Chemistry, asked by durgesh6266327229, 9 months ago

X or Y do vedhut apghatye हैं तनुकरण पर एक्स की मोलर चालकता 2.5 गुना बढ़ जाती है जबकि हवाई की 25 गुना बढ़ जाती है इस दोनों में से कौन दुर्बल विद्युत अपघट्य है और क्यों​

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Answered by Hemalathajothimani
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Answer:

सहजीवन (Symbiosis) दो प्राणियों में पारस्परिक, लाभजनक, आंतरिक साझेदारी है। यह सहभागिता के (partnership) दो पौधों या दो जंतुओं के बीच, या पौधे और जंतु के पारस्परिक संबंध में हो सकती है। यह संभव है कि कुछ सहजीवियों (symbionts) ने अपना जीवन परजीवी (parasite) के रूप में शुरू किया हो और कुछ प्राणी जो अभी परजीवी हैं, वे पहले सहजीवी रहे हों।

सहजीवन में दो प्राणी जीवित रहने के लिये एक दूसरे पर निर्भर रहते है ; जैसे कि एक क्लाउनफिश रीढीविहीन जंतुओं पर निर्भर रहती है

सहजीवन का एक अच्छा उदाहरण लाइकेन (lichen) है, जिसमें शैवाल (algae) और कवक के (fungus) के बीच पारस्परिक कल्याणकारक सहजीविता होती है। बहुत से कवक बांज (oaks), चीड़ इत्यादि पेड़ों की जड़ों के साथ सहजीवी होकर रहते हैं।

बैसिलस रैडिसिकोला के (Bacillus radicicola) और शिंबी के (leguminous) पौधों की जड़ों के बीच का अंतरंग संबंध भी सहजीविता का उदाहरण है। ये जीवाणु शिंबी पौधों को जड़ों में पाए जाते हैं, जहाँ वे गुलिकाएँ (tubercles) बनाते हैं और वायुमंडलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करते हैं।

सहजीविता का दूसरा रूप हाइड्रा विरिडिस (Hydra viridis) और एक हरे शैवाल का पारस्परिक संबंध है। हाइड्रा (Hydra) जूक्लोरेली (Zoochlorellae) शैवाल को आश्रय देता है। हाइड्रा की श्वसन क्रिया में जो कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकलता है, वह जूक्लोरेली के प्रकाश संश्लेषण में प्रयुक्त होता है और जूक्लोरेली द्वारा उच्छ्‌वसित ऑक्सीजन हाइड्रा की श्वसन क्रिया में काम आती है। जूक्लोरेली द्वारा बनाए गए कार्बनिक यौगिक का भी उपयोग हाइड्रा करता है। कुछ हाइड्रा तो बहुत समय तक, बिना बाहर का भोजन किए, केवल जूक्लोरेली द्वारा बनाए गए कार्बनिक यौगिक के सहारे ही, जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

सहजीविता का एक और अत्यंत रोचक उदाहरण कंबोल्यूटा रोजिओफेंसिस (Convoluta roseoffensis) नामक एक टर्बेलेरिया क्रिमि (Turbellaria) और क्लैमिडोमॉनाडेसिई (Chlamydomonadaceae) वर्ग के शैवाल के बीच का पारस्परिक संयोग है। कंबोल्यूटा के जीवनचक्र में चार अध्याय होते हैं। अपने जीवन के प्राथमिक भाग में कंबोल्यूटा स्वतंत्र रूप से बाहर का भोजन करता है। कुछ दिनों बाद शैवाल से संयोग होता है और फिर इस कृमि का पोषण, इसके शरीर में रहने वाले शैवाल द्वारा बनाए गए कार्बनिक यौगिक और बाहर के भोजन दोनों से होता है। तीसरी अवस्था में कंबोल्यूटा बाहर का भोजन ग्रहण करना बंद कर देता है और अपने पोषण के लिए केवल शैवाल के प्रकाश संश्लेषण द्वारा बनाए गए कार्बनिक यौगिक पर ही निर्भर रहता है। अंत में कृमि अपने सहजीवी शैवाल को ही पचा लेता है और स्वयं मर जाता है।

बहुत से सहजीची जीवाणु और अंतरकोशिक यीस्ट (yeast) आहार नली की कोशिकाओं में रहते हैं और पाचन क्रिया में सहायता करते हैं। दीमक की आहार नली में बहुत से इंफ्यूसोरिया (Infusoria) होते हैं, जिनका काम काष्ठ का पाचन करना होता है और इनके बिना दीमक जीवित नहीं रह सकती।

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