Hindi, asked by kp413783, 4 months ago

Write the essay in your words about “Nadi ki aatm katha”​

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Answered by scientific33
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Explanation:

मै नदी हूँ | मेरे कितने ही नाम है जैसे नदी , नहर , सरिता , प्रवाहिनी , तटिनी, क्षिप्रा आदि | ये सभी नाम मेरी गति के आधार पर रखे गए है | सर- सर कर चलती रहने के कारण मुझे सरिता कहा जाता है | सतत प्रवाहमयी होने के कारण मुझे प्रवाहिनी कहा गया है | इसी प्रकार दो तटो के बीच में बहने के कारण तटिनी तथा तेज गति से बहने के कारण क्षिप्रा कहलाती हूँ | साधारण रूप में मै नहर या नदी हूँ | मेरा नित्यप्रति का काम है की मै जहाँ भी जाती हूँ वहाँ की धरती , पशु- पक्षी , मनुष्यों व खेत – खलिहानों आदि की प्यार की प्यास बुझा कर उनका ताप हरती हूँ तथा उन्हें हरा- भरा करती रहती हूँ | इसी मेरे जीवन की सार्थकता तथा सफलता है |आज मै जिस रूप में मैदानी भाग में दिखाई देती हूँ वैसी में सदैव से नही हूँ | प्रारम्भ में तो मै बर्फानी पर्वत शिला की कोख में चुपचाप , अनजान और निर्जीव सी पड़ी रहती थी | कुछ समय पश्चात मै एक शिलाखण्ड के अन्तराल से उत्पन्न होकर मधुर संगीत की स्वर लहरी पर थिरकती हुई आगे बढती गई | जब मै तेजी से आगे बढने पर आई तो रास्ते में मुझे इधर – उधर बिखरे पत्थरों ने , वनस्पतियों , पड़े – पौधों ने रोकना चाहा तो भी मै न रुकी | कई कोशिश करते परन्तु मै अपनी पूरी शक्ति की संचित करके उन्हें पार कर आगे बढ़ जाती |इस प्रकार पहाडो , जंगलो को पार करती हुई मैदानी इलाके में आ पहुँची | जहाँ – जहाँ से मै गुजरती मेरे आस-पास तट बना दिए गए, क्योकि मेरा विस्तार होता जा रहा था | मैदानी इलाके में मेरे तटो के आस-पास छोटी – बड़ी बस्तियाँ स्थापित होती गई | वही अनेको गाँव बसते गए | मेरे पानी की सहायता से खेती बाड़ी की जाने लगी | लोगो ने अपनी सुविधा की लिए मुझे पर छोटे – बड़े पुल बना लिए | वर्षा के दिनों में तो मेरा रूप बड़ा विकराल हो जाता है |इतनी सब बाधाओ को पार करते हुए चलते रहने से अब मै थक गई हूँ तथा अपने प्रियतम सागर से मिलकर उसमे समाने जा रही हूँ | मैंने अपने इस जीवन काल में अनेक घटनाएँ घटते हुए देखी है | सैनिको की टोलियाँ , सेनापतियो , राजा – महाराजाओ , राजनेताओं , डाकुओ , साधू-महात्माओं को इन पुलों से गुजरते हुए देखा है | पुरानी बस्तियाँ ढहती हुई तथा नई बस्तियाँ बनती हुई देखी है | यही है मेरी आत्मकथा |

Answered by punam100190
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Explanation:

नदी की आत्मकथा मैं नदी हूं मेरे अनेक नाम है जैसे नदी सरिता तक इत्यादि मेरा काम लोगों को खुश करना है लोगों को पानी देना है मेरे किनारे बसे हुए जितने भी गांव जितने भी खेत से भी खा लिया मैं सबके लिए पानी देने के लिए लाभदायक हो किसान में से खुश होते हैं कि मैं उन्हें पानी देती हूं अगर वर्षा नहीं हुई तो मैं उन्हें पानी देती हूं कुछ पर मेरे ही तट पर बैठकर किया जाता है जैसे हो गया छठ पूजा जिसमें की माताएं बहने और जितने भी छठ पूजा के हो लोग वह बैठकर पूजा करते हैं और आराधना करते हैं लेकिन छठ पूजा छठ नदी में नहाते हैं नहाने के काम आती हूं अगर कहीं पानी का पैसा घर नहीं मिला जहां पर पानी पर्याप्त मात्रा में अगर पानी ना हो तो मेरे ही पास आके नहाते हैं मेरे पानी से नहाते हैं आजकल पानी बहुत ही प्रदूषित होती जा रही है नदियों को प्रदूषित होने जा रही हैं लेकिन लोगों को यह कौन समझाए अगर नदियां प्रदूषित होगी तो पहले जैसा पानी कौन देगा पहले संत साधु जितने भी महात्मा रहते थे यह पहले के जितने भी लोग रहते थे वह सारे लोग नदियों से पानी पीते थे लेकिन आजकल इतना नदी प्रदूषित हो गया है कि नदी मुझ में मेरा पानी कोई नहीं पीता सब लोग यही चाहते हैं कि वह साफ-सुथरा पानी पिए जो कि फिल्ट्रेट हो अगर लोग यह सोचे कि नदिया का पानी प्रदूषित ना किया जाए तो आज भी नदिया के जानवरों का जानवरों पशु पक्षियों के प्यास बुझा रही है मनुष्य की प्यास बुझा दी लेकिन अगर नदियों को प्रदूषित ना किया जाए नदी कभी किसी से कोई शिकायत नहीं करती कि वह क्यों उसे प्रदूषित करते जा रहे हैं लेकिन यह इंसान की मूर्खता है कि आजकल के बढ़ रहे रहे वीडियो में जो कार्य कार्यालय कारखानों से जो गंदा पानी निकलती है वह मुझ में आ रही है जिससे कि मेरा पानी कोई मनुष्य नहीं पीता अगर मैं किसी की प्यास बुझाती हूं मैं नदी हूं मुझे प्रदूषित ना किया जाए तो कोई भी मनुष्य मेरा पानी पी सकता है

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