Hindi, asked by maradanijaswanthsai2, 3 months ago

WRITE AN ESSAY ON,
VARTMAAN SIKSHA AUR BHAVISHYA ( PRESENT EDUCATION SYSTEM AND FUTURE) in hindi​

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Answered by vaishnavi432
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भूमिका : भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली को परतंत्र काल की शिक्षा प्रणाली माना जाता है। यह ब्रिटिश शासन की देन मानी जाती है। इस प्रणाली को लॉर्ड मैकाले ने जन्म दिया था। इस प्रणाली की वजह से आज भी सफेद कॉलरों वाले लिपिक और बाबू ही पैदा हो रहे हैं। इसी शिक्षा प्रणाली की वजह से विद्यार्थियों का शारीरिक और आत्मिक विकास नहीं हो पाता है।

प्राचीन भारत में शिक्षा का महत्व : प्राचीन काल में शिक्षा का बहुत महत्व था। सभ्यता, संस्कृति और शिक्षा का उदय सबसे पहले भारत में हुआ था। प्राचीनकाल में शिक्षा का स्थान नगरों और शोरगुल से बहुत दूर वनों के गुरुकुल में होता था। इन गुरुकुलों का संचालन ऋषि-मुनि करते थे। प्राचीन काल में विद्यार्थी ब्रह्मचर्य का पालन करते थे और अपने गुरु के चरणों में बैठकर ही पूरी शिक्षा प्राप्त करते थे।

कुछ इसी तरह के विद्यालय तक्ष शिला और नालंदा थे। यहाँ पर विदेशी भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे। फिर मध्ययुग आया तब भारत को लंबे समय तक परतंत्रता भोगनी पड़ी थी। मुसलमानों के युग में अरबी-फारसी शिक्षा का प्रसार हुआ। जब 18 वीं और 19 वीं शताब्दी आई तो शिक्षा को केवल अमीर और सामंत ही ग्रहण कर सकते थे। स्त्री शिक्षा तो लगभग खत्म ही हो गई थी।नवीन शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता : हमारा भारत 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ था। हमारे कर्णधारों का ध्यान नई शिक्षा प्रणाली की तरफ गया क्योंकि ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली हमारी शिक्षा प्रणाली के अनुकूल नहीं थी। गाँधी जी ने शिक्षा के विषय में कहा था कि शिक्षा का अर्थ बच्चों में सारी शारीरिक, मानसिक और नैतिक शक्तियों का विकास करना होता है। शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने के लिए अनेक समितियां बनाई गयीं।

कमेटी द्वारा एक विशाल योजना बनाई गई जो तीन साल के भीतर 50 % शिक्षा का प्रसार कर सके। सैकेंडरी शिक्षा का निर्माण किया गया। विश्वविद्यालय से ही समस्या को सुलझाने के प्रयास किये गये। बाद में बेसिक शिक्षा समिति बनाई गई जिसका उद्देश्य भारत में बेसिक शिक्षा का प्रसार करना था। अखिल भारतीय शिक्षा समिति की सिफारिस की वजह से बच्चों में बेसिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया था।

कोठारी आयोग की स्थापना : शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन लाने के लिए कोठारी आयोग की स्थापना की गई। इस आयोग ने राष्ट्रीय स्तर पर नई योजना लागु करने की सिफारिश की। इस योजना की चर्चा-परिचर्चा लंबे समय तक चली थी। देश के बहुत से राज्यों में इस प्रणाली को लागू किया गया था। इस प्रणाली से दस साल तक दसवीं कक्षा में सामान्य शिक्षा होगी।

इसमें सभी विद्यार्थी एक जैसे विषयों का अध्ययन करेंगे। इस पाठ्यक्रम में दो भाषाएँ, गणित, विज्ञान और सामाजिक पांच विषयों पर अध्ययन किया जायेगा। लेकिन विद्यार्थियों को शारीरिक शिक्षा से भी परिचित होना चाहिए। सातवीं की परीक्षा के बाद विद्यार्थी अलग-अलग विषयों पर अध्ययन करेंगे। अगर वो चाहे तो विज्ञान ले सकता है, कॉमर्स ले सकते हैं, और औद्योगिक कार्यों के लिए क्राफ्ट भी ले सकता है।

नवीन शिक्षा नीति के लाभ : नवीन शिक्षा प्रणाली को रोजगार को सामने रखकर बनाया गया है। हम लोग अक्सर देखते हैं कि लोग विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों में भाग तो लेते हैं लेकिन पढने में उनकी रूचि नहीं होती है। ऐसे लोग समाज में अनुशासनहीनता और अराजकता पैदा करते हैं। नई शिक्षा नीति से हमें यह लाभ होगा कि ऐसे विद्यार्थी दसवीं तक ही रह जायेगे और वे महाविद्यालय में प्रवेश नहीं ले पाएंगे।

जो विद्यार्थी योग्य होंगे वे कॉलेजों में प्रवेश ले सकेंगें। दसवीं करने के बाद विद्यार्थी डिप्लोमा पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेकर रोजगार प्राप्त कर सकेंगे। लेकिन अगर हमें नवीन शिक्षा प्रणाली को सफल बनाना है तो स्थान-स्थान पर डिप्लोमा पाठ्यक्रम खोलने पड़ेंगे जिससे दसवीं करने के बाद विद्यार्थी कॉलेजों की तरफ नहीं भागें।

उपसंहार : इससे शिक्षित लोगों की बेरोजगारी में कमी आएगी और शिक्षित लोगों का समाज में मान-सम्मान होगा। इस शिक्षा प्रणाली से विद्यार्थियों का सर्वंगीण विकास होगा और यह भविष्य के निर्माण के लिए भी सहायक होगी। इस प्रणाली को पूरी तरह से सफल बनाने का भार हमारे शिक्षकों पर है।

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