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उड़ने की चाह (कहानी)
एक बंदर और एक बाज बहुत अच्छे दोस्त थे। उनमें गहरी दोस्ती थी। दोनों एक पेड़ पर निरंतर मिला करते थे। बाज दूर-दूर तक जगह-जगह घूमता रहता था और अपने पंखों द्वारा इस जगत को नापता रहता था। बंदर जंगल में विचरण करता रहता था। उन्होंने एक पेड़ को अपना मिलन स्थल बनाया था जहां पर नित्य प्रति मिला करते थे।
बाज बंदर को रोज की घटनाएं बताता था कि आज कहां गया, वहाँ पे क्या-क्या हुआ। बंदर बड़ी तन्मयता से उसके भ्रमण के वर्णन को सुनता था।
रोज-रोज बाज द्वारा दुनिया के बारे में नई-नई बातें सुनकर बंदर के मन में भी दुनिया का भ्रमण करने की इच्छा जाग उठी। वह बाज से बोलता कि दोस्त तुम कितने भाग्यशाली हो कि भगवान ने तुम्हें पंख दियें हैं। तुम जब चाहो, जहां चाहो कितनी भी दूर जा सकते हो। मैं केवल इस जंगल में ही सिमट कर रह गया हूं। मैं भी उड़ना चाहता हूं। मेरे अंदर भी उड़ने की चाह है।
तब बाज ने कहा प्रकृति ने हमें जैसा बनाया है हमें उस में खुश रहना चाहिए। प्रकृति ने हर प्राणी के अंदर विशेष गुण दिये हैं, कुछ तुममें है मुझमें नही तो कुछ मुझमें है तुममे नही। फिर भी तुम्हारे अंदर उड़ने की चाह है, संसार को देखने की चाह है तो मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूं कि मैं तुम्हें अपने पंजों में पकड़ लेकर उड़ा कर ले चलता हूं फिर तुम सारे संसार को देख लेना। तुम्हारे अंदर की उड़ने की भूख मिट जाएगी और तुम्हारी उड़ने की चाह भी पूरी हो जाएगी। बंदर बोला ठीक है।
अगले दिन बाज बंदर को् अपने पंजों में पकड़कर उड़ चला। उसने बंदर को कस कर पकड़ लिया था। बंदर ने भी बाज के पंजों को कस कर पकड़ लिया था। ताकि गिरने ना पाए। इस तरह बाज ने पूरे दिन बंदर को जगह-जगह की सैर कराई और बंदर नई नई जगहों का भ्रमण करके बड़ा ही प्रसन्न हुआ। उसका मन बहुत खुश हुआ।
शाम को दोनों तक थके-मांदे वापस अपने जंगल में आ गए। अब बंदर ने बाज का शुक्रिया अदा किया। दोस्त तुम्हारी वजह से ही मुझे दुनिया में इतनी सारी जगह घूमने को मिला। तुम सच में भाग्यशाली हो लेकिन तुम्हारे पंख हैं। यह बात भी सच है कि भगवान ने सब के लिए कोई ना कोई गुण दिया है। मेरे अंदर उड़ने की चाह थी, वह तुमने आज पूरी कर दी। अब मुझे प्रकृति ने जैसा बनाया है मैं वैसे ही खुश हूं। तुम्हारा धन्यवाद दोस्त। इस तरह बाज और बंदर वहाँ हंसी-खुशी रहने लगे।
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उड़ने की चाह |
Explanation:
जब भी मेँ उस खुले नीले आसमान में देखता हूँ तो, मेरा अंतरात्मा पता नहीं क्यों उस नीली आकाश के गोद की तरफ आकर्षित होता रहता हैं | जानता हूँ की इस इंसानी जीवन में पक्षियों की भांति प्रतक्ष रूप से उड नहीं सकता परंतु परोक्ष रूप से उड़ने की चाहत अभी भी मेरे दिल के अंदर शुल की भांति मौजूद हैं |
मेँ एक पायलट बनकर इस विशाल आसमान के ऊपर बिना किसी चिंता और पावंधि के उड़ना चाहता हूँ | एक ऐसी उड़ान जो मुझे ऊपर और भी ऊपर आसमान के ऊपर भी लेकर जाए | थक गया हूँ अब इस जमीन के ऊपर रेंगते-रेंगते अब बस उड़ने की व्याकुलता हैं | थक गया हूँ लोगों की ताने सुनते-सुनते अब बस एक बार सिर्फ एक बार अपने देश अपने वतन के लिए गर्व और शौर्य के साथ उड़ना चाहता हूँ |