write the summary of boodhi kaki in hindi 200 words
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HEYA FRIEND HERE IS YOUR ANSWER
बुद्धिराम और उसकी पत्नी का व्यवहार बूढ़ी काकी के प्रति दिनोंदिन कठोर होता चला गया यहां तक कि जिस बुढ़िया की जायदाद से सौ-डेढ़ सौ रूपये प्रतिमाह की आमदनी थी, वह भोजन तक के लिए तरसने लगी। बूढ़ी काकी जीभ के स्वाद के आगे विवश होकर रोने-चिल्लाने लगती थी। हाथ-पैरों से लाचार बुढ़िया जमीन पर पड़ी रहती और अपने प्रति उपेक्षा भरे व्यवहार पर चीखती-चिल्लाती। बुद्धिराम के दोनों बेटे भी उसे चिढ़ाने-परेशान करने में खुश होते थे। यहां तक कि वे दोनों उस बुढ़िया के ऊपर अपने मुंह का पानी भी उड़ले देते थे। लेकिन बुद्धिराम की बेटी लाडली ‘बूढ़ी काकी’ से बहुत प्यार करती थीं लाडली भाइयों से तंग होकर बूढ़ी काकी की कोठरी में आ जाती थी और चना-चबाना जो कुछ भी होता था, मिल-बांटकर बूढ़ी काकी के साथ खाती थी।
कुछ समय बाद बुद्धिराम के बेटे मुखराम की सगाई थी जिसमें भाग लेने के लिए काफी मेहमान आए हुए थे। सारे गावं में खुशी का माहौल था। चारपाइयों पर आराम कर रहे मेहमानों की नाई सेवा कर रहे थे। कहीं भाट प्रशंसा में यश-गान कर रहे थे। रूपा को भी औरतों से फुरसत नहीं थी। दौड़-दौड़कर इधर से उधर भाग रही थी। हलवाई भट्टियो पर काम कर रहे थे। कहीं सब्जियां पक रही थीं तो कही मिठाइयां बन रही थीं। खाना पकने की सुगन्धि सारे घर में फैल चुकी थी। भीतर ही भीतर बूढ़ी काकी का मन भी लालचा रहा था। परन्तु वह सोच रही थी कि जब उसे भरपेट भोजन ही नहीं मिलता तो मिठाई ओर कचैड़ी कौन खिलाएगा। रह-रहकर उसकी जीभ लपलपा रही थी। और दिन होता तो वह रो-चीखकर सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लेती लेकिन अपशकुन के भय से वह चुपचाप बैठी थी। धीरे-धीरे उसका मन बेकाबू होता चला गया। और उकडू बनकर हलवाई के कहाड़े के पास जाकर बैठ गई। अचानक रूपा की नजर बूढ़ी काकी पर पड़ी तो आग बबूला हो उठी और बूढ़ी काकी को खूब भला-बुरा कहा। अपमानित होकर भी बूढ़ी काकी कुछ नहीं बोली और रेगं ती हुई चुपचाप अपनी कोठरी में चली गयी।
काफी समय बीत जाने के बाद भी बूढ़ी काकी की किसी ने सुध नहीं ली तो उसका मन बेचैन हो उठा। तरह-तरह के विचार उसके मन में आने लगे। सभी लोग खा-पी चुके होंगे। तेरी याद किसी को नहीं आएगी। इसी बीच उसकी भूख जोर पकड़ने लगी और हाथो के बल सरकती हुई लोगों के बीच जाकर पत्तल पर बैठ गयी। लोग आश्चर्य से देख ही रहे थे कि बुद्धिराम की नज़र उस पर पड़ गयी। उस दयनीय बूढ़ी काकी को बुद्धिराम ने दोनों हाथों से उठाकर कोठरी में लाकर पटक दिया और खूब भला-बुरा कहा। वह यह भूल गया कि आज उसे जो सम्मान मिल रहा है, वह सब बूढ़ी काकी की संपत्ति के कारण ही है।
रह-रहकर बूढ़ी काकी स्वयं को कोसती रही। कभी सोचती कि वहां नहीं जाना चाहिए था। बिना खाए मैं मर तो नहीं जाती। इतना दुव्र्यवहार होने पर भी बूढ़ी काकी का मन दावत में रखा हुआ था। कभी कचैड़िया याद आतीं तो कभी स्वादिष्ट रायता, लेकिन लाड़ली के अलावा बूढ़ी काकी के प्रति किसी के मन में कोई सहानुभूति नहीं थी।
रात के ग्यारह बज चुके थे। सभी मेहमान आराम कर रहे थे। हारी-थकी रूपा भी सो चुकी थी, लेकिन लाडली थी जो जाग रही थी। वह उस समय की प्रतीक्षा में थी जब अपने हिस्से का मिला हुआ खाना बूढ़ी काकी को जाकर खिलाए। रूपा को पता लगने पर पिटाई होने का डर था। माँ को सोता देखकर लाडली चुपके से अपने हिस्से की पूड़िया लेकर काकी के पास पहुंची। बेसब्री से इंतजार कर रही बुढ़िया एक ही झटके में सब खा गयी परन्तु इससे उसकी भूख और बढ़ चुकी थी। उसने लाड़ली से मेहमानों के भोजन करने के स्थान पर ले चलने को कहा परन्तु वहां पड़े टुकड़ों को चुन-चुनकर खाने के बाद भी उसकी भूख नहीं मिटी। अंत में उसने लाडली से जूठी पत्तलों के पास ले चलने को कहा। इसी बीच रूपा की आंख खुल चुकी थी। लाडली को अपने पास न पाकर रूपा ने इधर-उधर देखा तो वह पत्तलों के पास खड़ी थी। रूपा बूढ़ी काकी को पत्तलों की जूठन चाटते देखकर आत्मग्लानि एवं पश्चाताप से भर उठी। आज उसे अपने किये पर भारी पछतावा हो रहा था। उसकी सोई आत्मा जाग उठी थी। आज उसने बूढ़ी काकी को धमकाया नहीं अपितु उठकर साथ चलने को कहा। उसने सोचा जिस बुढ़िया की जायदाद से हमें इतनी आमदनी हो रही है, उसके लिए मैं भरपेट भोजन भी नहीं दे सकी।