Write the summary of the chapter हार की जीत
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इस पाठ में सुदर्शन जी ने बहुत ही प्रभावशाली ढंग से बताया है कि परोपकारियों और सज्जनों की सदा जीत होती है।
बाबा भारती नाम के एक साधु थे। उनके पास सुल्तान नाम का एक घोड़ा था, जो बहुत ही सुन्दर और ताकतवर था। बाबा उस घोड़े से बहुत प्यार करते थे और उसकी सेवा करते थे एक दिन सुल्तान के बारे में सुनकर उस इलाके का डाकू खड्गसिंह बाबा भारती के पास आया और उसने सुल्तान को देखने की इच्छा जताई। बाबा भारती ने गर्व के साथ खड्गसिंह को अपना घोड़ा दिखाया और उसके गुणों का बखान किया। खड्गसिंह घोड़े को देखकर आश्चर्य करने लगा, क्योंकि उसने इतना सुन्दर और ताकतवर घोड़ा अब से पहले कभी नहीं देखा था। उसे बाबा के भाग्य से ईर्ष्या हुई और वह सोचने लगा कि ऐसा घोड़ा तो मेरे पास होना चाहिए।
उसने बाबा भारती से घोड़ी छीन ले जाने की बात कही। खड्गसिंह की इस बात से बाबा डर गए। वे रातभर बैठकर घोड़े की रखवाली करने लगे। उन्हें हर समय खड्गसिंह के आने का डर सताने लगा। एक दिन शाम के समय वे घोड़े पर बैठकर कहीं घूमने जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें एक गरीब अपाहिज पेड़ के नीचे बैठा मिला। बाबा के पूछने पर उसने कहा कि मुझे तीन मील दूर एक गाँव में जाना है, लेकिन मैं चलने में लाचार हूँ; आप मुझे अपने घोड़े पर बैठाकर वहाँ पहुँचा दें। बाबा ने उस अपाहिज को घोड़े पर बैठा लिया और वे स्वयं घोड़े की लगाम पकड़कर पैदल चलने लगे। अचानक बाबा को एक झटका देकर वह अपाहिज, घोड़े को दौड़ाने लगा।
बाबा ने देखा, तो वे चीख उठे; क्योंकि वह अपाहिज़ डाकू खड्गसिंह था। बाबा ने उसे रोकना चाहा, लेकिन वह न रुका। बाबा ने उससे फिर कहा कि घोड़ा नहीं चाहिए, परन्तु यह प्रार्थना है कि तुम किसी को इस घटना के बारे में मत बताना; क्योंकि इस घटना के बारे में सुनने के बाद लोग किसी गरीब पर भरोसा नहीं करेंगे। बाबा की यह बात सुनकर खड्गसिंह के मन पर उनकी सज्जनता और महानता का इतना प्रभाव पड़ा कि उसे अपनी भूल पर पश्चात्ताप हुआ और रात के अँधेरे में वह घोड़े को बाबा के मन्दिर में उसी जगह बाँधकर चला गया, जहाँ वह बँधा रहता था।