write essay of 4-5 pages.
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Differences: Aerobic respiration takes place in presence of oxygen; whereas anaerobic respiration takes place in absence of oxygen. Carbon dioxide and water are the end products of aerobic respiration, while alcohol is the end product of anaerobic respiration
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मनुष्य को अपना सुखी जीवन जीने के लिए सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। जीवन में 'रात व दिन' की तरह आशा व निराशा के क्षण आते जाते रहते हैं। आशा जहां जीवन में संजीवनी शक्ति का संचार करती है वहीं निराशा मनुष्य को पतन की तरफ ले जाती है। निराश मानव जीवन में उदासीन और विरक्त होने लगता है। उसे अपने चारों तरफ अंधकार नजर आता है। निराशा का संबंध एकतरफा सोच भी है। साथ ही मनुष्य के दृष्टिकोण पर भी आधारित है, मनुष्य जिस तरह की भावनाएं रखता है वैसी ही प्रेरणाएं मिलती हैं। जो लोग स्वयं के लाभ के लिए जीवन भर व्यस्त रहते हैं उन्हें जीवन में निराशा, अवसाद, असंतोष ही परिणाम में मिलता है। यह एक बड़ा सत्य है कि जो लोग जीवन में परमार्थ सेवा एवं जनकल्याण का कार्य करते हैं उनमें आशा उत्साह होता है, जिसके आधार पर वह कठिन से कठिन कार्यो में सफलता प्राप्त करता है। मनुष्य दूसरे की सेवा करके निराशा से बचता रहता है। परोपकार करने वाले लोगों पर कभी भी निराशा अपना दबाव नहीं बना पाती। निराशा तो एक ऐसी व्यथा है जो स्वयं को तो परेशान रखती है साथ दूसरों का भी कल्याण नहीं कर पाती। जहां आशा है उत्साह है वहीं सफलता है। मनुष्य विजयश्री तो पाता है, किंतु जीवन में आशा उत्साह से कार्य पूरे होते हैं।
कार्य कैसा भी हो, यदि मनुष्य आशा और उत्साह के साथ करेगा तो पूरा होगा और यदि आशा व उत्साह की कमी है तो असफलता ही हाथ लगेगी। आशा को लेकर जीवन जीने में सफलता व आनंद, दोनों प्राप्त होते हैं। निराश मनुष्य अपने कर्तव्यों को हीनभावना से देखता है और इस तरह से उसका जीवन दुखी रहता है। उसे सफलता की मंजिल नहीं मिलती। जितने भी महापुरुष, वैज्ञानिक हुए हैं वे सब आशा व उत्साह से भरे थे। जो आशावादी उत्साही हैं उन्हें उनके जीवन में कभी भी दुख नहीं मिलता। जीवन संघर्षो से लड़कर जीने में ही मजा है और उसी में आनंद है, क्योंकि संघर्ष मनुष्य आशा को लेकर करता रहता है। आशा ही विजय, सफलता, सुख व आनंद सब कुछ दिलाती है।
आशा और निराशा सिक्के के दो पहलू हैं। आशा है तो हौसले हैं, हौसले हैं तो उम्मीद है, उम्मीद है तो सफलता है। इसके विपरीत निराशा है, तो कुछ भी नहीं है। न हौसले, न उम्मीद और न ही सफलता। निराशा क्या है? निराशा एक मनोदशा है, जो काम के प्रति अरुचि को दर्शाती है। निराश व्यक्ति उदास, दुखी, बेबस, चिड़चिड़ा और बेचैन हो जाता है। निराश व्यक्ति अपने आपको इतना हताश पाता है कि उसके दिमाग में आत्महत्या करने तक का ख्याल आने लगता है। निराशा के भंवर से निकलने के कई रास्ते हैं। जिस तरह हर अंधेरी रात के बाद उजली सुबह होती है, उसी तरह निराशा के पार आशा की किरण है।
बस हमारे-आपके देखने का फर्क है। कुछ लोग निराशा के अंधकार में ही खोए रहते हैं। अंधेरे को देखकर उन्हें लगता है कि यह अंधेरा ही सब कुछ है, जबकि बाकी लोग अंधकार में रहकर आशा के किरण की खोज करते हैं, क्योंकि वे अंधेरे की पहचान करके प्रकाश की खोज में निकल पड़ते हैं। जब अंधेरा है तो प्रकाश भी होगा। जैसे जन्म है तो मृत्यु होगी ही। यह बात गांठ बांध लें कि अंधेरे का जन्म हुआ है, तो उसकी मृत्यु भी निश्चित है। एक राजा ने अपने सेनापति से कहा, दीवार पर कुछ ऐसा लिखो कि वह अच्छे और बुरे दोनों वक्त में याद करने लायक हो। सेनापति ने लिखा, यह समय भी कट जाएगा। जी हां, न आशा स्थायी है और न निराशा। यह व्यक्ति के ऊपर है कि वह किसे अपने साथ रखता है - आशा को या निराशा को।
एक व्यक्ति को नदी पार करनी थी, लेकिन उसके पास नाव नहीं थी। किसी ने उससे पूछा कि ऐसे में वह नदी कैसे पार करेगा? उस व्यक्ति ने कहा, कश्तियां नहीं तो क्या, हौसले तो पास हैं। किसी भी व्यक्ति को बुरे से बुरे समय में भी हौसला और उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। बस, अपने कर्म करते जाना चाहिए। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि निराशा के बादलों को हटाने का एक सरल उपाय यह है कि जीवन में जब कभी आपके मन पर निराशा की छाया पड़ने लगे, तो तुरंत उन क्षणों को याद करने की कोशिश करें, जब आपने कोई बहुत बड़ा या बहुत अच्छा काम किया था, किस तरह उस समय लोगों ने आपकी प्रशंसा की थी और आपको किसी नायक की तरह सराहा था।
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