write essay on small birds in hindi
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पक्षी उड़ने वाले जीव हैं । ये आसमान में पंख फैलाकर उड़ते हैं तो आकर्षक दृश्य उपस्थित हो जाता है । प्रभात और सायंकाल में इनकी किलकारी से धरती गुंजित हो उठती है । इनके निवास से वन-प्रांतों की शोभा निखर उठती है । इनके आकर्षक रंगों से हर कोई मोहित हो जाता है ।
पक्षी हैं ही बड़े अजीब । कोई काला, कोई हरा तो कोई जामुनी । इनका हल्का शरीर इन्हें उड़ने में मदद करता है । इनके पंख हल्के तथा रंग-बिरंगे होते हैं । इनके दो पैर और दो आँखें होती हैं । पैरों की सहायता से ये धरती पर विचरण करते हैं । कुछ पक्षी आकाश में अत्यंत ऊंचाई पर उड़ते हैं तो कुछ मात्र दो-चार फुट का फासला ही तय कर पाते हैं । जिस प्रकार संसार में अनेक प्रकार की विभिन्नताएँ पायी जाती हैं, उसी प्रकार पक्षी जगत् में भी अनेक प्रकार की विभिन्नताएँ पायी जाती हैं । परंतु दो विशेषताएँ तो सबमें समान हैं-एक तो ये उड़ सकते हैं, दूसरा यह कि सभी पक्षी अंडे देते हैं ।
पक्षी प्रकृति से गहराई से जुड़े होते हैं । ये जंगलों में, झाड़ियों में तथा वृक्षों पर घोंसला बनाकर रहते हैं । जहाँ थोड़ी सी हरियाली देखी वहीं बसेरा बना लिया । खर-पतवार इकट्ठा किया, तिनका-तिनका जोड़ा और घोंसला बना लिया । कुछ पक्षी तो घोंसला बनाने में बहुत निपुण होते हैं, जैसे कि बया पक्षी का घोंसला । इनके घोंसले की बनाव
देखते ही बनती है । कुछ पक्षी घोंसला न बनाकर पेड़ की कोटर में आशियाना बना लेते हैं । कठफोड़वा पक्षी काठ में छिद्र बना लेता है । मोर जैसे कुछ बड़े पक्षी घोंसला न बनाकर झाड़ियों में शरण लेते हैं ।
कुछ पक्षियों का मृदुल स्वर हमें आकर्षित करता है । कोयल, पपीहा, तोता आदि पक्षियों की सुमधुर ध्वनि के सभी कायल हैं । साहित्य में इनके स्वर की बड़ी चर्चा है । कवि की रचनाओं में इनका बहुत गुणगान है । पर कुछ पक्षियों की बोली कर्कश मानी जाती है । कहा भी गया है कि कोयल किसे क्या देता है और कौआ किससे क्या लेता है, पर कौए की कर्कश बोली के कारण सब उसे नापसंद करते हैं ।
यों तो पक्षी आजाद रहना चाहते हैं पर कुछ पक्षियों को मनुष्य पालतू बना कर रखता है । कबूतर, तोता, मुर्गा जैसे पक्षियों को पालतू बनाया जा सकता है । तोता तो अनेक घरों में विराजमान है । यह मनुष्य की आवाज की नकल निकाल सकता है । इसे पिंजड़े में रखा जाता है । कबूतर को शांति का प्रतीक माना जाता है । मुर्गा या मुर्गीपालन व्यवसायिक दृष्टि से बहुत महत्त्व रखता है । इनसे अंडा एवं मांस प्राप्त किया जाता है । कबूतरों का प्रयोग संदेशवाहक के रूप में किया जाता है । ये कुशल डाकिए माने जाते हैं ।
गरुड़ या बाज पक्षियों का राजा कहलाता है । धार्मिक साहित्य तथा पुराणों में इनका वर्णन मिलता है । ये बड़े शक्तिशाली होते हैं । आसमान में बहुत ऊँचाई से अपने शिकार के देख लेते हैं । अपने शिकार पर ये तेजी से झपट पड़ते हैं
