Hindi, asked by Ummesumaiyasami, 11 months ago

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Answered by GUKHAN
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Answer:

. प्रस्तावना:

भारत की भौगोलिक संरचना काफी विविधताओं से भरी हुई है । कहीं पर्वत हैं, कहीं नदियां हैं, कहीं नाले हैं, तो कहीं बर्फीली चोटियां, तो कहीं मैदानी भागों की हरियाली है, तो कहीं मरुस्थलीय रेतीली भूमि । वर्ष के विभिन्न अवसरों पर यहां प्रकृति के भिन्न-भिन्न रूप मिलते हैं । इन रूपों के आधार पर वर्ष-भर में भारत में छह प्रकार की ऋतुएं होती हैं-वर्षा, शरद, शिशिर, हेमन्त, वसंत तथा ग्रीष्म ऋतु ।

भारत में सभी ऋतुएं अपने-अपने क्रम पर आती-जाती हैं और प्रकृति में अपने प्रभाव व महत्त्व को दर्शाकर चली जाती हैं । यहां ग्रीष्म ऋतु का आगमन वसंत ऋतु के बाद होता है । भारतीय गणना के अनुसार ज्येष्ठ और आषाढ़ के महीने में ग्रीष्म का आगमन होता है ।

अंग्रेजी कलेण्डर के हिसाब से इसका आगमन 15 मार्च से 16 जून तक होता है । सामान्यत: मार्च के महीने से बढ़ता हुआ इसका तापमान मई तथा जून माह में चरमसीमा पर होता है । सूर्य जब भूमध्य रेखा से कर्क रेखा की ओर बढ़ता है, तब इसका तापमान बढ़ने लगता है ।

भारतीय पर्व होली के बाद सूर्य की गरमी बढ़ने लगती है । सूर्य का जब मकर संक्रान्ति के बाद उत्तरायण होने लगता है, तब ग्रीष्म प्रारम्भ हो जाती है ।

3. ग्रीष्म का प्रभाव:

ग्रीष्म में प्रकृति का तापमान बढ़ जाता है । धरती तवे के समान तपने लगती है । लू के थपेड़ों से समस्त प्राणियों का शरीर मानो झुलसने लगता है । नदियों, तालाबों, कुओं का जल सूखने लगता है । जलस्तर कम होने लगता है ।

गरमी के कारण पशु-पक्षी, मानव सभी आकुल-व्याकुल होने लगते हैं । प्यास के मारे गला सूखने लगता है । सूर्य की गरमी से व्याकुल होकर प्राणी छाया ढूंढने लगते हैं । रीतिकालीन कवि सेनापति ने ग्रीष्म की प्रचण्डता का वर्णन करते हुए लिखा है कि ”वृष को तरनि तेज सहसौ किरन करि, ज्वालन के ज्वाल विकराल बरखत है ।

तचति धरनि, जग जरत झरनि सीरी छांव को पकरि पंथी बिरमत हैं । सेनापति धमका विषम होत जो पात न खरकत है । मेरी जान पौनो सीरी ठण्डी छांह को पकरि बैठि कहूं घामै बितवत है ।”  अर्थात् वृष राशि का सूर्य अपने प्रचण्ड ताप को भयंकर ज्वालाओं के जाल के रूप में धरती पर बिखेर रहा है । धरती तप गयी है । संसार जलने लगा है । ऐसा लगता है कि आग का कोई झरना बह रहा है ।

गरमी से आकुल-व्याकुल होकर धरती के प्राणी किसी ठण्डी छाव को पकड़कर विश्राम करने लगे हैं । सेनापति के अनुसार दोपहर के होते हुए वातावरण में इतना भीषण सन्नाटा छा जाता है कि पत्ता तक नहीं खड़कता है । ऐसा प्रतीत होता है कि हवा भी किसी ठण्डे कोने में विश्राम कर रही है । तभी तो हवा भी नहीं चल रही है ।

एक दोहे में कवि बिहारी यह कहते हैं कि कहलाने एकत बसत. अहि मयूर मृग-बाघ । जगत तपोवन सों कियों, दीरघ दाघ निदाघ ।। अर्थात् ग्रीष्म से व्याकुल होकर सर्प, मृग, मोर तथा बाघ जैसे हिंसक, अहिंसक प्राणी आपसी वैर-भाव भूलकर एक ही स्थान पर विश्राम कर रहे है ।

इस गरमी ने तो इस संसार को तपोभूमि बना दिया है । ग्रीष्म के प्रभाव से दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं । खाना खाने की इच्छा नहीं होती । सिर्फ ठण्डा पानी पीने का मन करता है । कूलर की ठण्डी हवा में पड़े रहने का मन करता है ।

4. प्रकृति पर प्रभाव:

प्रकृति पर ग्रीष्म का प्रभाव इतना होता है कि वायु इतनी गरम हो जाती है कि पेड़ों से लेकर प्राणियों तक को झुलसाने लगती है । नदी, तालाब सुख जाते हैं । रेतीले स्थानों पर अधिया चलने लगती हैं । मैदानी भागों में तो लू चलने लगती है ।

लोगों का घर से निकलना दुश्वार हो जाता है । सभी प्राणी बेचैन हो उठते हैं । इस भयंकर गरमी से बचने के लिए लोग पहाड़ी और ठण्डे स्थानों पर जाते हैं । जहां पर बिजली नहीं होती, वहां पर इनके अभाव में बड़ी तकलीफ होने लगती है 

. महत्त्व:

सभी ऋतुओं की तरह ग्रीष्म ऋतु का अपना ही विशेष महत्त्व है । यद्यपि इस ऋतु का प्रभाव प्राणियों पर बड़ा ही कष्टप्रद होता है, किन्तु फसलें तो गरमी में ही पकती हैं । हम रसीले फल, खरबूजे, तरबूज, आम, ककड़ी, लीची, बेल आदि का आनन्द लेते हैं ।

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