write an short essay on pt.usha in hindi
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essay on pt.usha:
1. प्रस्तावना:
जिन भारतीय महिलाओं ने खेल जगत् में अपना नाम रोशन किया है, उनमें पी॰टी॰ उषा का नाम सर्वोपरि है । इनकी खेल सम्बन्धी उपलब्धि के कारण इन्हें भारत की उड़नपरी, गोल्डन गर्ल तथा एशिया स्प्रिंट कहा जाता है । पी॰टी॰ उषा देश की एकमात्र ऐसी महिला खिलाडी हैं, जिन्होंने एशियाई तथा ओलम्पिक खेलों में भी ऐतिहासिक गौरव हासिल किया है ।
2. जन्म परिचय व उपलब्धियां:
पी॰टी॰ उषा, जिनका पूरा नाम पिलवाल कंडी टेकापरविल उषा है, उनका जन्म केरल राज्य के कालीकट के निकट एक छोटे से गांव प्योली में 20 मई 1963 को हुआ था । किशोर प्रतिभाओं को खेल सम्बन्धी आवश्यक प्रशिक्षण देने हेतु खेल छात्रावासों की योजना केरल सरकार ने सातवें दशक में प्रारम्भ की थी, जिसके माध्यम से किशोर प्रतिभाओं को पढ़ाई के साथ-साथ खेल सम्बन्धी आवश्यक प्रशिक्षण दिया जा सके ।
केरल खेल परिषद् प्रत्येक प्रतिभावान खिलाडी छात्र-छात्राओं को 250 रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति के साथ-साथ सूप, फल, अण्डे आदि के रूप में पौष्टिक आहार की भी सुविधा प्रदान करती है । पी॰टी॰ उषा को 1976-77 में कन्नौर खेल छात्रावास में प्रवेश मिला, जहां के प्रशिक्षक नांबियारजी ने उषा को विशेष रूप से दौड़ के लिए प्रशिक्षित किया । शुरू के वर्षों में उषा के सामने कोई प्रतियोगिता नहीं थी ।
बाधा दौड़ और कूदने का अभ्यास ही वह करती थीं । 1978 में 14 वर्ष की अवस्था में उषा 100 मीटर दौड़ 13 सैकण्ड में और 200 मीटर 38 सैकण्ड में दौड़ने लगी । राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रतियोगिताओं में वह 60 एवं 80 मीटर की बाधा दौड़ में भी हिस्सा लेती रहीं ।
आठवें दशक में वे राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करती रहीं । इनके प्रशिक्षक नांबियार ने उषा की विशिष्ट योग्यता को पहचानकर इन्हें 100 मीटर तथा 200 मीटर की दौड़ पर ही ध्यान केन्द्रित करने को कहा ।
सन् 1982 में नवम् एशियाई खेलों में वह 100 तथा 200 मीटर दौड़ के कड़े मुकाबले में दूसरे स्थान पर रहीं । लासएंजिल्स ओलम्पिक में उषा 400 मीटर की बाधा दौड़ में फाइनल तक पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं । केवल एक सैकण्ड के 100वें हिस्से के अन्तर से वह पीछे रह गयीं ।
ओलम्पिक के बाद जर्काता में 1984 के एशियाई ट्रैक एण्ड फील्ड प्रतियोगिता में उषा ने 100, 200 तथा 400 मीटर की बाधा दौड़ में प्रथम स्थान अर्जित किया । सियोल में आयोजित एशियाई खेलों में उषा ने 400 मीटर की बाधा दौड़ में स्वर्ण पदक प्राप्त कर देश का गौरव बढ़ाया ।
दूसरे दिन 200 मीटर की दौड़ में उषा ने एक और स्वर्ण पदक 4 अक्टूबर 1986 को प्राप्त किया । 400 मीटर की दौड़ में इन्होंने तीसरा स्वर्ण पदक भी प्राप्त कर देश की महान् खिलाडी होने का गौरव प्राप्त किया । इन खेलों में कुल मिलाकर उषा ने व्यक्तिगत रूप से 4 स्वर्ण पदक हासिल किये ।
हालांकि इस दौड़ में बलसम्मा ने निराशाजनक शुराआत की । मध्य क्रम में दौड़ रही वन्दना की मांसपेशियों में आये खिंचाव की वजह से दौड़ की गति धीमी हो गयी थी, तथापि अन्तिम दौड़ में पी॰टी॰ उषा ने फर्राटा दौड़ लगाकर जापानी प्रतिद्वन्द्वी को पीछे छोड़ते हुए रिले-रेस जीत ली । एक साथ 4 स्वर्ण पदक प्राप्त कर उषा ने स्प्रिन क्वीन बनने का सम्मान प्राप्त किया ।
