write an hindi essay on Shiksha ki Vikas Hetu mobile ki avashyakta
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21वीं शताब्दी की वैश्विक अर्थव्यवस्था ऐसे वातावरण में उन्नति कर सकती है जो रचनात्मकता एवं काल्पनिकता, विवेचनात्मक सोच और समस्या के समाधान से संबंधित कौशल पर आधारित हो। अनुभवमूलक विश्लेषण शिक्षा और आर्थिक उन्नति के मध्य सुदृढ़ सकारात्मक संबंध होते हैं। भारत में स्कूल जाने वालों की आयु 6-18 वर्ष के मध्य की 30.5 करोड़ की (2011 की जनगणना के अनुसार) की विशाल जनसंख्या है, जो कुल जनसंख्या का 25% से अधिक है। यदि बच्चों को वास्तविक दुनिया का आत्मविश्वास से सामना करने की शिक्षा दी जाए तो भारत में इस जनसांख्यिकीय हिस्से की संपूर्ण सामर्थ्य का अपने लिये उपयोग करने की क्षमता है।
संधारणीय विकास लक्ष्य 2030 को अंगीकार करने के बाद ध्यान माध्यमिक शिक्षा के स्तर तक 'गुणवत्ता के साथ निष्पक्षता' पर स्थानांतरित हो गया है।
कुछ महीनों पहले देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक उद्बोधन(मन की बात) में गुणवत्ता के महत्व पर इन शब्दों में ज़ोर दिया थाः "अब तक सरकार का ध्यान देश भर में शिक्षा के प्रसार पर था किंतु अब वक़्त आ गया है कि ध्यान शिक्षा की गुणवत्ता पर दिया जाए। अब सरकार को स्कूलिंग की बजाय ज्ञान पर अधिक ध्यान देना चाहिए।" मानव संसाधन विकास मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी घोषणा की थी कि "देश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार सर्वोच्च प्राथमिकता होगा।" स्कूलिंग की बजाय ज्ञानार्जन पर ध्यान स्थानांतरित करने का अर्थ इनपुट से नतीजों पर ध्यान देना होगा।
राज्य सरकारों की साझेदारी के साथ केंद्र द्वारा प्रायोजित एवं भारत सरकार द्वारा कार्यान्वित सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) ने आरम्भिक शिक्षा को सर्वव्यापी बनाने में यथेष्ट सफलता पाई है। आज देश के 14.5 लाख प्राथमिक विद्यालयों में 19.67 करोड़ बच्चे दाखिल हैं। स्कूली शिक्षा को बीच में छोड़ कर जाने की दर में यथेष्ट कमी आई है, किंतु यह अब भी प्राथमिक स्तर पर 16% एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर 32% बनी हुई है, जिसमें उल्लेखनीय कमी करना आवश्यक है। एक सर्वेक्षण के अनुसार विद्यालयों से बाहर बच्चों की संख्या वर्ष 2005 में 135 लाख से घटकर वर्ष 2014 में 61 लाख हो गई, अंतिम बच्चे की भी विद्यालय में वापसी सुनिश्चित करने हेतु संपूर्ण प्रयास किये जाने चाहिए।