बाज, कौआ, बगुला, मुर्गा आदि कुछ पक्षी मरे हुए या जीवित जंतुओं का मांस खाते हैं । कुछ पक्षी, गाय, भैंस जैसे जीवित प्राणियों के शरीर पर बैठकर इनके शरीर पर मौजूद परजीवियों को खा जाते हैं । मांसाहारी पक्षी मांस, मछली तथा कीड़ों-मकोड़ों को खाकर अपना पेट भर लेते हैं । इनके क्रियाकलापों से धरती पर पर्यावरण का संतुलन बना रहता है । दूसरी तरफ अनेक पक्षी शाकाहारी होते हैं । शाकाहारी पक्षी अनाज के दाने, फल, फलियाँ तथा सब्जियों खाते हैं ।
कुछ पक्षी दुर्गम स्थानों में निवास करते हैं । पेंग्विन ऐसा ही एक पक्षी है । यह ध्रुवीय प्रदेशों में अत्यंत ठंडे स्थानों में भी जीवित रह सकता है । कुछ पक्षी जल में निवास करते हैं । सारस, बगुला, हंस,जलकुक्कुट आदि ऐसे ही पक्षी हैं । ये पानी की मछलियों तथा अन्य छोटे-छोटे जीवों को अपना शिकार बनाते हैं ।
मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी है । इसके पंख रंग-बिरंगे होते हैं । यह अपने पंख फैलाकर आकर्षक नृत्य करता है । इसके पंखों से विभिन्न प्रकार की सजावटी वस्तुएँ तैयार की जाती हैं । यह बहुत साहसी पक्षी है । यह लड़ाई में साँपों को पराजित कर देता है ।
पक्षियों का बहुत बड़ा संसार है । ये देश की सीमाओं को नहीं जानते । ये शीत ऋतु में समूहों में लंबी उड़ान भरते हुए दूरस्थ और अपेक्षाकृत गर्म स्थलों में प्रवास करते हैं । इन्हें प्रवासी पक्षी कहा जाता है । भारत में हर वर्ष साइबेरिया से प्रवासी पक्षियों का आगमन होता है ।
पक्षी हमारे पर्यावरण के अभिन्न हिस्से हैं । परंतु अवैध शिकार एवं वन क्षेत्र घटने से कुछ पक्षियों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं । इनमें से कुछ दुर्लभ होते जा रहे हैं । सरकार ने इनके सुरक्षित निवास के लिए वन्य जीव अधिनियम एवं अभयारण्य बनाए हैं । लोगों को दुर्लभ पक्षियों को बचाने के लिए उचित प्रयास करने चाहिए ।
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पक्षी की आत्मकथा
संसार में अनगिनत प्राणी निवास करते हैं । उन्हें जलचर, थलचर और नभचर प्राणी जैसे तीन भागों में बाँटा जाता है । जलचर यानि पानी में रहने वाले । थलचर यानि धरती पर चलने-फिरने और रहने वाले मनुष्य और कई तरह के पशु, कीड़े-मकोड़े, साँप-बिच्छू आदि । नभचर यानि आकाश के खुलेपन में उड़ पाने में समर्थ पक्षी जाति. के प्राणी । इन के पंख होते हैं, जिन के बल पर ये उड़ पाने में समर्थ हुआ करते हैं ।
स्पष्ट है कि मैं पक्षी यानि नभचर श्रेणी का प्राणी हूँ । मेरा अधिवास या घर-घोंसला आदि जो कुछ भी कहो, वह वृक्षों की शाखाओं पर ही अधिकतर हुआ करता है-यद्यपि मेरे कुछ भाई पेड़ों के तनों में खोल बना कर. घरों के रोशनदानों, छतों, पहाड़ी गारों या जहाँ कहीं भी थोड़ी-सी जगह मिल जाए, वहीं अपना नन्हा-सा नीड् (घोंसला) बना कर रह लिया करते हैं । ही, टिटीहर खा। जैसे मेरे कुछ पक्षी भाई धरती के ऊपर या भीतर कहीं खोल बना कर भी रह लेते हैं । अपने सम्बन्ध में और कुछ बताने से पहले मैं अपनी उत्पत्ति के बारे में भी बता दूँ तो अच्छा रहेगा ।
