write the essay on garden mein 2 hours in hindi
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कभी-कभी इन्सान अपनी दैनिक दिनचर्या से इतना थक जाता है कि वह इन सब से दूर प्रकृति में अवकाश के क्षण गुजारना चाहता है। जिससे उसे कुछ राहत और आनन्द का अहसास हो। इसका अनुभव वह कहीं दूर नहीं बल्कि आसपास के बगीचे में ही जाकर कर सकता है। पहले के समय में हर व्यक्ति के घर में बगीचे का एक स्थान सुरक्षित रहता था। किंतु बढ़ती जनसंख्या के कारण धीरे-धीरे यह प्रथा खत्म हो गई और लोग बगीचे के स्थान पर गमलों से ही काम चलाने लगे। लेकिन शहरों में कुछ स्थान ऐसे हैं जहाँ कई मंजिला घर बनाकर आगे बगीचे के लिए स्थान सुरक्षित रखा जाता है। इन बगीचों में पेड़-पौधों के साथ-साथ बच्चों के क्रीड़ा स्थल जिसमें छोटा सा घास का मैदान होता है और झूलों का स्थान भी रहता है। इस बगीचे का आनन्द लोग अपनी बालकनी से भी कर सकते हैं। जो इच्छुक हैं वे बगीचे में जाकर व्यायाम, चहलकदमी और एक दूसरे से मुलाकात भी करते हैं। यहां बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए एक मिलने का एक नियत स्थान रहता है। यह तो सर्वविदित है कि चार दिवारी से बाहर प्रकृति में आनन्द ही कुछ और है।
कई स्थानों पर लोग इन बगीचों का काम मिलजुल कर करते हैं इससे बच्चों का प्रकृति का भी अध्ययन करने का अवसर मिलता है। जब वे अपने लगाये पेड़-पौधों का बढ़ता देखते हैं तो उन्हें एक अलग ही प्रसन्नता का अहसास होता है। बच्चों को बगीचों से आनन्द के साथ-साथ शिक्षा भी मिलती है। यदि बगीचे न हों तो आज की पीढ़ी तो सामान्य पौधों जैसे गेंदा, गुलाब, चमेली, गुड़हल और फलों के पौधे जैसे आम, पपीता, अमरूद आदि के पेड़-पौधे कैसे होते हैं, तितलियाँ या भँवरे क्या होते हैं और ओस की बूँद पत्तों पर फूलों की पंखुड़ियों पर कैसी दिखती है यह मात्र किताबों और कम्प्यूटर पर ही देखे। बच्चे फल-फूल से सम्बन्धित जो ज्ञान किताबों से पाते हैं उन्हें वे बगीचे में साक्षात रूप से समझ सकते हैं। जहाँ बगीचे रहते हैं वहाँ सुगंधित पवन भी धीमी-धीमी बहती है और एक नई स्फूर्ति प्रदान करती है। ऐसे बगीचे में बैठकर एवं खेलकर हमारे फेफड़े भी स्वस्थ होते हैं।
बगीचों को देखकर इंसान का हृदय कोमल होता है और उसमें बुरी भावनायें पैदा नहीं होतीं। प्रकृति के साथ-साथ यदि मानवता को बचाये रखना है तो हमें छोटे-छोटे बगीचों का विकास करना चाहिये। थका-हारा व्यक्ति जो पैसे खर्च करके मन को सुकून नहीं पहुँचा सकता, वह कम से कम इन बगीचों में आकर अपने अंदर नई उमंग तो ला ही सकता है। चण्डीगढ़ जैसे स्थान से हम सबक ले सकते हैं कि किस प्रकार वहाँ नियोजित करके रिहायशी स्थानों में बगीचे का स्थान सुरक्षित रखा गया है। सरकार की भी कुछ ऐसी नीतियाँ होनी चाहियें कि रिहायशी क्षेत्रों में बगीचे अवश्य हों। कुछ लोग इनके निर्माण एवं रख-रखाव के लिए सिर्फ सरकार पर ही निर्भर रहते हैं लेकिन यह हमारा भी दायित्व है कि यदि कोई स्थान खाली है तो हम वहाँ छोटी से फुलवारी तो बना ही सकते हैं साथ ही जो बगीचे उपलब्ध हैं उनको सुरक्षित रखें और इनमें गंदगी न फैलायें।
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बगीचे में दो घंटे
में रोज सुबह जल्दी उठकर बगीचे में टहलने जाता हूँ। सबेरे का ठंडा-ठंडा पवन सेहत के लिए बहुत अच्छा है। यह ताजगी और स्फूर्ति देता है। इसलिए बहुत सारे लोग सबेरे बगीचे में टहलने जाते हैं।
पर इस रविवार की शाम को मन कुछ उदास था। इसलिए मैं अपने मित्र के साथ बगीचे में जा पहँचा। शाम के समय बगीचे में शीतल, मंद और सुगंधित हवा चल रही थी। बगीचे में पहुँचते ही मेरा तन मन पुलकित हो उठा। मखमल-सी मुलायम हरी घास बगीचे में रंगीन चादर की तरह फैली हुई थी। हम दोनों मित्र नर्म-नर्म घास पर बैठ गए। घास के शीतल स्पर्श से हमारी तबीयत हरी हो गई। बगीचे में चमेली, जूही, गुलाब, मोगरा आदि के रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे। फूलों की खुशबू से वातावरण महक रहा था। पेड़-पौधों के पत्तों की मर्मर-ध्वनि कानों को बहुत प्रिय लग रही थी। संध्या के समय पक्षियों का मधुर कलरव मन को आनंद से भर रहा था।
कुछ देर हरी घास पर बैठने के बाद हम एक बड़े फव्वारे के पास जाकर खड़े हो गए। फव्वारे से पानी की बारीक-बारीक धाराएँ निकल रही थी। ऊपर जाकर वे नन्हीं-नन्हीं बूंदों की झड़ी में बदल रही थीं। फव्वारे में बिजली के रंगबिरंगे बल्ब लगे थे। फुहार में उनका रंगबिरंगा प्रकाश आ रहा था।
बगीचे के एक कोने में चार-पाँच बेंच थीं। उन पर कुछ बड़े-बूढ़े लोग बैठे थे। वे आज की बढ़ती हुई महँगाई को कोस रहे थे। एक तरफ कुछ बच्चे खेल रहे थे। झूलों पर झूलने के लिए बच्चों में होड़-सी लगी हुई थी। कुछ बच्चे सरकन पट्टी पर फिसलने का मजा ले रहे थे।
बगीचे के बाहर भेल-पूरी, पानी-पूरी, पकौड़ी, सैंडविच, वडा पाव आदि के ठेले लगे हुए थे। वहाँ कुछ लोग अपने परिवार के साथ खाने-पीने में व्यस्त थे। पास ही एक गुब्बारे- वाला रंगबिरंगे गुब्बारे बेच रहा था। मैंने एक बड़ा सा रंगीन गुब्बारा अपने छोटे भाई के लिए खरीद लिया।
तभी वहाँ कुछ और मित्रों से हमारी भेंट हो गई। हममें से कुछ मित्रों ने लतीफे सुनाए। एक मित्र ने गीत गाया। सभी को बहुत मजा आया। पता ही नहीं चला कि कब अँधेरा हो गया। हृदय में भरपूर खुशियाँ लेकर हम सब घर की ओर लौट पड़े।