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की आशा को छोड़कर अपने आप में ठहरने का स्वभाव बना
लेना चाहिए। जगत में तो सदा के लिए रहा नहीं जा सकता
2.
बनाया जा सकता है। जगत् का कुछ भी प्राप्त कर लेने को
जीवन का लक्ष्य नहीं माना जा सकता। जगत् के नजारे और
उन देखने वाली आँख दोनों बंद हो जाने वाले हैं। अपने निज
स्वरूप का बोध हो जीवन का वास्तविक लक्ष्य है। जगत का
समस्त क्रिया कलाप इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए होना चाहिए।
इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें अन्तरमुख होना पड़ेगा।
जगत् का खिंचाव बंद करने के लिए जगत् के काम आना और
कटन बाहना अत्यंत आवश्यक है। जगत् की सेवा से जगत
का राग मिट जाता है और विश्राम का प्राप्ति होती है। यह
विश्राम अपने लिए है । इसी विश्राम में अपने आत्म स्वरूप
बोध होता है। आत्म-स्वरूप में स्थिति हो जाने पर अपने से
पिन कुछ नहीं रह जाता। जगत् भी अपना निज स्वरूप हो
जाता है। जब सभी अपने दिखने लगेंगे तो अनुमान लगाएं कि
इस विश्व-प्रेम के आनंद का कोई पारावार नहीं होगा। यह
विश्व-प्रेम की विश्वपति का प्रेम बन जाएगा। नश्वर जगत
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों में से किन्हीं
दस प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
नश्वर है संसार। यहाँ पर रहना है दिन चार। जगत् में रहते हुए।
उपरोक्त कथन को कभी नहीं भूलना चाहिए। एक दिन जगत
का समस्त दृश्य ओझल हो जाने वाला है। जगत् से जोड़ा हुआ
संबंध वियोग की घडी में पीड़ा अवश्य देता है। इस पीड़ा से
बचने का एक ही उपाय है कि संयोग काल में सेवा को अपना
कर जगत के अधिकार की रक्षा कर दी जाए और बदले में सुख
इसलिए अपने स्थाई ठिकाने की खोज को ही जीवन का लक्ष्य
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