Hindi, asked by sujatareshi321, 9 months ago

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1 कोरोना एक विश्वव्यापी समस्या
2. विदेशी छोड़ें स्वदेशी अपनाएं
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Answers

Answered by ʙᴇᴀᴜᴛʏᴀɴɢᴇʟ
5

Explanation:

जो लोग स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की वकालत करते हैं वो कम खर्च, सरकारी नौकरियों में बढ़ोतरी और उपभोक्तावाद को घटाने पर भी ज़ोर देते हैं. स्वदेशी जागरण मंच के अरुण ओझा कहते हैं, "हमें सोचना पड़ेगा कि एक परिवार के पास एक की जगह पांच गाड़ियों की क्यों ज़रुरत है? अगर आप एक भारतीय साबुन इस्तेमाल करते हैं तो कई तरह के विदेशी साबुनों की क्या ज़रुरत है?"

वो स्थानीय कंपनियों की मिसालें देते हैं. इस श्रेणी में एक नाम काफ़ी ऊपर है और वो है कोयंबटूर, तमिलनाडु के अरुणाचलम मुरुगनांथम की कंपनी, वो कम लागत वाली सैनिटरी पैड बनाने वाली मशीन के आविष्कारक हैं. उन्होंने बीबीसी से बातें करते हुए कहा कि बड़ी विदेशी कंपनियों ने सालों में सैनिटरी पैड को केवल 10 प्रतिशत महिलाओं तक पहुँचाया था लेकिन उन्होंने इसे बड़ी महिला आबादी तक पंहुचा दिया है.

उनकी सफलता के डंके देश और विदेश में बजने लगे. अक्षय कुमार की फिल्म 'पैडमैन' इन्हीं के जीवन पर बनी है. उनका फ़ॉर्मूला है लोकल मटेरियल का इस्तेमाल करके सस्ता और टिकाऊ सामान बनाना, "थिंक लोकल एंड एक्ट ग्लोबल". इसे समझाते हुए वो कहते हैं, "मैंने पहले दिन से अपने व्यवसाय को एक छोटे धंधे की तरह से डिज़ाइन किया है. जितना छोटा उतना सुंदर."

अरुणाचलम मुरुगनांथम की विदेश में केवल चर्चा ही नहीं हो रही है बल्कि कई देशों में इनके प्रोडक्ट भी बिक रहे हैं. लेकिन उनके मॉडल की सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि वो वहां यूनिट लगाते हैं जहाँ बड़ी या विदेशी कंपनियां नहीं जातीं यानी ग्रामीण इलाक़ों में.

प्रधानमंत्री ने भी सरपंचों से ग्रामीण क्षेत्रों के विकास की बात कही थी. "मज़बूत पंचायतें आत्मनिर्भर गाँवों का भी आधार हैं और इस लिए पंचायत की व्यवस्था जितनी मज़बूत होगी उतना ही लोकतंत्र भी मज़बूती होगा और उतना ही विकास का लाभ उस आख़िरी छोर पर बैठे सामान्य व्यक्ति को भी होगा". उन्होंने कम क़ीमत वाले स्मार्टफोन्स का उदाहरण दिया जो गाँव-गांव तक पहुँच चुके हैं.

Answered by aarohi2493
6

Explanation:

जो लोग स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की वकालत करते हैं वो कम खर्च, सरकारी नौकरियों में बढ़ोतरी और उपभोक्तावाद को घटाने पर भी ज़ोर देते हैं. स्वदेशी जागरण मंच के अरुण ओझा कहते हैं, "हमें सोचना पड़ेगा कि एक परिवार के पास एक की जगह पांच गाड़ियों की क्यों ज़रुरत है? अगर आप एक भारतीय साबुन इस्तेमाल करते हैं तो कई तरह के विदेशी साबुनों की क्या ज़रुरत है?"

वो स्थानीय कंपनियों की मिसालें देते हैं. इस श्रेणी में एक नाम काफ़ी ऊपर है और वो है कोयंबटूर, तमिलनाडु के अरुणाचलम मुरुगनांथम की कंपनी, वो कम लागत वाली सैनिटरी पैड बनाने वाली मशीन के आविष्कारक हैं. उन्होंने बीबीसी से बातें करते हुए कहा कि बड़ी विदेशी कंपनियों ने सालों में सैनिटरी पैड को केवल 10 प्रतिशत महिलाओं तक पहुँचाया था लेकिन उन्होंने इसे बड़ी महिला आबादी तक पंहुचा दिया है.

उनकी सफलता के डंके देश और विदेश में बजने लगे. अक्षय कुमार की फिल्म 'पैडमैन' इन्हीं के जीवन पर बनी है. उनका फ़ॉर्मूला है लोकल मटेरियल का इस्तेमाल करके सस्ता और टिकाऊ सामान बनाना, "थिंक लोकल एंड एक्ट ग्लोबल". इसे समझाते हुए वो कहते हैं, "मैंने पहले दिन से अपने व्यवसाय को एक छोटे धंधे की तरह से डिज़ाइन किया है. जितना छोटा उतना सुंदर."

अरुणाचलम मुरुगनांथम की विदेश में केवल चर्चा ही नहीं हो रही है बल्कि कई देशों में इनके प्रोडक्ट भी बिक रहे हैं. लेकिन उनके मॉडल की सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि वो वहां यूनिट लगाते हैं जहाँ बड़ी या विदेशी कंपनियां नहीं जातीं यानी ग्रामीण इलाक़ों में.

प्रधानमंत्री ने भी सरपंचों से ग्रामीण क्षेत्रों के विकास की बात कही थी. "मज़बूत पंचायतें आत्मनिर्भर गाँवों का भी आधार हैं और इस लिए पंचायत की व्यवस्था जितनी मज़बूत होगी उतना ही लोकतंत्र भी मज़बूती होगा और उतना ही विकास का लाभ उस आख़िरी छोर पर बैठे सामान्य व्यक्ति को भी होगा". उन्होंने कम क़ीमत वाले स्मार्टफोन्स का उदाहरण दिया जो गाँव-गांव तक पहुँच चुके हैं.

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