आम जनता ने इन्हें ”उड़न परी” के नाम से नवाजा । अर्जुन पुरस्कार एवं पद्मश्री से सम्मानित उषा ने दौड़ के क्षेत्र में हमारे देश को नयी ऊंचाइयां दीं । प्रातःकाल 3 घण्टे, शाम के 2 घण्टे दौड़ का नियमित अभ्यास के साथ-साथ योग की क्रियाओं ने उषा को सफलता की ओर ले जाने हेतु हमेशा से प्रेरित किया ।
अपनी स्वर्णिम खेल-प्रतिभा का प्रदर्शन कर उषा ने खेल-जीवन से संन्यास लेकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया है । सुखद वैवाहिक जीवन जीते हुए भी खेल के प्रति इनकी रुचि जरा भी कम नहीं हुई है । नयी खेल-प्रतिभाओं को अपने कोचिंग सेंटर के माध्यम से तैयार करने में आज भी वह जुटी हुई हैं ।
3. उपसंहार:
यह सत्य है कि हमारे देश में खेल के क्षेत्र में महान् प्रतिभाओं की कभी कोई कमी नहीं रही है । आवश्यकता है, तो इस बात की कि उन्हें सही अवसर मिल सके । देश के अन्य सभी राज्यों में भी पढ़ाई के साथ-साथ विभिन्न खेलों को भी महत्त्व प्रदान कर खिलाड़ियों को पहचान की जानी चाहिए ।
हमारे देश में खेल के क्षेत्र का दुःखद पहलू यह है कि प्रतिभावान खिलाड़ियों को समुचित अवसर नहीं मिल पाता । अवसर मिलने के बाद यदि कोई खिलाड़ी पूरी लगन और ईमानदारी से अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु सतत प्रयत्नशील रहे, तो वह भी पी॰टी॰ उषा जैसा अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त खिलाड़ी होने का गौरव प्राप्त कर सकता है ।
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. प्रस्तावना:
जिन भारतीय महिलाओं ने खेल जगत् में अपना नाम रोशन किया है, उनमें पी॰टी॰ उषा का नाम सर्वोपरि है । इनकी खेल सम्बन्धी उपलब्धि के कारण इन्हें भारत की उड़नपरी, गोल्डन गर्ल तथा एशिया स्प्रिंट कहा जाता है । पी॰टी॰ उषा देश की एकमात्र ऐसी महिला खिलाडी हैं, जिन्होंने एशियाई तथा ओलम्पिक खेलों में भी ऐतिहासिक गौरव हासिल किया है ।
2. जन्म परिचय व उपलब्धियां:
पी॰टी॰ उषा, जिनका पूरा नाम पिलवाल कंडी टेकापरविल उषा है, उनका जन्म केरल राज्य के कालीकट के निकट एक छोटे से गांव प्योली में 20 मई 1963 को हुआ था । किशोर प्रतिभाओं को खेल सम्बन्धी आवश्यक प्रशिक्षण देने हेतु खेल छात्रावासों की योजना केरल सरकार ने सातवें दशक में प्रारम्भ की थी, जिसके माध्यम से किशोर प्रतिभाओं को पढ़ाई के साथ-साथ खेल सम्बन्धी आवश्यक प्रशिक्षण दिया जा सके ।
केरल खेल परिषद् प्रत्येक प्रतिभावान खिलाडी छात्र-छात्राओं को 250 रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति के साथ-साथ सूप, फल, अण्डे आदि के रूप में पौष्टिक आहार की भी सुविधा प्रदान करती है । पी॰टी॰ उषा को 1976-77 में कन्नौर खेल छात्रावास में प्रवेश मिला, जहां के प्रशिक्षक नांबियारजी ने उषा को विशेष रूप से दौड़ के लिए प्रशिक्षित किया । शुरू के वर्षों में उषा के सामने कोई प्रतियोगिता नहीं थी ।
बाधा दौड़ और कूदने का अभ्यास ही वह करती थीं । 1978 में 14 वर्ष की अवस्था में उषा 100 मीटर दौड़ 13 सैकण्ड में और 200 मीटर 38 सैकण्ड में दौड़ने लगी । राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रतियोगिताओं में वह 60 एवं 80 मीटर की बाधा दौड़ में भी हिस्सा लेती रहीं ।