संसार में पक्षी, पशु और मनुष्य आदि जितने भी प्राणी हैं; उन्हें क्रमश: अण्डज, उद्भिज, पिण्डज और स्वेदज चार प्रकार के माना गया है । जो प्राणी अण्डे से जन्म लेते हैं; उन्हें अण्डज कहा जाता है । जो बीज आदि के बोने से जन्म लिया करते हैं; उन्हें उद्भिज कहा और माना जाता है । जो शरीर से सीधे उत्पन्न हुआ करते हैं; उन्हें पिण्डज कहा गया है । इसी प्रकार जिन प्राणियों का जन्म स्वेद अर्थात् पसीने से हुआ करता है, उन्हें स्वेदज कहा जाता है ।
धरती पर विचरण करने वाले मनुष्य ओर तरह-तरह के पशु पिण्डज प्राणी माने गए हैं । जिन्हें नभचर कहा-माना जाता है, अर्थात् आकाश के खुले वातावरण में विचरण करने या उड़ सकने वाले प्राणी अण्डज हुआ करते हैं । वनस्पतियाँ आदि उद्भिज कहलाती हैं और जलचर जीव प्राय: स्वेदज होते है । स्पष्ट है कि हम पक्षी अण्डज जाति के प्राणी हैं । तो मैं पक्षी हूं-हजारों लाखों जातियों में से एक जाति का पक्षी, जो आपके घरों के आस-. पास के वन-उपवनों में, पेड़-पौधो में पाया जाता है ।
भगवान् ने मेरे पक्षों को चित्र- (वे चित्र रंगों वाला बनाया है । हम सभी पक्षियों की बुनियादी बनावट तो प्राय: समान ही हुआ करती है, ही आकार-प्रकार में कछ अन्तर अवश्य हो जाता हूँ । आकार-प्रकार के समान ही रंग-रूप भी प्राय: हर जाति के पक्षी का कछ भिन्न और अलग ही हुआ करता है । दो पैर, दो आँखें, एक लम्बी या छोटी चोंच, शरीर पर छोटे-बड़े पंख और रोम, कूद या आकार-प्रकार के अनुरूप छोटे या बड़े-बड़े मजबूत डैने जिन के कारण हम पक्षी उड़ पाने में समर्थ हुआ करते है, सभी के ही रहा ही करते है । हम पक्षियों की बोली भी प्राय: अलग-अलग हुआ करती है ।
किसी की बोली बहुत मधुर-मनहर, किसी की कठोर-कर्कश और किसी की सामान्य हुआ करती है । इसी कारण मधुर-मनहर बोली को गाना और कठोर-कर्कश को काँव-काँव करना या कड़वी कहा जाता है । हम पक्षियों की बोली को आम तौर पर एक शब्द में ‘चहचहाना’ ही कहा. करते हैं । किसी वन उपवन में हम पक्षियों का सम्मिलित चहचहाना आप आदमियों को बड़ा ही अच्छा लगा करता है ।
आप लोग उसे सुन कर प्राय: ‘प्रकृा?ते का संगीत, जैसे नाम देकर मनोमुग्ध होकर रह जाया करते हैं । हे न ऐसी ही बात । मैं पक्षी हूँ-भोला-भाला । आप मनुष्यों के. पिजंरों में बन्द होकर भी अपनी वाणी से चहचहाकर मस्त रहने और सभी को मस्त कर देने वाला । सिखाने और मैं आप मनुष्यों की बोली, बातें और कई प्रकार के व्यवहार भी सीख लिया करता हूँ । मैं तो शुद्ध शाकाहारी जाति का पक्षी हूँ ।
फल, कई सब्जियाँ और दाना-दुनका जो कुछ भी मिल जाए खा कर और दो- चार बूँद स्वच्छ पानी पीकर मस्त रहा करता हूँ । लेकिन अन्य जातियों के कुछ पक्षी माँसाहारी भी हुआ करते हैं । चील, गिद्ध, बाजू जाति के पक्षी माँसाहार ही किया करते हैं । कुछ पक्षी कीड़े- मकौड़े खा कर भी जीवित रहते हैं । कुछ विष्टा तक खा जाते हैं । भई, मनुष्यों में भी तो भिन्न आहार-विहार वाले लोग होते हैं न ।