोई कारगर उपाय है और न ही कोई कारगर यंत्र।
एक प्राकृतिक आपदा एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और यह सत्य है कि हम इसे रोक नहीं सकते। लेकिन कुछ तैयारी करके, हम अपने जीवन और संपत्ति की नुकसान की भयावहता को कुछ कम कर सकते हैं। 'ग्लोबल वार्मिंग' जो सभी समस्याओं की जड़ है, सबसे पहले हमें उस को कम करना चाहिए। ऐसी किसी भी आपदा के पश्चात पैसे की पर्याप्तता हमारे जीवन के पुनर्निर्माण में मुख्य भमिका निभा सकती है। इसके लिए आवश्यक रूप से बीमा पॉलिसियां होना चाहिए।
प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए वैज्ञानिकों को अग्रिम वार्मिंग सिस्टम का आविष्कार करना चाहिए। निर्माण करते समय हमें इस बात से आश्वस्त होना चाहिए कि उक्त निर्माण भूकंप का सामना करने के लिए पर्याप्त मजबूत है। लोगों को ऐसी किसी भी आपदा के दौरान निकासी के बारे में शिक्षित करना चाहिए। इस प्रकार, कुछ सावधानियां बरत कर हम प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम कर उसकी भरपाई करने का प्रयास कर सकते हैं।
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ऐसी कोई भी प्राकृतिक घटना जिससे मनुष्य के जीवन या सामग्री को हानि पहुंचे प्राकृतिक आपदा कहलाता है। सदियों से प्राकृतिक आपदायें मनुष्य के अस्तित्व के लिए चुनौती रही है।
जंगलो में आग, बाढ़, हिमस्खलन, भूस्खलन, भूकम्प, ज्वालामुखी, सुनामी, चक्रवाती तूफ़ान, बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदायें बार-बार मनुष्य को चेतावनी देती है। वर्तमान में हम प्राकृतिक संसाधनो का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है।
ये मनुष्य के मनमानी का ही नतीजा है। इन आपदाओं को ‘ईश्वर का प्रकोप या गुस्सा‘ भी कहा जाता है। आज मनुष्य अपने निजी स्वार्थ के लिए वनों, जंगलो, मैदानों, पहाड़ो, खनिज पदार्थो का अंधाधुंध दोहन कर रहा है। उसी के परिणाम स्वरुप प्राकृतिक आपदायें दिन ब दिन बढ़ने लगी है।
हमे सावधानीपूर्वक प्राकृतिक संसाधनो का इस्तेमाल करना चाहिये। ऐसी आपदाओं के कारण भारी मात्रा में जान-माल की हानि होती है।
अगर हम भारत और आस पास के कुछ बड़े प्राकृतिक आपदाओं की बात ही करें तो –
- 1999 में ओड़िसा में महाचक्रवात आया जिसमे 10 हजार से अधिक लोग मारे गये।
- 2001 का गुजरात भूकंप कोई नही भूल सकता है। इसमें 20 हजार से अधिक लोग मारे गये। यह भूकंप 26 जनवरी 2001 में आया था। इसमें अहमदाबाद, राजकोट, सूरत, गांधीनगर, कच्छ, जामनगर जैसे जिले पूरी तरह नष्ट हो गये।
- 2004 में हिन्द महासागर में सुनामी आ गयी। इसमें अंडमान निकोबार द्वीप समूह, श्रीलंका, इंडोनेशिया, दक्षिण भारत प्रभावित हुए। इसमें 2 लाख से अधिक लोगो की जान चली गयी।
- 2014 में जम्मू कश्मीर में भीषण बाढ़ आई जिसमे 500 से अधिक लोग मारे गये।