Hindi, asked by Rocknain4816, 1 year ago

Write an Essay on the Life History of Maharana Pratap in Hindi

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Answered by rockzsresi
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त्याग, बलिदान, निरंतर संघर्ष और स्वतन्त्रता के रक्षक के रूप में देशवासी जिस महापुरूष को सदैव याद करते है, उनका नाम है ‘महाराणा प्रताप’. उन्होंने आदर्शो, जीवन मूल्यों व स्वतन्त्रता के लिए अपना सर्वस्व दाँव पर लगा दिया. इसी कारण महाराणा प्रताप का नाम हमारे देश के इतिहास में महान देशभक्त के रूप में आज भी अमर है.

महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के उदयपुर नगर में 9 मई सन 1549 को हुआ था. बचपन से ही उनमे वीरता कूट – कूट कर भरी थी. गौरव, सम्मान, स्वाभिमान व स्वतन्त्रता के संस्कार उन्हें पैतृक रूप में मिले थे. राणा प्रताप का व्यक्तित्व ऐसे अपराजेय पौरूष तथा अदम्य साहस का प्रतीक बन गया है की उनका नाम आते ही मन में स्वाभिमान, स्वतंत्र्य – प्रेम तथा स्वदेश अनुराग के भाव जागृत हो जाते है.

*. प्रोफसर बीरबल साहनी की सफलता की कहानी

मुग़ल सम्राट अकबर एक महत्वकांक्षी शासक था. वह सम्पूर्ण भारत पर अपने साम्राज्य का विस्तार चाहता था. उसने अनेक छोटे – छोटे राज्यों को अपने अधीन करने के बाद मेवाड़ राज्य पर चड़ाई की. उस समय मेवाड़ में राणा उदय सिंह का शासन था. राणा उदय सिंह के साथ युद्ध में अकबर ने मेवाड़ की राजधानी चितौड़ सहित राज्य के बड़े भाग पर अधिकार कर लिया. राणा उदय सिंह ने उदयपुर नामक नई राजधानी बसाई.

सन 1572 में प्रताप के शासक बनने के समय राज्य के सामने बड़ी संकटपूर्ण स्थिति थी. शक्ति और साधनों से सम्पन्न आक्रामक मुग़ल सेना से मेवाड़ की स्वतन्त्रता और परम्परागत सम्मान की रक्षा का कठिन कार्य प्रताप के साहस की प्रतीक्षा कर रहा था.

अकबर का साम्राज्य विस्तार की लालसा तथा राणा प्रताप की स्वतंत्रता – रक्षा के दृढ संकल्प के बीच संघर्ष होना स्वाभाविक था. अकबर ने राणा प्रताप के विरुद्ध ऐसी कूटनीतिक व्यूह रचना की थी कि उसे मुग़ल सेना के साथ ही मान सिंह के नेतृत्व वाली राजपूत सेना से भी संघर्ष करना पड़ा. इतना ही नहीं, राणा का अनुज शक्ति सिंह भी मुग़ल सेना की ओर से युद्ध में सम्मिलत हुआ. ऐसी विषम स्थिति में महाराणा ने साहस नहीं छोड़ा और अपनी छोटी सी सेना के साथ हल्दीघाटी में मोर्चा जमाया.

हल्दीघाटी युद्ध में मुग़ल सेना को नाको चने चबाने पड़े. राणा के संहारक आक्रमण से मुग़ल सेना की भारी क्षति हुई, किन्तु विशाल मुग़ल सैन्य शक्ति के दबाव से घायल राणा को युद्ध – भूमि से हटना पड़ा.

इस घटना से सरदार झाला, राणा के प्रिय घोड़े चेतक और अनुज शक्ति सिंह को विशेष प्रसिद्धि मिली. सरदार झाला ने राणा प्रताप को बचाने के लिए आत्म बलिदान किया. उसने स्वयं राणा का मुकुट पहन लिया, जिससे शत्रु झाला को ही राणा प्रताप समझकर उस पर प्रहार करने लगे.

घोड़े चेतक ने घायल राणा को युद्ध भूमि से बाहर सुरक्षित लाकर ही अपने प्राण त्यागे तथा शक्ति सिंह ने संकट के समय में राणा की सहायता कर अपने पहले आचरण पर पश्चाताप किया. हल्दी घाटी का युद्ध भारतीय इतिहास की प्रसिद्ध घटना है. इससे अकबर और राणा के बीच संघर्ष का अंत नहीं हुआ बल्कि लम्बे संघर्ष की शुरुआत हुई.

राणा प्रताप ने समय और परिस्थितयो के अनुसार अपनी युद्ध नीति को बदला तथा शत्रु सेना का यातायात रोक कर और छापामार युद्ध की नीति अपनाकर मुग़ल सेना को भारी हानि पहुंचाई. इससे मुग़ल सेना के पैर उखड़ने लगे. धीरे – धीरे राणा प्रताप ने चितौड़, अजमेर तथा मंडलगढ़ को छोड़कर मेवाड़ का सारा राज्य मुगलों के अधिकार से मुक्त करा लिया.

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