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) सम्पादक के नाम पत्र
सम्पादक के नाम पत्र वे पत्र हैं, जो पाठकों द्वारा समाचार-पत्रों अथवा पत्रिकाओं के सम्पादकों को सम्बोधित करके लिखे जाते हैं। समाचार-पत्रों में 'सम्पादक के नाम पत्र' का एक विशेष कॉलम होता है। इस कॉलम के माध्यम से एक व्यक्ति अपनी बात को समस्त पाठकों, अधिकारियों और सरकार तक प्रेषित करता है। इस कॉलम को विभिन्न समाचार-पत्र/पत्रिकाओं द्वारा 'पाती पाठकों की; 'रीडर्स मेल', 'जनवाणी', 'लोकमत', 'पाठकों की दुनिया', 'पाठकों की राय', 'पाठक संवाद', एवं 'चौपाल' सरीखे अलग-अलग नाम दिए गए हैं।
सम्पादक के नाम पत्र के अन्तर्गत निम्न पत्रों को शामिल किया जाता है- समस्या सम्बन्धी पत्र, शिकायत सम्बन्धी पत्र, अपील और निवेदन सम्बन्धी पत्र, समीक्षा/सुझाव सम्बन्धी पत्र सम्मिलित हैं, जो इस पाठ के अन्तर्गत बताए गए हैं।
सम्पादक के नाम पत्र लिखते समय ध्यान देने योग्य बातें
(1) सबसे पहले सादे कागज पर बायीं ओर जिसके द्वारा पत्र लिखा जा रहा है उसका पता व दिनांक लिखी जाती है तत्पश्चात बायीं ओर 'सेवा में' लिखने के बाद प्रेषिती (पत्र भेजने के लिए) के लिए सम्पादक, समाचार-पत्र का नाम, शहर का नाम लिखा जाता है।
(2) विषय लिखने के बाद सम्बोधन के लिए 'महोदय' का प्रयोग किया जाता है।
(3) तत्पश्चात यह लिखते हुए कि 'मैं आपके लोकप्रिय दैनिक समाचार पत्र में ...... शीर्षक के तहत अपने विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ। इस प्रकार शुरुआत करके विषय-वस्तु का वर्णन किया जाता है।
(4) अन्त में आशा करता हूँ आप इसे प्रकाशित कर मुझे अनुगृहीत करेंगे। 'यह लिखने के बाद बाई ओर 'धन्यवाद' लिखने हुए, उसके नीचे भवदीय आदि लिखकर अपना नाम लिख दिया जाता है।
समस्या सम्बन्धी पत्र
सम्पादक के नाम लिखे जाने वाले समस्या सम्बन्धी पत्र वे होते हैं, जिनमें सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक समस्याओं पर विचार प्रस्तुत किए जाते हैं। सम्पादक के नाम लिखे जाने वाले समस्या सम्बन्धी पत्रों के उदाहरण निम्नलिखित हैं-
(1) हिंसा प्रधान फिल्मों को देखकर बाल मन पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव की समस्या का वर्णन करते हुए किसी दैनिक समाचार-पत्र के सम्पादक को पत्र लिखिए।
424, तिलक नगर,
दिल्ली।
दिनांक 25 फरवरी, 20XX
सेवा में,
सम्पादक महोदय,
दैनिक भास्कर,
नई दिल्ली।
विषय- हिंसा प्रधान फिल्मों के बाल मन पर पड़ रहे दुष्प्रभाव की समस्या हेतु।
महोदय,
मैं आपके दैनिक समाचार-पत्र के माध्यम से सरकार और समाज का ध्यान हिंसा प्रधान फिल्मों के दुष्प्रभाव की ओर दिलाना चाहती हूँ। आजकल दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों पर हिंसा प्रधान फिल्मों का प्रदर्शन धड़ल्ले से किया जा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि उन पर सरकार का कोई नियन्त्रण नहीं रह गया हैं। आज कल समाज में हो रही लूट-पाट एवं हिंसा की घटनाओं का कारण भी ये फिल्में हैं। इन फिल्मों से युवा मन जल्दी ही बुराई की ओर आकर्षित होता है।
इस पत्र के माध्यम से मैं सरकार के 'सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय' से अपील करना चाहती हूँ कि वह इस प्रकार की फिल्मों पर रोक लगाए।
धन्यवाद।
भवदीया
स्नेहा
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