Hindi, asked by shelke455, 9 months ago

write an essay on vahi manushya jo manushya ke liye mare..... please answer fast......​

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Answered by Anonymous
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Answer:

पारस्परिक सहयोग का मानव-जीवन में विशेष महत्व है। इस सद्भावना के अनेक रूप हमें विश्व में दृष्टिगत होते हैं। कहीं पर यह पारस्परिक सहयोग स्वार्थपरता पर अवलम्बित है, तो कहीं धूर्तता और कूटनीति का चोला पहने हुए है और सहयोग में बदले की भावना भी रहती ही है। यह सद्भावना ही उपकार के नाम से भी अभिहित की जाती है। वास्तव में जो कार्य विशेष परिस्थिति में किए जाते हैं, वे उपकार कहलाते हैं; किन्तु जो बदले की भावना से अलग होकर सिर्फ परहित के लिए किए जाते हैं, वे परोपकार कहलाते हैं। इन कार्यों में स्वार्थ की भावना का सदैव अभाव रहता है। दूसरे की शोचनीय अवस्था करुणा उपजा जाती है, यह सहानुभूति को जन्म देती है और इससे परोपकार की प्रेरणा आ जाती है। आज के युग में मानव का सबसे बड़ा गुण है-परोपकार। इसका शब्दिक अर्थ है दूसरों के लिए अपने स्वार्थ का त्याग करना । अतः राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने कहा है कि वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे इस काव्योक्ति में मानवता का लक्ष्य दर्शाया गया है।

काव्योक्ति का तात्पर्य : इस काव्योक्ति का तात्पर्य यह है कि जो मनुष्य दूसरों के उपकार के लिए तत्पर होता है और उसी के लिए काया धारण रखता है अर्थात् उसी के लिए मरता-जीता है, वही वास्तव में मनुष्य है। यहाँ पर मनुष्य का अर्थ उससे है जो मानवता के वास्तविक गुणों से विभूषित है। सच्चा मनुष्य वही है जो जन-कल्याण के लिए अपने प्राण तक कुर्बान कर सकता है। बहुधा सभी महत्त्वाकांक्षी जन-कल्याण के लिए उद्यत होते हैं; पर इनमें से अधिकांश छोटा-सा कार्य करके बड़ा श्रेय पाना चाहते हैं; पर वास्तविक मनुष्यों का जीना-मरना जनहित के लिए ही होता है।

Answered by kaushikkartikay02
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पारस्परिक सहयोग का मानव-जीवन में विशेष महत्व है। इस सद्भावना के अनेक रूप हमें विश्व में दृष्टिगत होते हैं। कहीं पर यह पारस्परिक सहयोग स्वार्थपरता पर अवलम्बित है, तो कहीं धूर्तता और कूटनीति का चोला पहने हुए है और सहयोग में बदले की भावना भी रहती ही है। यह सद्भावना ही उपकार के नाम से भी अभिहित की जाती है। वास्तव में जो कार्य विशेष परिस्थिति में किए जाते हैं, वे उपकार कहलाते हैं; किन्तु जो बदले की भावना से अलग होकर सिर्फ परहित के लिए किए जाते हैं, वे परोपकार कहलाते हैं। इन कार्यों में स्वार्थ की भावना का सदैव अभाव रहता है। दूसरे की शोचनीय अवस्था करुणा उपजा जाती है, यह सहानुभूति को जन्म देती है और इससे परोपकार की प्रेरणा आ जाती है। आज के युग में मानव का सबसे बड़ा गुण है-परोपकार। इसका शब्दिक अर्थ है दूसरों के लिए अपने स्वार्थ का त्याग करना । अतः राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने कहा है कि वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे इस काव्योक्ति में मानवता का लक्ष्य दर्शाया गया है।

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