English, asked by anushreeram20, 4 months ago

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Answered by megha3076
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हमारे देश में कुछ वाक्य व सूत्र प्रचलित हो गये हैं जिनमें से एक सूत्र वाक्य है ‘सेवा परमो धर्मः’। इसका अर्थ सभी जानते हैं। इसके आधार पर सेवा ही परम धर्म है। पता नहीं यह शब्द व वाक्य कहां से आया है? यह वेद वाक्य तो कदापि नहीं हो सकता और न ही आर्ष ग्रन्थों का हो सकता है। हमारे यहां ‘धर्म’ उन गुणों को कहा गया है जिसे मनुष्यों को धारण करना चाहिये। श्रेष्ठ गुणों से युक्त स्वभाव को धर्म कहा जाता है। कहते हैं कि श्रेष्ठ गुणों वाला वह व्यक्ति धार्मिक है। सेवा के गुण व स्वभाव को धारण करना धर्म का एक अवयव व अंग हो सकता है परन्तु यह धर्म के अन्य सभी अंगों में सबसे बड़ा व महान कदापि नहीं हो सकता।

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anushreeram20: i wanted it in English...but thank u
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