Hindi, asked by dhirajbagga, 1 year ago

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Answered by KhushmeetKaur6767
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Hllo mate.....

भारतीय संस्कृति की पहचान संस्कृत भाषा से होती थी और संस्कृत से ही हिन्दी भाषा का जन्म माना जाता है परन्तु वर्तमान समय में हिन्दी अपनी पहचान बनाने में असफल रही है जिसका मूल कारण सरकारी उपेक्षा ही कहा जा सकता है कि हिन्दी को आगे बढ़ाने के लिए कोई कार्य नहीं किया गया यही कारण रहा है कि आज हिन्दी भाषा रसातल की ओर अग्रसर है अन्यथा विश्व में हिन्दी का बोलबाला होता ।

लेकिन हम भारतवासियों की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि हम अपने अस्तित्व को भूलकर दूसरों का अनुगमन करना उनकी संस्कृति को आत्मसार करना उनके रहन-सहन की नकल करना, उनके पहनावे की नकल करना ही अपना कर्त्तव्य व बड़प्पन समझते हैं ।

भारतीय संस्कृति में कुर्ता धोती पुरूषों का पहनावा हुआ करता था । महिलाएं घाघरा कुर्ता ओढ़ना पहनती थी । लेकिन पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित भारतीय जनमानुस ने आज अपना पहनावा छोड़कर पाश्चात्य संस्कृति से जीन्स टाप महिलाओं ने तथा जीन्स टी-सर्ट पुरूषों ने अपना लिया है जिससे भारतीय संस्कृति लगभग लुप्तप्राय स्थिति में पहुंच रही है भारतीय लोग दही, दूध, दलिया आदि से सुबह की शुरूआत करते थे परन्तु आज भारतीय पीढ़ी बेड टी व ब्रेड पीस से शुरूआत करती है जो बिना व्यायाम आदि किये ही नाश्ता, चाय लेते हैं ।

ये सब पाश्चात्य संस्कृति की देन है भारतीय संस्कृति में बच्चों को बडों के चरण स्पर्श कर नमस्कार करना सीखाया जाता था । परन्तु आज भारतीय पीढी गुड़ मार्निंग से शुरूआत करती है जिसमें अपनत्व का अभाव महसूस होता है । ऐसे लगता है मानों हम किसी को कुछ कार्य करने के लिए कह रहे हों न कि किसी का अभिवादन कर रहे हों ।

कोई भी व्यक्ति जो जिस परिवेश में जन्म लेता है जिस परिवेश में बड़ा होता है वह उसी परिवेश को आत्म सार कर अधिक योग्य बन सकता है अपेक्षाकृत ऐसे परिवेश के जो उस पर अनुशासन के नाम पर थोपा जाता है और लीविंग स्टैण्डर्ड के नाम पर सीखाया जाता है परन्तु परिणाम कोई अधिक सकारात्मक नहीं आता ।

बल्कि स्थिति ऐसी उत्पन्न हो जाती है कि अपने परिवेश को तो उसको सीखने नहीं दिया जाता ओर जिसे सीखने के लिए बाध्य किया जाता है उसको वह सीख नहीं पाता जिससे स्थिति बहुत ही असमंजस की उत्पन्न हो जाती है और वह इधर जाये या उधर जाने की स्थिति में अपने आपको पाता है इसलिए अहम और महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि हमें किसी के ऊपर अपनी इच्छाओं को थोपना नहीं चाहिए ।

जहाँ तक भाषा का प्रश्न है तो भाषा तो वही आसान होती है जो जन्म स्थान के आधार पर बोली जाती है । बाकी भारतवर्ष में संवैधानिक दर्जा प्राप्त बाईस भाषाएं हैं जिनमें से हिन्दी को छोड़कर सभी भाषाएं क्षेत्रीय स्तर तक ही सिमटी हुई है क्या भारतीय संविधान में अधिकृत बाईस भाषाओं में से ऐसी कोई भी भाषा नहीं है ।

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Answered by himanshu366950
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here is your answer.......

भाषा के द्वारा मनुष्य अपने विचारों को आदान-प्रदान करता है । अपनी बात को कहने के लिए और दूसरे की बात को समझने के लिए भाषा एक सशक्त साधन है ।

जब मनुष्य इस पृथ्वी पर आकर होश सम्भालता है तब उसके माता-पिता उसे अपनी भाषा में बोलना सिखाते हैं । इस तरह भाषा सिखाने का यह काम लगातार चलता रहता है । प्रत्येक राष्ट्र की अपनी अलग-अलग भाषाएं होती हैं । लेकिन उनका राज-कार्य जिस भाषा में होता है और जो जन सम्पर्क की भाषा होती है उसे ही राष्ट्र-भाषा का दर्जा प्राप्त होता है ।

भारत भी अनेक रज्य हैं । उन रध्यों की अपनी अलग-अलग भाषाएं हैं । इस प्रकार भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है लेकिन उसकी अपनी एक राष्ट्रभाषा है- हिन्दी । 14 सितंबर 1949 को हिन्दी को यह गौरव प्राप्त हुआ । 26 जनवरी 1950 को भारत का अपना संविधान बना । हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया । यह माना कि धीरे-धीरे हिन्दी अंग्रेजी का स्थान ले लेगी और अंग्रेजी पर हिन्दी का प्रभुत्व होगा ।

आजादी के इतने वर्षो बाद भी हिन्दी को जो गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त होना चाहिए था वह उसे नहीं मिला । अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि हिन्दी को उस का यह पद कैसे दिलाया जाए ? कौन से ऐसे उपाय किए जाएं जिससे हम अपने लक्ष्य तक पहुँच सकें ।

यद्यपि हमारी राष्ट्र भाषा हिन्दी है, परन्तु हमारा चिंतन आज भी विदेशी है । हम वार्तालाप करते समय अंग्रेजी का प्रयोग करने में गौरव समझते हैं, भले ही अशुद्ध अंग्रेजी हो । इनमें इस मानसिकता का परित्याग करना चाहिए और हिन्दी का प्रयोग करने में गर्व अनुभव करना चाहिए । हम सरकारी कार्यालय बैंक, अथवा जहां भी कार्य करते हैं, हमें हिन्दी में ही कार्य करना चाहिए ।

निमन्त्रण-पत्र, नामपट्‌ट हिन्दी में होने चाहिए । अदालतों का कार्य हिन्दी में होना चाहिए । बिजली, पानी, गृह कर आदि के बिल जनता को हिन्दी में दिये जाने चाहिए । इससे हिन्दी का प्रचार और प्रसार होगा । प्राथमिक स्तर से स्नातक तक हिन्दी अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाई जानी चाहिए ।

जब विश्व के अन्य देश अपनी मातृ भाषा में पढ़कर उन्नति कर सकते हैं, तब हमें राष्ट्र भाषा अपनाने में झिझक क्यों होनी चाहिए । राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-व्यवहार हिन्दी में होना चाहिए । स्कूल के छात्रों को हिन्दी पत्र-पत्रिकाएं पढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए । जब हमारे विद्यार्थी हिन्दी प्रेमी बन जायेंगे तब हिन्दी का धारावाह प्रसार होगा । हिन्दी दिवस के अवसर पर हमें संकल्प लेना चाहिए:

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