आठवें दशक में वे राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करती रहीं । इनके प्रशिक्षक नांबियार ने उषा की विशिष्ट योग्यता को पहचानकर इन्हें 100 मीटर तथा 200 मीटर की दौड़ पर ही ध्यान केन्द्रित करने को कहा ।
सन् 1982 में नवम् एशियाई खेलों में वह 100 तथा 200 मीटर दौड़ के कड़े मुकाबले में दूसरे स्थान पर रहीं । लासएंजिल्स ओलम्पिक में उषा 400 मीटर की बाधा दौड़ में फाइनल तक पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं । केवल एक सैकण्ड के 100वें हिस्से के अन्तर से वह पीछे रह गयीं ।
ओलम्पिक के बाद जर्काता में 1984 के एशियाई ट्रैक एण्ड फील्ड प्रतियोगिता में उषा ने 100, 200 तथा 400 मीटर की बाधा दौड़ में प्रथम स्थान अर्जित किया । सियोल में आयोजित एशियाई खेलों में उषा ने 400 मीटर की बाधा दौड़ में स्वर्ण पदक प्राप्त कर देश का गौरव बढ़ाया ।
दूसरे दिन 200 मीटर की दौड़ में उषा ने एक और स्वर्ण पदक 4 अक्टूबर 1986 को प्राप्त किया । 400 मीटर की दौड़ में इन्होंने तीसरा स्वर्ण पदक भी प्राप्त कर देश की महान् खिलाडी होने का गौरव प्राप्त किया । इन खेलों में कुल मिलाकर उषा ने व्यक्तिगत रूप से 4 स्वर्ण पदक हासिल किये ।
हालांकि इस दौड़ में बलसम्मा ने निराशाजनक शुराआत की । मध्य क्रम में दौड़ रही वन्दना की मांसपेशियों में आये खिंचाव की वजह से दौड़ की गति धीमी हो गयी थी, तथापि अन्तिम दौड़ में पी॰टी॰ उषा ने फर्राटा दौड़ लगाकर जापानी प्रतिद्वन्द्वी को पीछे छोड़ते हुए रिले-रेस जीत ली । एक साथ 4 स्वर्ण पदक प्राप्त कर उषा ने स्प्रिन क्वीन बनने का सम्मान प्राप्त किया ।
आम जनता ने इन्हें ”उड़न परी” के नाम से नवाजा । अर्जुन पुरस्कार एवं पद्मश्री से सम्मानित उषा ने दौड़ के क्षेत्र में हमारे देश को नयी ऊंचाइयां दीं । प्रातःकाल 3 घण्टे, शाम के 2 घण्टे दौड़ का नियमित अभ्यास के साथ-साथ योग की क्रियाओं ने उषा को सफलता की ओर ले जाने हेतु हमेशा से प्रेरित किया ।
अपनी स्वर्णिम खेल-प्रतिभा का प्रदर्शन कर उषा ने खेल-जीवन से संन्यास लेकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया है । सुखद वैवाहिक जीवन जीते हुए भी खेल के प्रति इनकी रुचि जरा भी कम नहीं हुई है । नयी खेल-प्रतिभाओं को अपने कोचिंग सेंटर के माध्यम से तैयार करने में आज भी वह जुटी हुई हैं ।
3. उपसंहार:
यह सत्य है कि हमारे देश में खेल के क्षेत्र में महान् प्रतिभाओं की कभी कोई कमी नहीं रही है । आवश्यकता है, तो इस बात की कि उन्हें सही अवसर मिल सके । देश के अन्य सभी राज्यों में भी पढ़ाई के साथ-साथ विभिन्न खेलों को भी महत्त्व प्रदान कर खिलाड़ियों को पहचान की जानी चाहिए ।
हमारे देश में खेल के क्षेत्र का दुःखद पहलू यह है कि प्रतिभावान खिलाड़ियों को समुचित अवसर नहीं मिल पाता । अवसर मिलने के बाद यदि कोई खिलाड़ी पूरी लगन और ईमानदारी से अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु सतत प्रयत्नशील रहे, तो वह भी पी॰टी॰ उषा जैसा अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त खिलाड़ी होने का गौरव प्राप्त कर
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