write eassy on if was principle in my school in hindi language
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किसी स्कूल की सफलता और विफलता बहुत कुछ उसके प्रिंसिपल पर निर्भर करती है । स्कूल का अनुशासन, उसके विद्यार्थियों का आचरण और उसकी लोकप्रियता से उसके प्रिंसिपल स्पष्ट रूप से झलकता है ।
प्रिंसिपल होने पर मैं क्या करता ?
सहशिक्षा का प्रारंभ:
यदि मैं विद्यालय का प्रिंसिपल होता, तो अपने विद्यालय में सहशिक्षा व्यवस्था प्रारंभ करने का प्रयत्न करता । समय आ गया है जब लड़कों और लडकियों को जीवन में प्रवेश का सबक साथ-साथ मिलना चाहिए । लडकियाँ आमतौर पर लड़कों से अधिक मेहनती होती हैं ।
सहशिक्षा व्यवस्था होने पर लड़कों और लड़कियों के बीच स्वस्थ प्रतियोगिता होगी । लडके अधिक कड़ी मेहनत करने को प्रेरित होंगे, ताकि वे लड़कियों से आगे निकल सकें । इससे उनका शान बढ़ेगा और शिक्षा के स्तर में निश्चित सुधार होगा ।
विद्यार्थियों का खेलकूद में भाग लेना अनिवार्य:
दूसरा काम मैं यह करूँगा कि खेलकूद में भाग लेना सभी विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य कर दूँगा । मेरा विश्वास है कि खेल के मैदान में ही लड़कों में भाईचारे की भावना, अनुशासन और समाज-सेवा की प्रवृति पैदा होती है और साथ-साथ रहने की भावना पनपती है । खेल के मैदान में ही उनमें टीम-भावना अर्थात् समान लक्ष्य के लिए एक-साथ मिलकर काम करने की आदत पैदा होती है और सामूहिक हित के लिए व्यक्तिगत त्याग का महत्त्व भली-भाँति समझ में आ जाता है ।
उत्तम पुस्तकालय की व्यवस्था:
तीसरा मुख्य काम मैं स्कूल के पुस्तकालय में सुधार करूँगा । मैं अपने स्कूल पुस्तकालय को प्रथम श्रणो का पुस्तकालय बना दूँगा । मैं संसार के सभी प्रमुख लेखको की उत्तम पुस्तकें पुस्तकालय के लिए मंगाऊँगा ।
मेरा यकीन है कि पुस्तकालय ही विश्व का सर्वोत्तम खजाना है, क्योकि कोई और खजाना इसका स्थान नहीं ले सकता । तरह-तरह की पुस्तको को पढ़ने से विद्यार्थियों की बुद्धि का विकास होगा और उनमें पढ़ने की आदत पैदा होगी ।
नैतिक शिक्षा:
मैं सभी विद्यार्थियो को नैतिकता का पाठ पढ़ाना चाहूगा । साहित्यिक शिक्षा से लड़के और लड़कियाँ नैतिक आचरण करना नहीं सीखते । विद्यार्थियों को श्रेष्ठ और सभ्य नागरिक बनाने में नैतिक शिक्षा का विशेष महत्त्व है ।
प्रिंसिपल होने पर मैं क्या करता ?
सहशिक्षा का प्रारंभ:
यदि मैं विद्यालय का प्रिंसिपल होता, तो अपने विद्यालय में सहशिक्षा व्यवस्था प्रारंभ करने का प्रयत्न करता । समय आ गया है जब लड़कों और लडकियों को जीवन में प्रवेश का सबक साथ-साथ मिलना चाहिए । लडकियाँ आमतौर पर लड़कों से अधिक मेहनती होती हैं ।
सहशिक्षा व्यवस्था होने पर लड़कों और लड़कियों के बीच स्वस्थ प्रतियोगिता होगी । लडके अधिक कड़ी मेहनत करने को प्रेरित होंगे, ताकि वे लड़कियों से आगे निकल सकें । इससे उनका शान बढ़ेगा और शिक्षा के स्तर में निश्चित सुधार होगा ।
विद्यार्थियों का खेलकूद में भाग लेना अनिवार्य:
दूसरा काम मैं यह करूँगा कि खेलकूद में भाग लेना सभी विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य कर दूँगा । मेरा विश्वास है कि खेल के मैदान में ही लड़कों में भाईचारे की भावना, अनुशासन और समाज-सेवा की प्रवृति पैदा होती है और साथ-साथ रहने की भावना पनपती है । खेल के मैदान में ही उनमें टीम-भावना अर्थात् समान लक्ष्य के लिए एक-साथ मिलकर काम करने की आदत पैदा होती है और सामूहिक हित के लिए व्यक्तिगत त्याग का महत्त्व भली-भाँति समझ में आ जाता है ।
उत्तम पुस्तकालय की व्यवस्था:
तीसरा मुख्य काम मैं स्कूल के पुस्तकालय में सुधार करूँगा । मैं अपने स्कूल पुस्तकालय को प्रथम श्रणो का पुस्तकालय बना दूँगा । मैं संसार के सभी प्रमुख लेखको की उत्तम पुस्तकें पुस्तकालय के लिए मंगाऊँगा ।
मेरा यकीन है कि पुस्तकालय ही विश्व का सर्वोत्तम खजाना है, क्योकि कोई और खजाना इसका स्थान नहीं ले सकता । तरह-तरह की पुस्तको को पढ़ने से विद्यार्थियों की बुद्धि का विकास होगा और उनमें पढ़ने की आदत पैदा होगी ।
नैतिक शिक्षा:
मैं सभी विद्यार्थियो को नैतिकता का पाठ पढ़ाना चाहूगा । साहित्यिक शिक्षा से लड़के और लड़कियाँ नैतिक आचरण करना नहीं सीखते । विद्यार्थियों को श्रेष्ठ और सभ्य नागरिक बनाने में नैतिक शिक्षा का विशेष महत्त्व है ।
maitri000000:
you can ansawer my one math question
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